जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय – अर्थसहित
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
- जगजननी – समस्त संसारकी माता
- जय जय माँ – सदा सर्वदा आपकी जय हो
- जगजननी जय जय – समस्त संसारकी माता! सदा आपकी जय हो।
- भयहारिणी – संसारके समस्त भयको (कष्टोंको) हरनेवाली (दूर करनेवाली),
- भवतारिणी – संसारका उद्धार करनेवाली एवं
- भवभामिनि – संसारको सुशोभित करनेवाली सर्वसुंदरी,
- जय जय – जगत् माता! आपकी जय हो॥
तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥
- तू ही सत्-चित्-सुखमय – आप सच्चिदानंद हैं,
- शुद्ध ब्रह्मरूपा – आप ब्रह्मस्वरूपा हैं।
- सत्य सनातन, सुन्दर – आप सत्य, सनातन, सुंदर,
- पर-शिव – कल्याणकारिणी और
- सुर-भूपा – देवरूप हैं॥
आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥
- आदि – आप आदि (प्रारंभ),
- अनादि – नित्य,
- अनामय – निरोग, रोग से रहित, दोष रहित
- अविचल – स्थिर,
- अविनाशी – अक्षय (जिसका नाश नहीं होता है)।
- अमल – पवित्र,
- अनन्त – शाश्वत, जिसका अंत न हो,
- अगोचर – इंद्रियातीत, इंद्रियोंसे परे,
- अज आनन्दराशी – अज (सतत) आनंदराशि हैं॥
अविकारी, अघहारी, सकल कलाधारी।
कर्ता विधि भर्ता हरि हर संहारकारी॥
कर्ता विधि भर्ता हरि हर संहारकारी॥
- अविकारी – आप नित्य विकाररहित (अर्थात विकारों से मुक्त) हैं
- अघहारी – आप ही समस्त पापोंको दूर करनेवाली अघहारी हैं
- सकल कलाधारी – आप समस्त कलाओंको धारण करनेवाली एवं कलामुक्त हैं।
- कर्ता विधि – आप ही इस सृष्टिकी रचना करनेवाली ब्रह्मा हैं,
- भर्ता – भरण-पोषण करनेवाली विष्णुरूप तथा
- हरि हर संहारकारी – संहार करनेवाली साक्षात शिवरूप हैं॥
तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥
- तू विधिवधू – हे जगत-जननी। आप ही ब्राह्मी,
- रमा – लक्ष्मी,
- तू उमा महामाया – पार्वती और महामाया हैं।
- मूल प्रकृति – आप मूल कृति हैं,
- विद्या तू – आप विद्याको जन्म देने तथा
- तू जननी जाया – विद्याको विकसित करनेवाली हैं॥
राम, कृष्ण, तू सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वाँछा कल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा॥
तू वाँछा कल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा॥
- राम, कृष्ण, तू – आपकी ही छवि राम, कृष्ण रूपमें विद्यमान हैं।
- सीता, ब्रजरानी राधा – आपकी ही छवि सीता एवं राधाके रूपमें विद्यमान हैं।
- तू वाँछा कल्पद्रुम – समस्त कामनाओंको पूर्ण करनेवाली कल्पवृक्ष हैं तथा
- हारिणि सब बाधा – विभिन्न (सर्व) बाधाओंको नष्ट करनेवाली हैं॥
दश विद्या, नव दुर्गा, नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥
- दश विद्या, नव दुर्गा – आप ही दसों विद्या युक्त नवदुर्गारूप हैं।
- नाना शस्त्रकरा – नाना शस्त्र हाथोंमें धरे दुर्गारूप हैं।
- अष्टमातृका, योगिनि – आप अष्टमातृका रूप और योगिनी रूप तो हैं ही,
- नव-नव रूप धरा – साथ ही नित्य नए-नए रूपोंको धारण करनेवाली हैं॥
तू परधाम निवासिनि, महा-विलासिनि तू।
तू ही शमशान विहारिणि, ताण्डव लासिनि तू॥
तू ही शमशान विहारिणि, ताण्डव लासिनि तू॥
- तू परधाम निवासिनि – आप ही परम् धाम हैं
- महा-विलासिनि तू – आप परमशक्तिमयी भी हैं।
- तू ही शमशान विहारिणि – आप ही श्मशानमें विहार करनेवाली एवं
