गायत्री मंत्र – अर्थसहित
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्॥
ॐ भूर्भुवः स्वः (ॐ भूर भुवः स्वः)
तत्सवितुर्वरेण्यं (तत सवितुर वरेण्यम) ।
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्॥
गायत्री मंत्र – अर्थ
- ॐ – सर्वत्र, सदा, सर्वथा रक्षक, प्रणव अक्षर
- भूर – प्राणाधार, प्राण प्रदाण करने वाला
- भुवः – दुःखनाशक, दुख़ों का नाश करने वाला
- स्वः – सुखस्वरूप, सुखदाता, सुख़ प्रदाण करने वाला
- तत – वह (प्रभु)
- सवितुर – सूर्य की भांति उज्जवल, उत्पन्न करने वाला
- वरेण्यम – सबसे उत्तम, सर्वश्रेष्ठ
- भर्गो – शुद्धस्वरूप, पापनाशक, कर्मों का उद्धार करने वाला
- देवस्य – दिव्यस्वरूप का, प्रभु का
- धीमहि – हम ध्यान करते हैं
- धियो – बुद्धि को
- यो – जो
- नः – हमारी
- प्रचोदयात् – सद्बुद्धि प्रदान करें, हमें शक्ति दें, सन्मार्ग में प्रेरित करे
गायत्री मंत्र – भावार्थ
गायत्री मंत्र अर्थ – 1
- हे दयालु परमात्मा, आप अपनी असीम कृपा से हमारी सदा रक्षा करते हैं।
- आप ही हमारे जीवनाधार हैं।
- अपने सेवको के दुःखो को दूर करके उन को सूख देने वाले हैं।
- आप सर्वत्र सप्रतिष्टित और सुप्रसिद्ध है।
- आप से ही यह सारा जगत् उत्पन्न हुआ है।
- आप सर्वोत्तम, शुद्ध, पवित्र, और ज्ञानस्वरूप हैं।
- आप ही सकल शुभ गुणों की खान हैं।
- आप का हम प्रतिदिन ध्यान करें और
- आप हमे विवेकशीलता और सद्बुद्धि प्रदान करें।
गायत्री मंत्र अर्थ – 2
- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें।
- वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
गायत्री मंत्र अर्थ – 3
- ईश्वर प्राणाधार, दुःखनाशक तथा सुख स्वरूप है।
- हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें।
- जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर बढ़ाने के लिए पवित्र प्रेरणा दें।
गायत्री मंत्र का महत्व
ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥
ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमको दिऐ हैं, उनमें से एक अनुपम रत्न गायत्री मंत्र है। गायत्री मंत्र में ऐसी शक्ति सन्निहित है, जो महत्वपूर्ण कार्य कर सकती है। इस मंत्र का जप करने से बडी-बडी सिद्धियां मिल जाती हैं। यह मंत्र छोटा है, पर इसकी शक्ति बड़ी है।
गायत्री मंत्र सदबुद्धि का भी मंत्र है, जिससे बुद्धि पवित्र होती है, इसलिऐ इस मंत्रो का मुकुटमणि कहा गया है।
गायत्री मंत्र का निरन्तर जप आत्माओं की उन्नति के लिए उपयोगी है। गायत्री का स्थिर चित्त और शान्त हृदय से किया हुआ जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है।
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्।
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ईश्वर की प्रार्थना
हे जगतके कारण सत-स्वरूप परमात्मा! तुझे नमस्कार है।
हे सर्वलोकोंके आश्रय चित-स्वरूप! तुझे नमस्कार है।
हे मुक्ति प्रदान करनेवाले अद्वैततत्त्व! तुझे नमस्कार है।
शाश्वत और सर्वव्यापी ब्रह्म! तुझे नमस्कार है।
तुम्हीं एक शरणमें जाने योग्य अर्थात् आश्रय-स्थान हो, तुम्हीं एक पूजा करने योग्य हो।
तुम्हीं एक जगतके पालक और अपने प्रकाशसे प्रकाशित हो।
तुम्हीं एक जगतके कर्ता, पालक और संहारक हो।
तुम्हीं एक निश्चल और निर्विकल्प हो।
तुम प्राणियोंकी गति हो और पावनोंको पावन करनेवाले हो।
अत्यन्त उच्च पदोंके तुम्हीं नियन्त्रण करनेवाले हो, तुम पर-से-परे हो, रक्षण करनेवालोंका भी रक्षण करनेवाले हो ।
हम तुम्हारा स्मरण करते हैं, हम तुमको भजते हैं।
हम तुम्हें जगतके साक्षिरूपमें नमस्कार करते हैं।
