सिर्फ वेश भूषा देखकर, किसी को ईश्वर भक्त ना माने
बहुत से लोग छली, पाखण्डी और दुष्ट पुरुषोंको ही
उनके बाहरका भेष देखकर ईश्वरभक्त मान बैठते हैं।
जैसे रावण एक अहंकारी पुरुष था,
किंतु उसने कपटवेश धारण करके
सीताजी का हरण कर लिया था।
उसी प्रकार आज के युग में भी
कुछ पाखंडी कपटवेश धारण कर लेते हैं और
अपने आप को ईश्वर का भक्त कहते हैं।
यदि लोग इन दुष्ट पुरुषों का कपट रूप पहले से जान लें,
तो उनके माया जालसे बच सकते हैं।
ऐसे लोगों से बचें
कुछ पाखंडी मनुष्य,
सिर्फ ऊपर से ईश्वर भक्ति का स्वांग दिखाया करते हैं।
लेकिन, उनके मनके भीतर
छल और पाखंड के विचार भरे होते हैं।
इसलिए उन्हें ईश्वर भक्त नहीं समझना चाहिए,
और ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए।
तो ईश्वर भक्त की पहचान क्या है?
भगवान ने भगवद गीता के अध्याय 12 के श्लोक 13 और 14 में ईश्वर भक्त की पहचान बतलाई है –
अद्वेष्टा सर्वभूतानां,
मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहङ्कारः,
समदुःखसुखः क्षमी॥
संतुष्टः सततं योगी,
यतात्मा दृढ़निश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो,
मद्भक्तः स मे प्रियः॥
ईश्वर भक्त के दस महत्वपूर्ण गुण
1
ईश्वरभक्त किसी भी जीव से
द्वेष या घृणा का भाव नहीं रखता है।
सब भूतों में द्वेष भाव से रहित होता है।
2
बिना किसी इच्छा या स्वार्थ के
सभी जीवों पर दया करता है।
अर्थात स्वार्थ रहित सबका प्रेमी और
हेतु रहित दयालु होता है।
3
किसी भी व्यक्ति के प्रति राग या आसक्ति नहीं होती है।
अर्थात ममता से रहित है।
4
किसी भी बात में अहंकार की भावना नहीं रहती है।
5
सुख दुःखमें एक भावसे रहता है।
सुख-दुःखों की प्राप्ति में सम रहता है।
6
हानि या लाभमें एकसा संतुष्ट रहता है।
निरन्तर संतुष्ट रहता है।
7
मनसहित इन्द्रियोंको अपने वशमें रखता है।
8
अपराध करने वाले को भी अभय देने वाला होता है।
क्षमावान होता है।
9
ईश्वरमें दृढ़ निश्चय वाला होता है, और
10
मन और बुद्धि को ईश्वर के चरणों में अर्पण किए हुए रहता है।
जो लोग सादा चालचलन रखते हैं,
मन और इंद्रियों को वश में रखते हैं,
सच्चाई की राह पर चलते हैं,
ऐसे लोगों में ईश्वर के लिए प्रेम होता है और
वेही ईश्वर के सच्चे भक्त है।
ऐसा मनुष्य ईश्वर भक्त नहीं हो सकता
जिसने मन का अहंकार दूर नहीं किया,
जिसका क्रोध नहीं गया है,
जो अविद्या के अन्धकारमें फंसा हुआ है,
जिसकी आशाएं, इच्छाएं नहीं मिटी हैं,
किसी भी वस्तु में या जीव से आसक्ति बनी हुई है,
जो अच्छे पुरुषोंका संग नहीं करता है,
उसे ईश्वरभक्त नहीं समझना चाहिये।
ईश्वर भक्त का सरल स्वभाव
ईश्वरभक्त उसे ही समझना चाहिये,
जो दूसरोंको दुःख न दे,
सबकी भलाई करता रहे,
किसीका माल न छिपा रक्खे,
सब धर्मकथाओंको प्रेमसे सुने,
ईश्वरकी उपासना, पाठ, पूजा, ध्यान आदि समयानुसार करता रहे,
उसे अवश्य ईश्वरभक्त समझना चाहिये ।
ईश्वरभक्तके भाव बहुत ही शुद्ध और पवित्र हो जाते हैं।
ईश्वरभक्तका स्वभाव सरल होता है।
वह सबका हितैषी होता है।
शरीरके श्रृंगार में उसकी रूचि नहीं रहती है और
सादगी से प्रेम होता है।
भक्तियोग – List
- गीता के अनुसार मनुष्य का भविष्य कैसे बनता है?
- भगवान् शिव के विभिन्न स्वरूपोंका और गुणोंका ध्यान
- जीवन का उद्देश्य क्या है?
- ॐ नमः शिवाय - पंचाक्षर मन्त्रका महत्व - शिवपुराण से
- रामभक्त हनुमानजी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
- महर्षि भृगु और पिता वरुण की कथा – 5 ध्यान
- मन को नियंत्रण में करने के 15 उपाय
- दुःख की परिस्थिति से लाभ
- ईश्वर भक्त के दस गुण – ईश्वर भक्त की पहचान
- ध्यान कैसे करना चाहिये? जप, साकार और निराकार ध्यान