भगवान मेरी नैया, उस पार लगा देना (2 Versions)
भगवान मेरी नैया – 1
[भगवान मेरी नैया, उस पार लगा देना।
अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा देना॥]
दल बल के साथ माया, घेरे जो मुझ को आ के।
तुम देखते ना रहना, झट आ के बचा लेना॥
[भगवान मेरी नैया….]
संभव है झंझटों में, मैं तुम को भूल जाऊं।
हे नाथ, दया कर के, मुझ को ना भुला देना॥
[भगवान मेरी नैया….]
तुम देव मैं पुजारी, तुम इष्ट मैं उपासक।
यह बात अगर सच है, तो सच कर के दिखा देना॥
[भगवान मेरी नैया….]
तेरी कृपा से हमने, हीरा जनम यह पाया।
जब प्राण तन से निकले, अपने में मिला लेना॥
[भगवान मेरी नैया….]
भगवान मेरी नैया, उस पार लगा देना।
अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा देना॥
भगवान मेरी नैया – 2
भगवान मेरी नैया,उस पार लगा देना।
अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा देना॥
हम दिन दु:खी निर्धन, नित नाम जपे प्रतिपल।
यह सोच दरस दोगे. प्रभु आज नहीं तो कल।
जो बाग़ लगाया है, फूलो से सजा देना॥
[भगवान मेरी नैया….]
तुम शांति सुधाकर हो, तुम ज्ञान दिवाकर हो।
मम हँस चुगे मोती, तुम मानसरोवर हो।
दो बूंद सुधा रस की, हम को भी पिला देना॥
[भगवान मेरी नैया….]
रोकोगे भला कब तक, दर्शन दो मुझे तुम से।
चरणों से लिपट जाऊं, वृक्षो से लता जैसे।
अब द्वार खड़ा तेरे, मुझे राह दिखा देना॥
[भगवान मेरी नैया….]
मंझधार पड़ी नैया, डगमग डोले भव में।
आओ त्रिशाला नंदन, हम ध्यान धरे मन में।
अब भक्त करे विनती, मुझे अपना बना लेना॥
[भगवान मेरी नैया….]
भगवान मेरी नैया, उस पार लगा देना।
अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा देना॥
Bhagwan Meri Naiyaa, Us Paar Laga Dena
Sudhanshuji Maharaj
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ईश्वर भक्ति और आत्मसमपर्ण
आत्मसमपर्ण करके भगवानका निरंतर स्मरण करना, जितना कहने में सुलभ प्रतीत होता हैं, उसपर दृढ होना उतना सहज नहीं है।
विषयों के प्रति वैराग्य हुए बिना इसका साधन कठिन ही नहीं, बल्कि असंभव है।
जो मनुष्य सम्पप्ति-विपत्ति, सुख-दुःख, लाभ-हानि आदि द्वन्द्वोंमें समभाव नहीं रख सकता, उसे अपनेको भगवान्के प्रति आत्मसमर्पणका अधिकारी मान लेना विडम्बनामात्र है।
आत्मसमर्पणमें तो अपने आपको सर्वथा भूल जाना पड़ता है,भगवानका निरन्तर स्मरण रखना होता है।
यथालाभ सन्तुष्ट होकर सब प्रकारकी भविष्यचिन्ता और शरीरनिर्वाह तककी चिन्ता भी भगवानको ही सौंप देनी पड़ती है।
जब सब कुछ ईश्वर को अर्पण कर दिया जा चुका तब वही मालिक हैं, इस शरीरको जैसा चाहे वैसा
रख सकते हैं, ऐसे अनन्य-परायण भक्तको शरीरके रहनेमें हर्ष और जाने में शोक क्यों होगा?
उसके लिये तो नाना प्रकारके संकटोकी प्राप्ति अथवा विविध वैभवकी प्राप्ति दोनों समान ही है।
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