<< दुर्गा सप्तशती अध्याय (हिंदी में) – 08
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दुर्गा सप्तशती अध्याय 9 में देवी ने किस प्रकार निशुंभ नामक राक्षस का वध किया,
यह बताया गया है।
साथ ही साथ देवी के दूसरे स्वरूपों ने कैसे राक्षसों का संहार किया, इसका भी संक्षेप में वर्णन किया है।
दुर्गा सप्तशती के 700 श्लोकों में से इस अध्याय में 41 श्लोक आते हैं।
इस पेज में दुर्गा सप्तशती अध्याय – 9 हिंदी में दिया गया है। इस अध्याय के संस्कृत श्लोक अर्थसहित पढ़ने के लिए क्लिक करें –
दुर्गा सप्तशती अध्याय – 9 श्लोक अर्थसहित
दुर्गा सप्तशती अध्याय 9 – ध्यान
मैं अर्धनारीश्वरके श्रीविग्रहकी निरन्तर शरण लेता (लेती) हूँ।
उसका वर्ण बन्धूकपुष्प और सुवर्णके समान रक्तपतिमिश्रित है।
वह अपनी भुजाओंमें सुन्दर अक्षमाला, पाश और वरद-मुद्रा धारण करता है;
अर्धचन्द्र उसका आभूषण तथा वह तीन नेत्रोंसे सुशोभित है।
राजा सुरथ ने कहा –
भगवन्! आपने रक्तबीज के वध से सम्बन्ध रखने वाला देवी-चरित्र का यह अद्भुत माहाम्य मुझे बतलाया।
अब रक्तबीज के मारे जाने पर क्रोध में भरे हुए शुम्भ और निशुम्भ ने, जो कर्म किया, उसे मैं सुनना चाहता हूं।
मेधा ऋषि कहते हैं –
राजन्! युद्ध में रक्तबीज तथा अन्य दैत्यों के मारे जाने पर शुम्भ और निशुम्भ के क्रोध की सीमा न रही।
अपनी विशाल सेना इस प्रकार मारी जाती देख निशुम्भ अमर्ष (क्रोध) में भरकर देवी की ऒर दौड़ा।
उसके साथ असुरों की प्रधान सेना थी।
उसके आगे पीछे तथा पार्श्व भाग में बड़े-बड़े असुर थे, जो क्रोध से ऒठ चबाते हुए देवी को मार डालने के लिए आए।
महापराक्रमी शुम्भ भी अपनी सेना के साथ मातृगणों से युद्ध करके क्रोधवश चंडिका को मारने के लिए आ पहुंचा।
तब देवी के साथ शुम्भ और निशुम्भ का घोर संग्राम छिड़ गया।
वे दोनों दैत्य मेघों की भांति बाणों की भयंकर वृष्टि कर रहे थे।
उन दोनों के चलाए हुए बाणों को चंडिका नेअपने बाणों के समूह से तुरंत काट डाला और शस्त्र समूहों की वर्षा करके उन दोनों दैत्यपतियों के अंगों में भी चोट पहुंचाई।
निशुम्भ ने तीखी तलवार और चमकती हुई ढाल लेकर देवी के वाहन सिंह के मस्तक पर प्रहार किया।
अपने वाहन को चोट पहुंचने पर देवी ने, क्षुरप्र नामक बाण से निशुम्भ की तलवार तुरंत ही काट डाली और उसकी ढाल को भी, जिसमें आठ चांद जड़े थे, खंड-खंड कर दिया।
ढाल और तलवार के कट जाने पर उस असुर ने शक्ति चलायी।
देवी ने चक्र से उसके भी दो टुकड़े कर दिए।
अब तो निशुम्भ क्रोध से जल उठा और उस दानव ने देवी को मारने के लिए शूल उठाया।
किंतु देवी ने समीप आने पर उसे भी मुक्के से मारकर चूर कर दिया।
तब उसने गदा घुमाकर चंडी के ऊपर चलायी, परंतु वह भी देवीके त्रिशूल से कटकर भस्म हो गयी।
तदनंतर दैत्यराज निशुम्भ को फरसा हाथ में लेकर आते देख देवी ने बाण समूहों से घायल कर उसे धरती पर सुला दिया।
उस भयंकर पराक्रमी भाई निशुम्भ के धराशायी हो जाने पर शुम्भ को बड़ा क्रोध हुआ और अम्बिका का वध करने के लिए वह आगे बढ़ा।
रथ पर बैठे-बैठे ही उत्तम आयुधों से सुशोभित अपनी बड़ी-बड़ी आठ अनुपम भुजाऒं से समूचे आकाश को ढंककर वह अद्भुत शोभा पाने लगा।
उसे आते देख देवी ने शंख बजाया और धनुष की प्रत्यंचा खींचकर गर्जना की।
साथ ही अपने घंटे के शब्द से, जो समस्त असुर-सैनिकों का तेज नष्ट करने वाला था, संपूर्ण दिशाऒं को व्याप्त कर दिया।
तदन्तर सिंह ने भी अपनी दहाड़ से, जिसे सुनकर बड़े-बड़े गजराजों का महान मद दूर हो जाता था, आकाश, पृथ्वी और दसों दिशाऒं को गुंजा दिया।
फिर काली ने आकाश में उछलकर अपने दोनों हाथों से पृथ्वी पर आघात किया।
उससे ऐसा भयंकर शब्द हुआ जिससे पहले के सभी शब्द शांत हो गए।
