मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी
मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी भजन के इस पेज में मैं आरती तेरी गाउँ के हिंदी लिरिक्स दिए गए है।
बाद में भजन का आध्यात्मिक महत्व दिया गया है, और भजन से हमें कौन कौन सी आध्यात्मिक बातें सिखने को मिलती है यह बताया गया है।
मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी।
मैं नित नित शीश नवाऊँ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी॥
है तेरी छबि अनोखी, ऐसी ना दूजी देखी।
तुझ सा ना सुन्दर कोई, ओ मोर मुकुटधारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….
जो आए शरण तिहारी, विपदा मिट जाए सारी।
हम सब पर कृपा रखना, ओ जगत के पालनहारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….
राधा संग प्रीत लगाई, और प्रीत की रीत चलायी।
तुम राधा रानी के प्रेमी, जय राधे रास बिहारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….
माखन की मटकी फोड़ी, गोपीन संग अखियाँ जोड़ी।
ओ नटखट रसिया तुझपे, जाऊं मैं तो बलिहारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….
जब जब तू बंसी बजाये, सब अपनी सुध खो जाएँ।
तू सबका सब तेरे प्रेमी, ओ कृष्ण प्रेम अवतारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….
मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी।
मैं नित नित शीश नवाऊँ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी॥
Main Aarti Teri Gaun, O Keshav Kunj Bihari
Krishna Bhajan
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- मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी
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मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी भजन का आध्यात्मिक महत्व
मैं आरती तेरी गाउँ भजन भगवान श्रीकृष्ण की आरती है, जिसमें उनकी सुंदरता, लीलाएं, प्रेम, कृपा और महिमा का गुणगान किया गया हैं।
इस भजन के माध्यम से हमें भक्ति, समर्पण, ईश्वर की शरण, और उनकी कृपा जैसी आध्यात्मिक बातों का संदेश मिलता है, जो हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकता हैं।
इस भजन में भगवान कृष्ण को अलग-अलग नामों से भी संबोधित किया गया है, जो उनके स्वरूप और स्वभाव का वर्णन करते हैं।
इस भजन की पंक्तियों से हमें कई आध्यात्मिक सन्देश मिलते हैं। तो आइए, इस भजन का आध्यात्मिक अर्थ समझकर ईश्वर की आराधना और भक्ति में लीन हो जाये।
हम भगवान की आरती क्यों करते है?
मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी।
जब हम कृष्ण की आरती करते है और उनके सामने सिर झुकाते है, तो हम अपने आराध्य भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और अपना समर्पण व्यक्त करते है।
यह हमारे मन में भगवान के प्रति गहरी श्रद्धा और विश्वास को जगाता है।
- केशव कुंज बिहारी – यह नाम भगवान कृष्ण को संदर्भित करता है, जो उनके विशेष भव्य रूप और वृंदावन में विहार करने की लीलाएं बयां करता हैं।
मैं नित नित शीश नवाऊँ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी॥
हे ईश्वर, मैं हर पल आपके सामने अपना सिर झुकाता हूं।
जब हम नियमित रूप से भगवान कृष्ण के सामने झुकाकर उनसे प्रार्थना करते है तो हमारे मन में उनके प्रति श्रद्धा और समर्पण की भावना प्रबल होती है। इससे क्या लाभ होता है, आगे की पंक्तियों में दिया गया है।
- मोहन कृष्ण मुरारी – भगवान कृष्ण का प्यारा नाम है, जो उनके मनोरम और मनमोहक स्वभाव को दर्शाता है।
हम अपनी विपदाओं को कैसे दूर करें?
जो आए शरण तिहारी, विपदा मिट जाए सारी।
कृष्ण वह हैं जो कठिनाइयों को दूर करते हैं और सुरक्षा प्रदान करते हैं। जो जो भगवान् की शरण जाता है, भगवान उन सब पर कृपा करते हैं।
इसलिए जब हम भगवान् की शरण में जाते हैं,
उनके सामने अपने आप को समर्पित करते है,
तो हमारी सारी परेशानियां और प्रतिकूलताएं दूर हो जाती हैं,
सारी विपदाएँ मिट जाती हैं।
ईश्वर की कृपा से हमें सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है, और हम जीवन में सुख और आनंद का अनुभव करते हैं।
यह पंक्ति हमारे मन में भगवान के प्रति पूर्ण विश्वास और भरोसे को दर्शाती है।
हम सब पर कृपा रखना, ओ जगत के पालनहारी॥
इसलिए हमें ईश्वर से अपने और सभी पर कृपा करने की प्रार्थना करनी चाहिए।
हे ईश्वर, हम सभी पर अपना आशीर्वाद और कृपा बनाए रखना।
- जगत के पालन-हारी – कृष्ण को संपूर्ण विश्व के पालनकर्ता और रक्षक के रूप में संदर्भित करता है।
