Bal Kand in Hindi
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इस रामचरित्र मानसके प्रारंभ में
श्रीतुलसीदासजी महाराज
अपने इष्टदेवताके अंशरूप
श्रीसरस्वतीजी और गणपतिजीका वंदन करते हैं.
श्रीसरस्वतीजी और
श्रीगणेशजी कि जो अकार-आदि तिर्सठ वर्णोंके,
शृंगार-आदि नव रसोंके,
गायत्रि-आदि अनेक छंदोंके,
वाच्यादि त्रिविध अर्थसमुदाय के और
सर्व प्रकारके मंगलों के कर्ता हैं,
उनको मैं प्रणाम करता हूं ॥ १ ॥
अब इस ग्रंथके मुख्यकारणरूप
श्रीशिवपार्वतीजीको
विश्वास और श्रद्धारूप मानकर वंदन करते हैं.
श्रीपार्वतीजी और
श्रीमहादेवजीको, जो श्रद्धा और विश्वासरूप हैं,
उनको मैं प्रणाम करता हूं
कि जिन (श्रद्धा और विश्वास) के बिना
सिद्ध पुरुष भी अपने हृदयस्थित परमेश्वरको नहीं देख सकते हैं ॥ २ ॥
ग्रंथके आचार्य श्रीशिवजीको प्रणाम कर
श्रीगुरुदेवजीको नमस्कार करते हैं.
साक्षात् शिवस्वरूप और शिष्योंके समस्त संशयनिवारण करनहारे
ज्ञानमय शंकररूप श्रीगुरुदेवजीका हम सदा वंदन करते हैं,
कि जिन (श्रीशंकरजी) का आश्रय पानेसे
द्वितीयाका चंद्रमा टेढा होनेपर भी
सब जगतमें वंदन किया जाता है.
ऐसेही जिसको गुरुका आश्रय मिल जावे
वह चाहे कुटिल क्यों न हो,
गुरुप्रतापसे सबके वंदनीय हो जाता है ॥ ३ ॥
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श्रीसीताजी और श्रीरामचंद्रजीके गुणसमूहरूप पवित्र बनमें विहार करनेवाले,
अतिशय शुद्ध निर्मल ज्ञानवाले कवीश्वर श्रीवाल्मीकिजी और
कपीश्वर श्रीहनुमानजीको प्रणाम करते हैं.
श्रीवाल्मीकिजी तो शतकोटि रामचरित्र के वर्णन करनेसे
विहार करनेवाले कहे गये और
श्रीहनुमानजी जहां रामचरित्र पढा जाता है
वहां श्रवण करनेको आते हैं,
इसवास्ते विहार करनेवाले कहे गये ॥ ४ ॥
श्रीरामचंद्रजीकी वल्लभा (प्रिया) श्रीसीताजी,
जो जगत्की उत्पत्ति,
स्थिति व संहार करती हैं तथा
सर्व क्लेशोका हरण करके
सर्व प्रकारका कल्याण करती हैं
यानी चार प्रकारकी मुक्ति देती हैं,
उनको मैं प्रणाम करता हूं ॥ ५ ॥
अपने इष्टदेव श्रीरामचंद्रजीका
परात्परत्व, सर्वेश्वरत्व,
जगत्कारणत्व, बंधमोक्षप्रदत्व और
परमकारुणिकत्व दिखलाते उनका वंदन करते हैं.
मैं श्रीरामनाम परमेश्वर हरिभगवान प्रणाम करता हूं कि
यह सकल जगत् जिनकी मायाके आधीन है.
तथा ब्रह्मादिक देवता भी जिनकी मायाके वशवर्ती हो रहे हैं और
जिनके सत्त्वसे अर्थात् अधिष्ठानसत्तासे
यह सब जगत् मिथ्या होनेपर भी सत्यसा प्रकाशता है.
जैसे रज्जुमें (अर्थात डोरी या रस्सी में) सर्पकी भ्रांति होती है,
मिथ्या होनेपर भी वह रस्सी-रूप
अधिष्ठानकी सत्यतासे सत्यसी प्रकाशती है,
ऐसे ईश्वररूप अधिष्ठानकी सत्यताके हेतु
मिथ्या होनेपर भी यह जगत् सत्यसा भासता है.
तथा जिनका चरणकमल
संसाररूप सागरको पार होना चाहते हुए पुरुषोंके वास्ते
एक अलौकिक नौकारूप है,
उन सबके कारणभूत प्रकृति से भी पर
श्रीरामचंद्रजीको मैं प्रणाम करता हूं ॥ ६ ॥
अनेक पुराण, वेद, व शास्त्रके संमत जो चरित्र
श्रीवाल्मीकि मुनिने अपने श्रीरामचरित्र में कहे हैं उनका
तथा दूसरे ग्रंथोंमें भी
जो कुछ श्रीरामचरित्र वर्णन किया गया है
उसको देखकर
सर्व शास्त्रोंमेंसे संग्रह करके
मैं तुलसीदास नाम भगवान्का भक्त
अपने अंतः करणकी प्रसन्नताके लिये
श्रीरामचंद्रजी की कथारूप
यह अतिसुंदर भाषाका ग्रंथ निर्माण करता हूं ॥ ७ ॥
जिनका स्मरण करते ही कार्यसिद्धि हो जाती है
तथा जो बुद्धिके समूह व श्रेष्ठ गुणोंके धाम हैं
वे गजराजके सदृश मुखवाले गणपति हमपर कृपा करो ॥ १ ॥
जिन परम दयालुकी कृपासे मूक पुरुष
विविध प्रकारकी वाणी से संपन्न हो जाता है,
(जैसे ध्रुवजी)
तथा पंगु पुरुष
जिनकी कृपासे अतिगहन उत्तम पर्वतपर चढ जाता है.
