अब सौंप दिया इस जीवन का, सब भार तुम्हारे हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथों में,
और हार तुम्हारे हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथों में,
और हार तुम्हारे हाथों में
मेरा निश्चय बस एक यही,
एक बार तुम्हे मैं पा जाऊं
अर्पण कर दूँ दुनिया भर का,
सब प्यार तुम्हारे हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथों में,
और हार तुम्हारे हाथों में
जो जग में रहूँ, तो ऐसे रहूँ,
ज्यों जल में कमल का फूल रहे
मेरे गुण दोष समर्पित हों,
भगवान तुम्हारे हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथों में,
और हार तुम्हारे हाथों में
यदि मानुष का मुझे जनम मिले,
तव चरणों का मै पुजारी बनू
इस पूजक की एक एक रग का,
सब तार तुम्हारे हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथों में,
और हार तुम्हारे हाथों में
जब जब संसार का कैदी बनू,
निष्काम भाव से कर्म करूँ
फिर अंत समय में प्राण तजू,
निराकार तुम्हारे हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथों में,
और हार तुम्हारे हाथों में
मुझ में तुझ में बस भेद यही,
मैं नर हूँ, आप नारायण हो
मैं हूँ संसार के हाथों में,
संसार तुम्हारे हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथों में,
और हार तुम्हारे हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथों में,
और हार तुम्हारे हाथों में
Ab Saup Diya Is Jeevan Ka Sab Bhar
Shri Rameshbhai Ojha
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उपासना और भक्ति – ईश्वर प्राप्ति के सरल साधन
भक्तियोगकी सहायतासे मन अपने-आप ही शान्त हो जाता है। परमात्माके साक्षात्कारके द्वारा मायाका बन्धन छिन्न हो जाता है, मन शान्त हो जाता है और कर्मबन्धन शिथिल हो जाता है। अपनी शक्तिके अनुसार भक्ति करना सबके लिये सहज है।
सर्वदा भगवान्का चिन्तन, ध्यान, स्मरण और भगवान्में अनन्य विश्वास का नाम उपासना है।
अनवरत तैलधाराके समान मन की तरंगे जब भगवान्के नामस्मरण या ध्यानमें लग जाती है. तब परमात्मा प्रत्यक्षवत् हो जाते है, तथा जीवात्मा अपने पृथक् अस्तित्वको खो देता है, और परमात्माके साथ एक हो जाता है। इसीको उपासना कहते हें।
उपासनाकी सफलताके लिये भगवान्के प्रति असीम प्रेम होना आवश्यक है। हृदयके अनुरागके बिना केवल योग, जप, तप, ध्यान आदिके द्वारा भगवानकी प्राप्ति नहीं हो सकती। भगवान्के चरणोंमें अन्त:करणको लगा देनेका नाम ही योग है।
उपासनामें भगवत्प्रेमकी अत्यन्त आवश्यकता है। क्योंकि हम जिससे सर्वाधिक प्यार करते हैं, रात-दिन जिसका ध्यान-स्मरण हमको अच्छा लगता है, उसीमे हमको आनन्दकी अनुभूति होती है।
भगवान्के साथ यदि हम हृदयसे प्रेम करेंगे तो उनका ध्यान हमारे मनसे कभी नहीं छूटेगा। भगवान्के ध्यान और स्मरणमें हमको आनन्दकी प्राप्ति होगी।
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