इस प्रकार भजन की पंक्तियों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने आराध्य भगवान के प्रति भक्ति और समर्पण रखना चाहिए। हमें ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और भरोसा करना चाहिए। ईश्वर की कृपा से हम अपनी सभी विपदाओं से मुक्त हो सकते हैं।
यह भजन हमें यह भी बताता है कि हमें अपने जीवन में ईश्वर के सामने आत्म-समर्पण करना चाहिए, अपने आप को ईश्वर के हाथों में सौंप देना चाहिए। ईश्वर की कृपा से हम अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
Krishna Bhajan
- छोटी छोटी गैया, छोटे छोटे ग्वाल
- कान्हा रे थोडा सा प्यार दे
- दूर नगरी, बड़ी दूर नगरी
- मुझे चरणों से लगा ले, मेरे श्याम मुरली वाले
- जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम
- बांके बिहारी मुझको देना सहारा
- श्री बांके बिहारीजी की आरती - श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ
- नजर में रहते हो, मगर तुम नजर नहीं आते
- साँचा नाम तेरा, तू श्याम मेरा
- आसरा इस जहाँ का मिले ना मिले
- हर साँस में हो सुमिरन तेरा
- ओ पालनहारे, निर्गुण और न्यारे
- श्यामा तेरे चरणों की, गर धूल जो मिल जाए
- गोविन्द जय-जय गोपाल जय-जय
- मेरी लगी श्याम संग प्रीत
- आओ मेरी सखियो, मुझे मेहंदी लगा दो
- यह तो प्रेम की बात है उधो
- राधे राधे जपा करो, कृष्ण नाम रस पिया करो
मैं आरती तेरी गाउँ भजन की पंक्तियों का आध्यात्मिक अर्थ
है तेरी छबि अनोखी, ऐसी ना दूजी देखी।
“है तेरी छवि अनोखी” अर्थात “तुम्हारा रूप निराला है।” भक्त ने भगवान कृष्ण के दिव्य रूप को किसी अन्य के विपरीत, अतुलनीय रूप से विशेष बताया है। उनके जैसा खूबसूरत कोई नहीं है। भक्त, भगवान कृष्ण की विशिष्ट और अद्वितीय सुंदरता की प्रशंसा करते हुए कहता है कि उनके जैसा कोई और नहीं है।
तुझ सा ना सुन्दर कोई, ओ मोर मुकुटधारी॥
“तुझ सा ना सुंदर कोई” बताता है “तुम्हारे जैसा सुंदर कोई नहीं है।” “ओ मोर मुकुट-धारी” भगवान कृष्ण को संदर्भित करता है, जो अपने सिर पर मोर पंख (मोर मुकुट) पहनते हैं। यह श्लोक भगवान कृष्ण की अद्वितीय सुंदरता का गुणगान करता है।
राधा संग प्रीत लगाई, और प्रीत की रीत चलायी।
यह श्लोक राधा के साथ गहरा और प्रेमपूर्ण रिश्ता (प्रीत) स्थापित करने के लिए भगवान कृष्ण की प्रशंसा करता है, जो उनके बीच दिव्य बंधन का प्रतीक है।
तुम राधा रानी के प्रेमी, जय राधे रास बिहारी॥
“तुम राधा रानी के प्रेमी” का अर्थ है “तुम राधा रानी के प्रेमी हो।” यह श्लोक राधा के साथ कृष्ण के विशेष और अंतरंग बंधन को स्वीकार करता है। “जय राधे रास बिहारी” एक उत्सवपूर्ण उद्घोष है, जिसमें कृष्ण को राधा और गोपियों के साथ रास के दिव्य नृत्य में संलग्न बताया जाता है।
माखन की मटकी फोड़ी, गोपीन संग अखियाँ जोड़ी।
इस श्लोक में भगवान कृष्ण द्वारा मक्खन की मटकी (माखन की मटकी) को तोड़ने और गोपियों के साथ रास का वर्णन किया गया है, जो उनके साथ उनके प्रेमपूर्ण और आनंदमय संबंधों को दर्शाता है।
ओ नटखट रसिया तुझपे, जाऊं मैं तो बलिहारी॥
“ओ नटखट रसिया तुझपे” कृष्ण को शरारती और आकर्षक के रूप में संदर्भित करता है। भक्त अपनी गहरी भक्ति व्यक्त करते हुए कहते हैं कि वे ऐसे चंचल और मनोरम कृष्ण के लिए खुद को बलिहारी कर देंगे।
जब जब तू बंसी बजाये, सब अपनी सुध खो जाएँ।
“जब जब तू बंसी बजाएं” का अर्थ है “जब भी आप बांसुरी बजाएं।” यह कविता कृष्ण की बांसुरी वादन के मंत्रमुग्ध कर देने वाले प्रभाव पर प्रकाश डालती है, जिससे सभी प्राणी उनके दिव्य संगीत में खो जाते हैं।
तू सबका सब तेरे प्रेमी, ओ कृष्ण प्रेम अवतारी॥
“तू सबका सब तेरे प्रेमी” बताता है “तुम सबके प्रेमी हो; हर कोई तुम्हारा है।” “हे कृष्ण प्रेम अवतारी” कृष्ण को दिव्य प्रेम के अवतार के रूप में संदर्भित करता है। यह श्लोक कृष्ण के असीम और सार्वभौमिक प्रेम, सभी प्राणियों को गले लगाने पर जोर देता है।
संक्षेप में, भजन के बोल भगवान कृष्ण की अद्वितीय सुंदरता और प्रेमपूर्ण प्रकृति व्यक्त करते हैं। भक्त कृष्ण की सुरक्षा चाहता है, राधा के साथ अपने दिव्य प्रेम का जश्न मनाता है, और उनके प्रति पूर्ण समर्पण करने की इच्छा व्यक्त करता है। इस भावपूर्ण भजन में कृष्ण की बांसुरी की मनमोहक धुन और उनके सार्वभौमिक प्रेम का जश्न मनाया जाता है।
यह भजन भगवान कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति और प्रशंसा व्यक्त करता है। गायक कृष्ण के दिव्य रूप की विशिष्टता और सुंदरता की प्रशंसा करता है, उन्हें सभी परेशानियों से सुरक्षा और राहत के स्रोत के रूप में स्वीकार करता है। वे उनके सामने झुककर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं और अपने और सभी जीवित प्राणियों के लिए उनकी उदार कृपा और आशीर्वाद मांगते हैं।