(जैसे श्रीसूर्यनारायणजीके सारथी अरुण)
वे संपूर्ण कलिकालके मलोके जलानेवाले हरि
हमपर कृपा करो ॥ २ ॥
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जो श्याम कमलके समान श्यामवर्ण हैं,
तथा जिनके नवीन रक्तकमलके समान अरुण नेत्र हैं,
और जो सदा क्षीरसागर के बीच शयन करते हैं,
वे हरि भगवान् हमारे हृदयमें निवास करो ॥ ३ ॥
कामदेवका मर्दन करनेवाले श्रीमहादेवजी
जिनका शरीर कुंद यानी मोगरेके पुष्पके
तथा चंद्रमाके समान शुभ्र (सफेद) है
तथा जिनका दीन जनोंपर अत्यंत स्नेह है
वे करुणाके आलय पार्वतीरमण हमपर कृपा करो ॥ ४ ॥
श्रीगुरुदेवजी
जिनके वचन महामोहरूप अंधकारपटलके लिये
साक्षात् श्रीसूर्यकी किरणोंके समूहरूप हैं,
उन कृपासिंधु मनुष्यमूर्ति श्रीहरिके चरणकमलोको मैं प्रणाम करता हूं.
श्रीगुरुदेवजीका वंदन कर
उनके चरणोंकी रजका नमस्कार करते हैं –
कि, मैं श्रीगुरुजीके चरणकमलोंकी रजको प्रणाम करता हूं.
कैसी है वह धूलि कि जिसकी सुन्दर रुचि कहे इच्छा है,
और कमलपक्षमें रुचि कहे कांति जानना.
सुन्दर जिसकी वास कहे संस्कार है
और कमलपक्षमें वास कहे गंध जानना.
फिर कैसी है कि
रस कहे प्रीतिसंयुक्त है.
कमल- पक्षमें रससंयुक्त जानना,
और अनुराग कहे स्नेहसहित है.
कमलपक्षमें अनुराग कहे अरुणता लिये है ॥ १ ॥
फिर कैसी है कि
जो मानों संपूर्ण संसाररूप रोगके दलका नाश करनेके लिये
साक्षात् संजीवन जडीका सुन्दर चूर्ण है.
जैसे संजीवन के चूर्ण से रोग नष्ट हो जाते हैं
ऐसे श्रीगुरुचरणकी रजसे भवरोग मिट जाते है ॥ २ ॥
और सुकृतरूप श्रीमहादेवजीके शरीरकी निर्मल विभूतिरूप है.
जैसे श्रीमहादेवजी विभूतिसे शोभायमान लगते हैं
ऐसे श्रीगुरुचरणरजसे पुण्य शोभायमान लगते हैं.
तथा सुन्दर मंगल और आनन्दकी जन्मभूमिही है ॥ ३ ॥
और भक्तलोगोंके मनरूप स्वच्छ दर्पणके मलको दूर करनेके लिये
खडिया मिट्टी के समान है.
जैसे, आईना चाकमिट्टीसे साफ होता है
ऐसे लोगों के मन इससे निर्मल हो जाते हैं.
जिसका तिलक लगानेसे सब गुणगण वशमें हो जाते हैं.
जैसे वशीकरणचूर्णका तिलक लगाने से
सबलोग वश हो जाते हैं
ऐसे इसका तिलक लगानेसे
सब गुणगण इसमें अपने आप चले आते हैं ॥ ४ ॥
7
नखोका वर्णन करते हैं
कि जो मनुष्य श्रीगुरुचरणके नखरूप
मणिगणकी ज्योतिका मनमे स्मरण करता है
उस मनुष्यके हृदयमें दिव्यदृष्टि प्राप्त हो जाती है ॥ ५ ॥
श्रीगुरुचरणको सूर्यरूपसे वर्णन करते हैं कि
इस चरणरूप सूर्यका प्रकाश
जिसके हृदयमे आजाता है,
उसका मोह और अज्ञान तुरंत नष्ट हो जाता है;
परंतु आता है उसीके हृदयमें कि जिसके बड़े भाग्य हैं ॥ ६ ॥
इस सूर्यके उदय होते ही
हृदयके निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और
संसाररूप रात्रीके दुःख और दोष मिट जाते हैं ॥ ७ ॥
जब हृदयके नेत्र खुल जाते हैं
तब श्रीरामचंद्रजीके चरित्ररूप मणि और माणिक
जो जहां जिस खानमें गुप्त और प्रकट हैं
वे सब दीखने लग जाते हैं ॥ ८ ॥
जैसे सुजान साधकलोग सिद्ध होनेके लिये
नेत्रोंमें सुन्दर सिद्धांजन आंजके
पर्वत, वन, और पृथ्वीके अनेक स्थलोंमें
अनेक प्रकारके कौतुक देखते हैं
ऐसे ही जो मनुष्य श्रीगुरुपद-रजको नेत्रों में लगाता है
उसे श्रीरामचंद्रजीके
पर्वत कहे वेद पुराणादिमेंके
वन कहे संसारमेके और
पृथ्वी कहे संतसभामेके
सारे चरित्र दीखने लग जाते हैं ॥ १ ॥
श्रीगुरुनारायणजी के चरणकमलोकी रज
स्वच्छ नयनामृत अंजनके समान है;
क्योंकि उससे दृष्टिके सर्वदोष निवृत्त होजाते हैं ॥ १ ॥
अतएव हम भी उससे अपने ज्ञानरूपी नेत्रको साफ करके
संसारसे छुटानेवाला श्रीरामचरित वर्णन करते हैं ॥ २ ॥