<< दुर्गा सप्तशती अध्याय (हिंदी में) – 05
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दुर्गा सप्तशती के इस अध्याय 6 में देवी ने किस प्रकार धूम्रलोचन नामक राक्षस का वध किया यह दिया गया है।
दुर्गा सप्तशती के 700 श्लोकों में से इस छठे अध्याय में 24 श्लोक आते है।
इस पेज में दुर्गा सप्तशती अध्याय – 6 हिंदी में दिया गया है। इस अध्याय के संस्कृत श्लोक अर्थसहित पढ़ने के लिए क्लिक करें –
दुर्गा सप्तशती अध्याय – 6 श्लोक अर्थसहित
दुर्गा सप्तशती अध्याय 6 का ध्यान
ध्यान
मैं सर्वज्ञेश्वर भैरवके अंगमें निवास करनेवाली, परमोत्कृष्ट पद्मावती देवीका चिन्तन करता (करती) हूँ।
वे नागराजके आसनपर बैठी हैं, नागोंके फणोंमें सुशोभित होनेवाली मणियोंकी विशाल मालासे उनकी देहलता सुशोभित हो रही है।
सूर्यके समान उनका तेज है, तीन नेत्र उनकी शोभा बढ़ा रहे हैं।
वे हाथोंमें माला, कुम्भ, कपाल और कमल लिये हुए हैं तथा उनके मस्तकमें अर्धचन्द्रका मुकुट सुशोभित है।
दैत्य धूम्रलोचन का संहार
ऋषि कहते हैं –
देवीका यह कथन सुनकर दूतको बड़ा अमर्ष हुआ और उसने दैत्यराजके पास जाकर, सब समाचार विस्तारपूर्वक कह सुनाया।
दूतके उस वचनको सुनकर दैत्यराज कुपित हो उठा और दैत्यसेनापति धूम्रलोचनसे बोला।
धूम्रलोचन! तुम शीघ्र अपनी सेना साथ लेकर जाओ और उसके केश पकड़कर घसीटते हुए, उसे बलपूर्वक यहाँ ले आओ।
उसकी रक्षा करनेके लिये, यदि कोई दूसरा खड़ा हो, तो वह देवता, यक्ष अथवा गन्धर्व ही क्यों न हो, उसे अवश्य मार डालना।
ऋषि कहते हैं –
शुम्भके इस प्रकार आज्ञा देनेपर वह धूम्रलोचन दैत्य साठ हजार असुरोंकी सेनाको साथ लेकर वहाँसे तुरंत चल दिया।
वहाँ पहुँचकर उसने हिमालयपर रहनेवाली देवीको देखा और ललकारकर कहा – अरी! तू शम्भ-निश्स्म्भके पास चल।
यदि इस समय प्रसत्रतापूर्वक मेरे स्वामीके समीप नहीं चलेगी, तो मैं बलपूर्वक पकड़कर घसीटते हुए, तुझे ले चलूँगा।
देवी बोलीं –
तुम्हें दैत्योंके राजाने भेजा है, तुम स्वयं भी बलवान् हो और तुम्हारे साथ विशाल सेना भी है; ऐसी दशामें, यदि मुझे बलपूर्वक ले चलोगे, तो मैं तुम्हारा क्या कर सकती हूँ?।
ऋषि कहते हैं –
देवीके यों कहनेपर असुर धूम्रलोचन उनकी ओर दौड़ा, तब अम्बिकाने “हुं” शब्दके उच्चारणमात्रसे उसे भस्म कर दिया।
फिर तो क्रोधमें भरी हुई दैत्योंकी विशाल सेना और अम्बिकाने एक-दूसरेपर तीखे शस्त्रों, शक्तियों तथा फरसोंकी वर्षा आरम्भ की।
इतनेमें ही देवीका वाहन सिंह क्रोधमें भरकर भयंकर गर्जना करके गर्दनके बालोंको हिलाता हुआ असुरोंकी सेनामें कूद पड़ा।
उसने कुछ दैत्योंको पंजोंकी मारसे, कितनोंको अपने जबड़ोंसे और कितने ही महादैत्योंको पटककर, ओठकी दाढोसे घायल करके मार डाला।
उस सिंहने अपने नखोंसे कितनोंके पेट फाड़ डाले और थप्पड मारकर कितनोंके सिर धडसे अलग कर दिये।
और कितनोंकी भुजाएँ और मस्तक काट डाले तथा अपनी गर्दनके बाल हिलाते हुए उसने दूसरे दैत्योंके पेट फाड़कर उनका रक्त चूस लिया।
अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए देवीके वाहन उस महाबली सिंहने क्षणभरमें ही असुरोंकी सारी सेनाका संहार कर डाला।
शुम्भने जब सुना कि देवीने धूम्रलोचन असुरको मार डाला तथा उसके सिंहने सारी सेनाका सफाया कर डाला, तब उस दैत्यराजको बड़ा क्रोध हुआ। उसका ओठ काँपने लगा।
उसने चण्ड और मुण्ड नामक दो महादैत्योंको आज्ञा दी।
हे चण्ड! और हे मुण्ड! तुम लोग बहुत बड़ी सेना लेकर वहाँ जाओ, उस देवीको पकड़कर अथवा उसे बाँधकर शीघ्र यहाँ ले आओ।
यदि इस प्रकार उसको लानेमें संदेह हो तो युद्धमें सब प्रकारके अस्त्र-शस्त्रों तथा समस्त आसुरी सेनाका प्रयोग करके उसकी हत्या कर डालना।
उसकी हत्या होने तथा सिंहके भी मारे जानेपर, उस अम्बिकाको बाँधकर साथ ले शीघ्र ही लौट आना।
इस प्रकार श्रीमार्कंडेय पुराण में, सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अंतर्गत, देवीमाहाम्य में छठा अध्याय पूरा हुआ।
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Durga Bhajan, Aarti, Chalisa
- अम्बे तू है जगदम्बे काली - दुर्गा माँ की आरती
- या देवी सर्वभूतेषु मंत्र - दुर्गा मंत्र - अर्थ सहित
- जगजननी जय जय माँ - अर्थसहित
- जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय
- आरती जगजननी मैं तेरी गाऊं
- आये तेरे भवन, देदे अपनी शरण
- भोर भई दिन चढ़ गया, मेरी अम्बे
- मन लेके आया मातारानी के भवन में
- माँ जगदम्बा की करो आरती
- आरती माँ आरती, नवदुर्गा तेरी आरती
- मात अंग चोला साजे, हर एक रंग चोला साजे
- धरती गगन में होती है, तेरी जय जयकार
- कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे
- तेरे दरबार में मैया ख़ुशी मिलती है
- सच्ची है तू सच्चा तेरा दरबार
- मन तेरा मंदिर आखेँ दिया बाती
- चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है