- ताण्डव लासिनि तू – ताण्डव मचा देनेवाली हैं॥
सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी धारा॥
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी धारा॥
- सुर-मुनि मोहिनि सौम्या – देवताओं और मुनियोंको मोहनेवाली
- तू शोभाधारा – हे माता! आप दिव्य कांतिमय दुर्गा हैं।
(हे माता ! आप अपने दिव्य कांतिमय दुर्गा रूपमें जहां एक ओर देवताओं और मुनियोंको मोहनेवाली हैं, वहीं)
- विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी धारा – अपने विकराल स्वरूपमें साक्षात् प्रलयकारी धारा भी हैं॥
तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥
- तू ही स्नेहसुधामयी – हे माता! आप अपने भक्तोंके लिए प्रेमकी अमृतमयी धारा एवं सरलचित्त हैं,
- तू अति गरलमना – तो दुष्टजनोंके लिए विषमय भी हैं।
- रत्नविभूषित तू ही – आप रत्नोंसे विभूषित,
- तू ही अस्थि तना – तो दूसरी ओर अस्थियोंका अलंकार भी आपने ही धारण किया है॥
मूलाधार निवासिनि, इहपर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वर दे॥
कालातीता काली, कमला तू वर दे॥
- मूलाधार निवासिनि – आप ही संसारकी मूलाधार हैं।
- इहपर सिद्धिप्रदे – आप ही इहलोक (संसार) एवं परलोक (स्वर्ग) दोनोंमें ही सिद्धि दायिनी हैं।
- कालातीता काली – आप ही कालबंधनसे मुक्त काली हैं,
- कमला – आप ही लक्ष्मी हैं,
- तू वर दे – हे देवी! आप मुझे वरदान दें॥
शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले वेदत्रयी॥
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले वेदत्रयी॥
- शक्ति – आप ही शक्ति (ऊर्जा का स्रोत) एवं
- शक्तिधर तू ही – आप ही विभिन्न शक्तियोंको धारण करनेवाली
- नित्य अभेदमयी – शाश्वत देवी हैं।
- भेद प्रदर्शिनि – आप ही अनेक भेदोंको (रहस्योंको) प्रकट करनेवालीं
- वाणी विमले – विमल वाणी (सरस्वती) हैं।
- वेदत्रयी – आप ही त्रिवेद (तीनों वेद) हैं॥
हम अति दीन दुखी माँ, विपट जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥
- हम अति दीन दुखी माँ – हम सब दीन दुःखी एवं
- विपट जाल घेरे – विपत्ति ग्रस्त आपके बालक हैं।
- हैं कपूत अति कपटी – हम भले ही कपूत हों, कपटी हों;
- पर बालक तेरे – परंतु आपके बालक हैं॥
निज स्वभाववश जननी, दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी, चरण शरण दीजै॥
करुणा कर करुणामयी, चरण शरण दीजै॥
- निज स्वभाववश जननी – आपका ही अनुपम ताप सर्व व्याप्त है। अपने मातृरूपकी रक्षा कीजिए,
- दयादृष्टि कीजै – अपनी दयादृष्टि रखिए।
- करुणा कर करुणामयी – करुणामयी होनेके कारण हम सब बालकोंपर दया कीजिये और
- चरण शरण दीजै – अपने श्रीचरणोंमें आश्रय दीजिए॥
(For download – Durga Bhajan Download 2)
Durga Bhajan List
- अम्बे तू है जगदम्बे काली - दुर्गा माँ की आरती
- या देवी सर्वभूतेषु मंत्र - दुर्गा मंत्र - अर्थ सहित
- अयि गिरिनंदिनि - महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र
- जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
- दुर्गा चालीसा - नमो नमो दुर्गे सुख करनी
- जगजननी जय जय माँ - अर्थसहित
- जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय
- आरती जगजननी मैं तेरी गाऊं
- आये तेरे भवन, देदे अपनी शरण
- भोर भई दिन चढ़ गया, मेरी अम्बे