तत्पश्चात् शिवदूती ने दैत्यों के लिए अमङ्गलजनक अट्टहास किया।
इन शब्दों को सुनकर समस्त असुर थर्रा उठे; किंतु शुम्भ को बड़ा क्रोध हुआ।
उस समय देवी ने जब शुम्भ को लक्ष्य करके कहा – ऒ दुरात्मन! खड़ा रह, खड़ा रह।
तभी आकाश में खड़े हुए देवता बोल उठे – जय हो, जय हो।
शुम्भ ने वहां आकर ज्वालाऒं से युक्त अत्यंत भयानक शक्ति चलाई।
अग्निमय पर्वत के समान आती हुई उस शक्ति को देवी ने काट दिया।
उस समय शुम्भ के सिंहनाद से तीनों लोक गूंज उठे।
राजन्! उसकी प्रतिध्वनि से वज्रपात के समान भयानक शब्द हुआ।
शुम्भ के चलाए हुए बाणों को देवी ने और देवीके चलाए हुए बाणों को शुम्भ ने सैकड़ों टुकड़े कर दिए।
तब क्रोध में भरी हुई चंडिका ने शुम्भ को शूल से मारा।
उसके आघात से मूर्च्छित हो वह पृथ्वी पर गिर पड़ा।
इतने में ही निशुम्भ को चेतना हुई और उसने धनुष हाथ में लेकर बाणों से देवी काली तथा सिंह को घायल कर डाला।
फिर उस दैत्यराज ने दस हजार बांहें बनाकर चक्रों के प्रहार से चंडिका को आच्छादित कर दिया।
तब दुर्गम पीड़ा का नाश करने वाली भगवती दुर्गा ने कुपित होकर अपने बाणों से उन चक्रों तथा बाणों को काट गिराया।
यह देख निशुम्भ दैत्य सेना के साथ चंडिका का वध करने के लिए हाथ में गदा ले बड़े वेग से दौड़ा।
उसके आते ही चंडी ने तीखी धारवाली तलवार से उसकी गदा को शीघ्र ही काट डाला।
तब उसने शूल हाथ में ले लिया।
देवताऒं को पीड़ा देने वाले निशुम्भ को शूल हाथ में लिए आते देख चंडिका ने वेग से चलाए हुए अपने शूल से उसकी छाती छेद डाली।
शूलसे विदीर्ण हो जाने पर उसकी छाती से एक दूसरा महाबली एवं महापराक्रमी पुरुष – खड़ी रह, खड़ी रह – कहता हुआ निकला।
उस निकलते हुए पुरुष की बात सुनकर देवी ठठाकर हँस पड़ीं और खड्ग से उन्होंने उसका मस्तक काट डाला।
फिर तो वह पृथ्वी पर गिर पड़ा।
तदनतर सिंह अपनी दाढ़ों से असुरों की गर्दन कुचलकर खाने लगा।
यह बड़ा भयंकर दृश्य था।
उधर काली तथा शिवदूती ने भी अन्यान्य दैत्यों का भक्षण आरम्भ किया।
कौमारी की शक्ति से विदीर्ण होकर कितने ही महादैत्य नष्ट हो गए।
ब्रह्माणी के मंत्रयुक्त जल से निस्तेज होकर कितने ही भाग खड़े हुए।
कितने ही दैत्य माहेश्वरी के त्रिशूल से छिन्न-भिन्न हो धराशायी हो गए।
वाराही के शस्त्रों के आघात से कितनों का पृथ्वी पर कचूमर निकल गया।
वैष्णवी ने भी अपने चक्र से दानवों के टुकड़े-टुकड़े कर डाले।
ऐंद्री के हाथ से छूटे हुए वज्र से भी कितने ही प्राणों से हाथ धो बैठे।
कुछ असुर नष्ट हो गए, कुछ उस महायुद्ध से भाग गए तथा कितने ही काली, शिवदूती तथा सिंह के ग्रास बन गए।
इस प्रकार श्रीमार्कडेयपुराण में, सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अतर्गत, देवीमाहाम्य में, निशुम्भ-वध नामक, नवां अध्याय पूरा हुआ।
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Durga Bhajan, Aarti, Chalisa
- अम्बे तू है जगदम्बे काली - दुर्गा माँ की आरती
- या देवी सर्वभूतेषु मंत्र - दुर्गा मंत्र - अर्थ सहित
- जगजननी जय जय माँ - अर्थसहित
- जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय
- आरती जगजननी मैं तेरी गाऊं
- आये तेरे भवन, देदे अपनी शरण
- भोर भई दिन चढ़ गया, मेरी अम्बे
- मन लेके आया मातारानी के भवन में
- माँ जगदम्बा की करो आरती
- आरती माँ आरती, नवदुर्गा तेरी आरती
- मात अंग चोला साजे, हर एक रंग चोला साजे
- धरती गगन में होती है, तेरी जय जयकार
- कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे
- तेरे दरबार में मैया ख़ुशी मिलती है
- सच्ची है तू सच्चा तेरा दरबार
- मन तेरा मंदिर आखेँ दिया बाती
- चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है