भज ले प्राणी रे अज्ञानी
भज ले प्राणी रे अज्ञानी
दो दिन की जिंदगानी
रे कहाँ तू भटक रहा है
यहाँ क्यों भटक रहा है
झूटी काया झूटी माया
चक्कर में क्यों आया
जगत में भटक रहा है
जगत में भटक रहा है
नर तन मिला है तुझे
खो क्यों रहा है इस भीड़ में
नर तन मिला है तुझे
खो क्यों रहा है इस भीड़ में
कंचन सी काया तेरी
उलझी है विषयों के बेल में
कंचन सी काया तेरी
उलझी है विषयों के बेल में
सुख और दारा वैभव सारा
कुछ भी नहीं तुम्हारा
व्यर्थ सिर पटक रहा है
व्यर्थ सिर पटक रहा है
भज ले प्राणी रे अज्ञानी
दो दिन की जिंदगानी
यहाँ क्यों भटक रहा है
यहाँ में भटक रहा है
चंचल गुमानी मन
अब तो जनम को सँवार ले
चंचल गुमानी मन
अब तो जनम को सँवार ले
फिर न मिले तुझे
अवसर ऐसा बारंबार रे
फिर न मिले तुझे
अवसर ऐसा बारंबार रे
रे अज्ञानी तज नादानी
भज ले सारंग पाणी
व्यर्थ सर पटक रहा है
व्यर्थ सर पटक रहा है
भज ले प्राणी रे अज्ञानी
दो दिन की जिंदगानी
रे कहाँ तू भटक रहा है
यहाँ क्यों भटक रहा है
व्यर्थ सर पटक रहा है
जगत में क्यों भटक रहा है
जगत में भटक रहा है
भज ले प्राणी रे अज्ञानी
दो दिन की जिंदगानी
Bhajan and Prayers
- दया कर दान भक्ति का, हमें परमात्मा देना
- Daya Kar, Daan Bhakti Ka, Hame Parmatma Dena
- Ab Saup Diya Is Jeevan Ka Sab Bhar
- अब सौंप दिया इस जीवन का, सब भार तुम्हारे हाथों में
- भला किसी का कर ना सको तो
- मैली चादर ओढ़ के कैसे
- मेरे दाता के दरबार में
ईश्वर भक्ति
भगवान में अनन्य प्रेम का नाम ही भक्ति है। प्रेम की पराकाष्ठा ही भक्ति है और प्रेम ही भक्ति का पूर्ण रूप है।
जब आराधक और आराध्य एक हो जाए और भक्तों की सारी द्वैतभावना लुप्त हो जाए, उठते बैठते, सोते जागते, चलते फिरते सारी क्रियाएं करते हुए सभी अवस्थाओं में भक्त जब भगवान के अतिरिक्त और कुछ न देखें, तब वही तन्मयता सच्ची भक्ति बन जाती है।
भगवान के साथ मिलन ही जीवन का सर्वोत्तम लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के अनेक साधन हैं। उनमें भक्ति और प्रार्थना, वर्तमान युग के मुख्य साधन हैं। भक्ति का अर्थ है – जिस किसी उपाय से भगवान की सेवा करना। भगवान की उपासना, भगवानकी सेवा और भगवान की शरणागति – सभी भक्ति के अंतर्गत है।
भगवान सबके है, इसलिए सभी मनुष्यों को भगवान की भक्ति का अधिकार है। चाहे वह किसी भी देश, युग, जाति या अवस्था का हो। ईश्वर की भक्ति के लिए ऊंच-नीच, स्त्री-पुरुष, जाति, विद्या, धन, कुल और क्रियाका कोई भेद नहीं है।
Bhaj Le Prani Re Agyani
PremBhushan Ji Maharaj
Bhaj Le Prani Re Agyani
Bhaj le prani re agyani
Do din ki jindagaani
Re kahaan tu bhatak raha hai
Yahaan kyon bhatak raha hai
Jhooti kaaya jhooti maaya
Chakkar mein kyon aaya
Jagat mein bhatak raha hai
Jagat mein bhatak raha hai
Nar tan mila hai tujhe
Kho kyon raha hai is bhid mein
Nar tan mila hai tujhe
Kho kyon raha hai is bhid mein
Kanchan si kaaya teri
Ulajhi hai vishayon ke bel mein
Kanchan si kaaya teri
Ulajhi hai vishayon ke bel mein
Sukh aur daara vaibhav saara
Kuchh bhi nahin tumhaara
Vyarth sir patak raha hai
Vyarth sir patak raha hai
Bhaj le prani re agyani
Do din ki jindagaani
Yahaan kyon bhatak raha hai
Yahaan mein bhatak raha hai
Chanchal gumaani man
Ab to janam ko sanvaar le
Chanchal gumaani man
Ab to janam ko sanvaar le
Phir na mile tujhe
Avasar aisa baarambaar re
Phir na mile tujhe
Avasar aisa baarambaar re
Re agyaani taj naadaani
Bhaj le saarang paani
Vyarth sar patak raha hai
Vyarth sar patak raha hai
Bhaj le prani re agyani
Do din ki jindagaani
Re kahaan tu bhatak raha hai
Yahaan kyon bhatak raha hai
Vyarth sar patak raha hai
Jagat mein kyon bhatak raha hai
Jagat mein bhatak raha hai
Bhaj le prani re agyani
Do din ki jindagaani