सत-स्वरूप, निरालम्ब तथा एकमात्र शरण लेनेयोग्य आश्रय इस भवसागरके नौकारूप ईश्वरके हम शरण जाते हैं ।
सर्वशक्तिमान प्रभु जो सबके हृदयको देखते हैं, सबकी अभिलाषाओं को जानते हैं और जिन से कोई भी भेद छिपा नहीं है, वे अपने दिव्य आत्माकी प्रेरणा से हमारे ह्रदय के विचारों को शुद्ध करें और हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
ईश्वर की प्रार्थना, आराधना और ध्यान
ईश्वर सत्यस्वरूप, ज्ञानस्वरूप और अनंतस्वरूप है। वे आनंद, शक्ति और अमृत-तत्वके मूल है। वे कल्याणमय, अद्वितीय, पवित्र, निरंजन, निराकार, सर्वशक्तिमान व सर्वव्यापी है। वे ही सृष्टिकर्ता और प्रतिपालक है।
ईश्वर ही मूल सत्य है। इस सृष्टि के पहले कुछ नहीं था, वह ईश्वर ही थे। उस समय न दिन था न रात। पृथ्वी, आकाश, अंतरिक्ष, जल, वायु, पर्वत, नदी, वृक्ष, लता आदि कुछ भी नहीं थे। ईश्वर ने अपनी इच्छा से इन सब का सृजन किया। ईश्वर में से ही सब पदार्थों की सृष्टि हुई है। प्रत्येक पदार्थ में प्राण रूप से परमेश्वर ही ओतप्रोत है।
वे सर्वज्ञ, सर्व-साक्षी, और प्रत्येक घटना के निरीक्षक है। उनसे छिपाकर कुछ भी नहीं रखा जा सकता।
वे अंतर्यामी, असीम, अनंत तथा मनवाणी के अगोचर है, स्वयंज्योति और स्वयंभू है। वे स्वयं यदि मनुष्य के ह्रदय में प्रकट ना हो तो मनुष्य उनके दर्शन करने में असमर्थ है।
वे आनंद, शांति और अमृत के निर्झर है। मंगलदाता, पवित्र और सचेत जागृत भाव से सर्वव्यापक है।
इस प्रकार ईश्वर के स्वरूप का विचार करके उनकी पूजा करना और समस्त विश्व में उनकी महिमा के दर्शन कर भक्ति पूर्वक उन्हें प्रणाम करना आराधना है। ईश्वर के चिंतन का नाम ही ध्यान है।
परमेश्वर हमारे हृदय में विराजमान हैं इस प्रकार सतत चिंतन करने से अंतःकरण में प्रभु का प्रकाश होता है और प्रभु की दिव्य ज्योति के दर्शन होते हैं।
Gayatri Mantra
Anuradha Paudwal
Suresh Wadkar
Gayatri Mantra
Om Bhur Bhuvah Swaha,
Tat Savitur Varenyam
Bhargo Devasya Dhimahi,
Dhiyo Yo Nah Pracho Dayat
We meditate on the glory of that Being who has produced this universe; may He enlighten our minds.
Let us meditate on Isvara and His Glory who has created the Universe, who is fit to be worshipped, who is the remover of all sins and ignorance. May he enlighten our intellect.
Om Bhur Bhuvah Swaha,
Tat Savitur Varenyam
Bhargo Devasya Dhimahi,
Dhiyo Yo Nah Pracho Dayat
- Om – Brahma or Almighty God, Para Brahman;
- Bhur – Bhuloka (Physical Plane), embodiment of vital spiritual energy (prana)
- Bhuvah – antariksha, destroyer of sufferings
- Svah – svarga loka, embodiment of happiness
- Tat – paramatma, that
- Savitur – isvara (surya), bright, luminous like the Sun
- Varenyam – fit to be worshipped, best, most exalted
- Bhargo – remover of sins and ignorance, destroyer of sins
- Devasya – glory, divine (jnana svaroopa)
- Dheemahi – We meditate
- Dhiyo – Buddhi (Intellect)
- Yo – which, who
- Nah – our
- Prachodayat – enlighten, may inspire
Let us meditate on that excellent glory of the divine vivifying Sun, May he enlighten our understandings.
We meditate on the effulgent glory of the divine Light; may he inspire our understanding.
We meditate on the adorable glory of the radiant sun; may he inspire our intelligence.
Om Bhur Bhuvah Swaha,
Tat Savitur Varenyam
Bhargo Devasya Dhimahi,
Dhiyo Yo Nah Pracho Dayat
Durga Bhajans
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