जय जय सुरनायक, जन सुखदायक – अर्थसहित
देवताओं द्वारा प्रभु श्री राम के अवतार के लिए प्रार्थना (अवतार हेतु निवेदन)
प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी, जय असुरारी,
सिधुंसुता प्रिय कंता॥
- जय जय – आपकी जय हो! जय हो!!
- सुरनायक – हे देवताओंके स्वामी,
- जन सुखदायक – सेवकोंको सुख देनेवाले,
- प्रनतपाल भगवंता – शरणागतकी रक्षा करनेवाले भगवान्!
- गो द्विज हितकारी – हे गोब्राह्मणोंका हित करनेवाले,
- जय असुरारी – असुरोंका विनाश करनेवाले,
- सिधुंसुता प्रिय कंता – समुद्रकी कन्या ( श्रीलक्ष्मीजी) के प्रिय स्वामी!
आपकी जय हो ।
हे देवताओंके स्वामी, सेवकोंको सुख देनेवाले, शरणागतकी रक्षा करनेवाले भगवान्! आपकी जय हो! जय हो!!
हे गोब्राह्मणोंका हित करनेवाले, असुरोंका विनाश करनेवाले, श्रीलक्ष्मीजी के प्रिय स्वामी! आपकी जय हो।
मरम न जानइ कोई।
जो सहज कृपाला, दीनदयाला,
करउ अनुग्रह सोई॥
- पालन सुर धरनी – हे देवता और पृथ्वीका पालन करनेवाले!
- अद्भुत करनी – आपकी लीला अद्भुत है,
- मरम न जानइ कोई – उसका (आपकी लीला का) भेद कोई नहीं जानता।
- जो सहज कृपाला – ऐसे जो स्वभावसे ही कृपालु और
- दीनदयाला – दीनदयालु हैं
- करउ अनुग्रह सोई – वे ही हमपर कृपा करें।
हे देवता और पृथ्वीका पालन करनेवाले! आपकी लीला अद्भुत है, उसका भेद कोई नहीं जानता ।
ऐसे जो स्वभावसे ही कृपालु और दीनदयालु हैं, वे ही हमपर कृपा करें।
ब्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं,
मायारहित मुकुंदा॥
- जय जय – आपकी जय हो! जय हो!!
- अबिनासी – हे अविनाशी,
- सब घट बासी – सबके हृदयमें निवास करनेवाले ( अन्तर्यामी),
- ब्यापक – सर्वव्यापक,
- परमानंदा – परम आनन्दस्वरूप
- अबिगत गोतीतं – अज्ञेय, इन्द्रियोंसे परे,
- चरित पुनीतं – पवित्र चरित्र
- मायारहित – मायासे रहित
- मुकुंदा – मुकुन्द (मोक्षदाता)
हे अविनाशी, सबके हृदयमें निवास करनेवाले (अन्तर्यामी), सर्वव्यापक, परम आनन्दस्वरूप,
अज्ञेय, इन्द्रियोंसे परे, पवित्रचरित्र, मायासे रहित मुकुन्द (मोक्षदाता)! आपकी जय हो! जय हो!!
बिगतमोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं,
जयति सच्चिदानंदा॥
- जेहि लागि बिरागी – इस लोक और परलोकके सब भोगोंसे विरक्त मुनि
- अति अनुरागी – अत्यन्त अनुरागी (प्रेमी) बनकर तथा
- बिगतमोह मुनिबृंदा – मोहसे सर्वथा छूटे हुए ज्ञानी (मुनिवृन्द) भी
- निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं – जिनका रातदिन ध्यान करते हैं और जिनके गुणोंके समूहका गान करते हैं,
- जयति सच्चिदानंदा – उन सच्चिदानन्दकी जय हो।
(इस लोक और परलोकके सब भोगोंसे) विरक्त तथा मोहसे सर्वथा छूटे हुए (ज्ञानी) मुनिवृन्द भी अत्यन्त अनुरागी (प्रेमी) बनकर जिनका रातदिन ध्यान करते हैं और
जिनके गुणोंके समूहका गान करते हैं, उन सच्चिदानन्दकी जय हो ।
संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी,
जानिअ भगति न पूजा॥
- जेहिं सृष्टि उपाई – जिन्होंने सृष्टि उत्पत्र की,
- त्रिबिध बनाई – स्वयं अपनेको त्रिगुणरूप (ब्रह्मा, विष्णु शिवरूप) बनाकर
- संग सहाय न दूजा – बिना किसी दूसरे संगी अथवा सहायताके
- सो करउ अघारी – वे पापोंका नाश करनेवाले भगवान्
- चिंत हमारी – हमारी सुधि लें
- जानिअ भगति न पूजा – हम न भक्ति जानते हैं, न पूजा
जिन्होंने बिना किसी दूसरे संगी अथवा सहायकके अकेले ही बनाकर( या स्वयं अपनेको त्रिगुणरूप – ब्रह्मा, विष्णु शिवरूप में प्रगट कर), अथवा बिना किसी उपादानकारणके अर्थात् स्वयं ही सृष्टिका कारण बनकर तीन प्रकारकी सृष्टि उत्पत्र की, वे पापोंका नाश करनेवाले भगवान् हमारी सुधि लें। क्योंकि हम न भक्ति जानते हैं, न पूजा।
गंजन बिपति बरूथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी,
सरन सकल सुर जूथा॥
- जो भव भय भंजन – जो संसारके (जन्ममृत्युके) भयका नाश करनेवाले,
- मुनि मन रंजन – मुनियोंके मनको आनन्द देनेवाले और
- गंजन बिपति बरूथा – विपत्तियोंके समूहको नष्ट करनेवाले हैं,
- मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी – हम सब देवताओंके समूह मन, वचन और कर्मसे चतुराई करनेकी बान छोड्कर
- सरन सकल सुर जूथा – उन भगवान् की शरण आये हैं
जो संसारके (जन्ममृत्युके) भयका नाश करनेवाले, मुनियोंके मनको आनन्द देनेवाले और विपत्तियोंके समूहको नष्ट करनेवाले हैं, हम सब देवताओंके समूह मन, वचन और कर्मसे चतुराई करनेकी बान छोड्कर उन ( भगवान्) की शरण आये हैं।
जा कहुँ कोउ नहि जाना।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे
द्रवउ सो श्रीभगवाना॥
- सारद श्रुति सेषा – सरस्वती, वेद, शेषजी और
- रिषय असेषा – सम्पूर्ण ऋषि
- जा कहुँ कोउ नहि जाना – कोई भी जिनको नहीं जानते,
- जेहि दीन पिआरे – जिन्हें दीन प्रिय हैं,
- बेद पुकारे – ऐसा वेद पुकारकर कहते हैं,
- द्रवउ सो श्रीभगवाना – वे ही श्रीभगवान् हमपर दया करें।
सरस्वती, वेद, शेषजी और सम्पूर्ण ऋषि कोई भी जिनको नहीं जानते,
जिन्हें दीन प्रिय हैं, ऐसा वेद पुकारकर कहते हैं, वे ही श्रीभगवान् हमपर दया करें।
गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि सिद्ध सकल, सुर परम भयातुर,
नमत नाथ पद कंजा॥
- भव बारिधि मंदर – हे संसाररूपी समुद्रके (मथनेके) लिये मन्दराचलरूप,
- सब बिधि सुंदर – सब प्रकारसे सुन्दर,
- गुनमंदिर – गुणोंके धाम और
- सुखपुंजा – सुखोंकी राशि
- मुनि सिद्ध सकल, सुर परम भयातुर – नाथ! आपके चरणकमलोंमें मुनि, सिद्ध और
- नमत नाथ पद कंजा – सारे देवता भयसे अत्यन्त व्याकुल होकर नमस्कार करते हैं ।
हे संसाररूपी समुद्रके (मथनेके) लिये मन्दराचलरूप, सब प्रकारसे सुन्दर, गुणोंके धाम और सुखोंकी राशि नाथ! आपके चरणकमलोंमें मुनि, सिद्ध और सारे देवता भयसे अत्यन्त व्याकुल होकर नमस्कार करते हैं ।
जानि सभय सुर भूमि
सुनि बचन समेत सनेह।
गगनगिरा गंभीर भइ
हरनि सोक संदेह॥
जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा।
तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥
अंसन्ह सहित मनुज अवतारा।
लेहउँ दिनकर बस उदारा॥
- जानि सभय सुरभूमि – देवता और पृथ्वीको भयभीत जानकर और
- सुनि बचन समेत सनेह – उनके सेहयुत्ह वचन सुनकर
