है कण कण में झांकी भगवान की
है कण कण में
झांकी भगवान् की।
किसी सूझ वाली आँख ने
पहचान की॥
है कण कण में
झांकी भगवान् की।
किसी सूझ वाली आँख ने
पहचान की॥
नामदेव ने पकाई,
रोटी कुत्ते ने उठाई,
पीछे घी का कटोरा लिए जा रहे।
बोले रुखी तो ना खाओ,
थोडा घी तो लेते जाओ,
रूप अपना क्यूँ मुझ से छिपा रहे।
तेरा मेरा एक नूर,
फिर काहे को हुजूर,
तुने शक्ल बनाली है श्वान की,
मुझे ओढनी उढा दी है इंसान की॥
है कण कण में
झांकी भगवान् की।
किसी सूझ वाली आँख ने
पहचान की॥
निगाह मीरा की निराली,
पीली जहर की प्याली,
ऐसा गिरधर बसाया हर श्वास में।
आया जब काला नाग,
बोली धन्य मेरे भाग,
प्रभु आए आप सांप के लिबास में।
आओ आओ बलिहार,
काले किशन मुरार,
बड़ी किरपा है किरपा निधान की
धन्यवादी हूँ मैं आप के एहसान की॥
है कण कण में
झांकी भगवान् की।
किसी सूझ वाली आँख ने
पहचान की॥
गुरु नानक कबीर
नही जिनकी नजीर,
देखा पत्ते पत्ते में निराकार को।
(नजीर – मिसाल, उदाहरण,
उनके जैसी मिसाल दुनिया में नहीं है)
नज़दीक और दूर,
यही हाजिर हुजुर,
यही सार समझाया संसार को।
कहे दास में जहान, शहर, गाँव, बियावान,
मेहरबानियाँ हैं उसी मेहरबान की।
सारी चीज़ें हैं ये एक ही दूकान की॥
है कण कण में
झांकी भगवान् की।
किसी सूझ वाली आँख ने
पहचान की॥
इसी तरह सूरदास,
सूझ जिनकी थी ख़ास,
जिनके नैनो में नशा हरी नाम का।
हुए नयन जब बंद,
तब पाया वह आनंद,
आया नज़र नज़ारा घनश्याम का।
सारे जग को बताया,
हर जगह वो समाया,
आयी नयनो में रोशनी ज्ञान की,
देखी झूम झूम झांकीया भगवान की॥
है कण कण में
झांकी भगवान् की।
किसी सूझ वाली आँख ने
पहचान की॥
है कण कण में
झांकी भगवान् की।
किसी सूझ वाली आँख ने
पहचान की॥
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Hai Kan Kan Me Jhanki Bhagwan Ki
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Hai Kan Kan Me Jhanki Bhagwan Ki
Hai kan kan me
jhanki bhagwan ki
Kisi soojh wali aankh ne
pahchaan ki
Hai kan kan me
jhaanki bhagwan ki
Kisi soojh wali aankh ne
pahchaan ki
Naamadev ne pakai,
roti kutte ne uthai,
pichhe ghee ka katora liye ja rahe.
Bole rukhi to na khao,
thoda ghi to lete jao,
roop apana kyoon mujh se chhupa rahe.
Tera mera ek noor,
phir kaahe ko hujoor,
tune shakl banaali hai shwaan ki,
mujhe odhani udha di hai insaan ki.
Hai kan kan me
jhaanki bhagwan ki
Kisi soojh wali aankh ne
pahchaan ki
Nigaah Meera ki niraali,
peeli jahar ki pyaali,
aisa Girdhar basaaya har shvaas mein.
Aaya jab kaala naag,
boli dhanya mere bhaag,
prabhu aaye aap saap ke libaas mein.
Aao aao balihaar,
kaale Kishan Muraari,
badi kirapa hai kirapa nidhaan ki
dhanyavaadi hoon main aap ke ehsaan ki.
Hai kan kan me
jhaanki bhagwan ki
Kisi soojh wali aankh ne
pahchaan ki
Guru Nanak Kabir, nahi jinki najir,
dekha patte patte mein niraakaar ko.
(Najir – misaal, example,
unke jaisi misaal duniya me nahi hai)
Nazadik aur door, yahi haajir hujur,
yahi saar samajhaaya sansaar ko.
Kahe daas me jahaan, shahar, gaanv, biyaavaan,
meharbaaniya hai usi meharbaan ki.
Saari cheeze hain ye ek hi dukaan ki.
Hai kan kan me
jhaanki bhagwan ki
Kisi soojh wali aankh ne
pahchaan ki
Isi tarah Soordas,
soojh jinaki thi khaas,
jinake naino mein nasha hari naam ka.
Huye nayan jab band,
tab paaya vah anand,
aaya nazar nazaara Ghanshyaam ka.
Saare jag ko bataaya,
har jagah woh samaaya,
aayi nayano mein roshani gyaan ki,
dekhi jhoom jhoom jhaankiya bhagwan ki.
kan kan me hai
jhaanki bhagwan ki
Kisi soojh wali aankh ne
pahchaan ki
Hai kan kan me
jhaanki bhagwan ki
Kisi soojh wali aankh ne
pahchaan ki