भक्त कौन है?
शांत चित्त
जिनका चित्त अत्यन्त शान्त है।
जिन्होंने स्वेच्छानुसार अपनी इन्द्रियोंपर विजय प्राप्त कर ली है।
जिनका चित्त दयासे द्रवीभूत हो जाता है।
जो चोरी और हिंसासे सदा ही मुख मोड़े रहते है।
सदाचारसे जिनका जीवन सदा उज्ज्वल और निष्कलंक बना रहता है।
दुसरो का हित
जो मन, वाणी और क्रियाद्वारा कभी दूसरोंसे द्रोह करनेकी इच्छा नहीं रखते।
जो सबके प्रति कोमल भाव रखते हैं।
जो दूसरों की सेवा में प्रसन्नतापूर्वक संलग्र रहते हैं।
जो सदा परहित-साधनकी अर्थात दूसरों के हित की इच्छा रखते हैं।
जो दूसरों की खुशी को अपनी खुशी मानते हैं।
दीनों पर दया करना जिनका स्वभाव बन गया है।
जगत्में सब लोगोंका निरन्तर उपकार करनेके लिये जो कुशलताका परिचय देते हैं। दूसरोंके कुशलक्षेम को अपना ही कुशल-क्षेम मानते हैं।
दूसरोंका तिरस्कार देखकर उनके प्रति दयासे द्रवीभूत हो जाते है तथा सबके प्रति मनमें कल्याणकी भावना करते हैं। वे ही सच्चे भक्तके नामसे प्रसिद्ध हैं।
सब प्राणियोंके भीतर भगवान् वासुदेवको अर्थात परमात्मा को विराजमान देखकर जो कभी किसी से इर्षा-द्वेष नहीं करते।
ईश्वर भक्ति
अविवेकी मनुष्योंका विषयोंमें जैसा प्रेम होता है। उससे कई गुना अधिक प्रीतिका विस्तार वे भगवान् श्रीहरिके प्रति करते हैं।
नित्य कर्तव्य बुद्धिसे विष्णुस्वरूप शंकर आदि देवताओंका भक्तिपूर्वक पूजन-ध्यान करते हैं और मनसे भक्तिभाव रखते हैं।
ईश्वरसे भिन्न दूसरी किसी वस्तुको नहीं देखते तथा भगवान् को भी विश्वसे भिन्न एवं पृथक् नहीं देखते। अर्थात सब भगवान्के ही स्वरूप हैं। भगवान् जगत्से भिन्न होकर भी भिन्न नहीं है।
हे भगवान् जगन्नाथ! में आपका दास हूँ। आपके स्वरूपमें भी मैं हूँ। आपसे पृथक् कदापि नहीं हूँ। हे नाथ! यदि भेद है तो इतना ही कि आप हमारे सेव्य हें और मै आपका सेवक हूँ। परन्तु जब आप भगवान् विष्णु अन्तर्यामीरूपसे सबके हृदयमें विराजमान हैं, तब सेव्य अथवा सेवक कोई भी आपसे भिन्न नहीं है।
इस भावनासे सदा सावधान रहकर जो ब्रह्माजीके द्वारा वन्दनीय श्रीहरिको सदा प्रणाम करते। उनके नामोंका कीर्तन करते। उन्हींके भजनमें तत्पर रहते और संसारके लोगोंके समीप अपनेको तृणके समान तुच्छ मानकर विनयपूर्ण बर्ताव करते हैं।
जो भगवान्में सदा मन लगाये रहते हैं तथा प्रिय वचन बोलते हैं। वे ही भक्तके नामसे प्रसिद्ध है।
जो भगवान्के पापहारी शुभनाम-सम्बन्धी मधुर पदोंका जप करते और जय-जयकी घोषणाके साथ भगवन्नामोंका कीर्तन करते हैं। वे अकिंचन महात्मा भक्तके रूपमें प्रसिद्ध हैं।
जिनका चित्त श्रीहरिके चरणारविन्दोंमें निरन्तर लगा रहता है।
सुख और दुःख दोनों ही जिनके लिये समान है। जो भगवान्की पूजामें चतुर है तथा अपने मन और विनययुक्त वाणीको भगवान्की सेवामें समर्पित कर चुके है। वे ही भक्तके नामसे प्रसिद्ध है।
मद और अहंकार गल जानेके कारण जिनका अन्तःकरण अत्यन्त शुद्ध हो गया है। भगवान् नरहरिका यजन करके जो शोकरहित हो गये है। ऐसे सच्चे भक्त ही उच्चपदको प्राप्त होते हैं ।
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