- गगनगिरा गंभीर भइ, हरनि सोक संदेह – शोक और सन्देहको हरनेवाली गम्भीर आकाशवाणी हुई
- जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा – हे मुनि, सिद्ध और देवताओंके स्वामियो! डरो मत।
- तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा – तुम्हारे लिये मैं मनुष्यका रूप धारण करूँगा और
- अंसन्ह सहित मनुज अवतारा, लेहउँ दिनकर बस उदारा – उदार (पवित्र) सूर्यवंशमें अंशोसहित मनुष्यका अवतार लूँगा। [
देवता और पृथ्वीको भयभीत जानकर और उनके सेहयुत्ह वचन सुनकर शोक और सन्देहको हरनेवाली गम्भीर आकाशवाणी हुई – हे मुनि, सिद्ध और देवताओंके स्वामियो! डरो मत । तुम्हारे लिये मैं मनुष्यका रूप धारण करूँगा और उदार (पवित्र) सूर्यवंशमें अंशोसहित मनुष्यका अवतार लूँगा।
(श्रीरामचरितमानस )
Ram Bhajans
- भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला - अर्थसहित
- श्री राम आरती - श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन - अर्थ सहित
- रघुपति राघव राजाराम - श्री राम धुन
- श्री राम, जय राम, जय जय राम - मंत्र 108
- श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में
- राम नाम के हीरे मोती - कृष्ण नाम के हीरे मोती
- सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
- हे राम, हे राम, जग में सांचो तेरो नाम
- शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं - अर्थ सहित
Jay Jay Surnayak Jan Sukhdayak
Sharma Bandhu
Prembhushan ji Maharaj
Jay Jay Surnayak Jan Sukhdayak with Meaning
जय जय सुरनायक, जन सुखदायक,
प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी, जय असुरारी,
सिधुंसुता प्रिय कंता॥
॥जय जय सुरनायक॥
पालन सुर धरनी, अद्भुत करनी,
मरम न जानइ कोई।
जो सहज कृपाला, दीनदयाला,
करउ अनुग्रह सोई॥
जय जय अबिनासी, सब घट बासी
ब्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं,
मायारहित मुकुंदा॥
॥जय जय सुरनायक॥
(नारायण नारायण नारायण।
भजमन नारायण नारायण।)
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी
बिगतमोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं,
जयति सच्चिदानंदा॥
जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई,
संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी,
जानिअ भगति न पूजा॥
॥जय जय सुरनायक॥
(नारायण नारायण नारायण।
भजमन नारायण नारायण नारायण॥)
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन,
गंजन बिपति बरूथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी,
सरन सकल सुर जूथा॥
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा,
जा कहुँ कोउ नहि जाना।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्
रवउ सो श्रीभगवाना॥
॥जय जय सुरनायक॥
(नारायण नारायण नारायण।
भजमन नारायण नारायण नारायण॥)
भव बारिधि मंदर, सब बिधि सुंदर,
गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि सिद्ध सकल, सुर परम भयातुर,
नमत नाथ पद कंजा॥
जय जय सुरनायक, जन सुखदायक,
प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी, जय असुरारी,
सिधुंसुता प्रिय कंता॥
॥जय जय सुरनायक॥
नारायण नारायण नारायण….।
श्रीमन, नारायण नारायण नारायण॥
भजमन, नारायण नारायण नारायण।
लक्ष्मी नारायण नारायण नारायण॥
दोहा:
जानि सभय सुरभूमि
सुनि बचन समेत सनेह।
गगनगिरा गंभीर भइ
हरनि सोक संदेह।
जय जय सुरनायक, जन सुखदायक,
प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी, जय असुरारी,
सिधुंसुता प्रिय कंता॥
Ram Bhajans
- ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां
- भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला
- राम नाम अति मीठा है, कोई गा के देख ले
- सुख के सब साथी, दुःख में ना कोई
- जय जय सुरनायक, जन सुखदायक - अर्थसहित
- कभी कभी भगवान को भी
- राम नाम के हीरे मोती - 2
- सीताराम सीताराम सीताराम कहिये
- राम रक्षा स्तोत्र - अर्थ सहित
- राम रक्षा स्तोत्र
- हम राम जी के, रामजी हमारे हैं
- तेरा राम जी करेंगे बेडा पार