Shri Mallikarjun Jyotirling
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र से श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का श्लोक
श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे
तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं
नमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥
जय मल्लिकार्जुन, जय मल्लिकार्जुन॥
अर्थ –
जो ऊँचाईके आदर्शभूत पर्वतोंसे भी बढ़कर ऊँचे श्रीशैलके शिखरपर,
जहाँ देवताओंका अत्यन्त समागम होता रहता है,
प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा
जो संसार-सागरसे पार करानेके लिये पुलके समान हैं,
उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुनको मैं नमस्कार करता हूँ॥
आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में स्थित ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन
श्री शैल पर्वत पर बसा मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
आन्ध्र प्रदेश प्रान्त के कृष्णा जिले में,
कृष्णा नदी के तटपर, श्रीशैल पर्वत पर,
श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं।
इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं।
महाभारत, शिवपुराण तथा पद्मपुराण आदि धर्मग्रंथों में इसकी महिमा और महत्ता का विस्तार से वर्णन किया गया है।
पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार से वर्णन है।
श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा
श्रीगणेश और श्रीकार्त्तिकेय स्वामी का विवाह
एक समय की बात है,
भगवान शंकरजी के दोनों पुत्र,
श्रीगणेश और श्रीकार्त्तिकेय स्वामी,
विवाह के लिए परस्पर झगड़ने लगे।
प्रत्येक का आग्रह था कि
पहले मेरा विवाह किया जाए।
उन्हें लड़ते-झगड़ते देखकर
भगवान् शंकर और मां भवानी ने कहा –
तुम लोगों में से
जो पहले पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर
यहां वापस लौट आएगा,
उसी का विवाह पहले किया जाएगा।’
माता-पिता की यह बात सुनकर
श्रीकार्त्तिकेय स्वामी
अपने वाहन मयूर पर विराजित हो
तुरंत पृथ्वी-प्रदक्षिणा के लिए दौड़ पड़े।
श्रीगणेशजी की सूक्ष्म और तीक्ष्ण बुद्धि
लेकिन गणेशजी के लिए तो
यह कार्य बड़ा ही कठिन था।
एक तो उनकी काया स्थूल थी,
दूसरे उनका वाहन भी मूषक-चूहा था।
भला वे दौड़ में
स्वामी कार्त्तिकेय की बराबरी
किस प्रकार कर पाते?
लेकिन उनकी काया जितनी स्थूल थी,
बुद्धि उसी के अनुपात में
सूक्ष्म और तीक्ष्ण थी।
उन्होंने अविलंब पृथ्वी की परिक्रमा का
एक सुगम उपाय खोज निकाला |
सामने बैठे माता-पिता का पूजन करने के पश्चात
उनकी सात प्रदक्षिणाएं करके,
उन्होंने पृथ्वी-प्रदक्षिणा का कार्य पूरा कर लिया।
उनका यह कार्य शास्त्रानुमोदित था –
पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रक्रान्तिं च करोति यः ।
तस्य वै पृथिवीजन्यं फलं भवति निश्चितम् ॥
श्रीगणेशजी का विवाह
पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर
स्वामी कार्त्तिकेय जब तक लौटे,
तब तक गणेशजी का
सिद्धि और बुद्धि नाम वाली
दो कन्याओं के साथ
विवाह हो चुका था और
उन्हें क्षेम तथा लाभ नामक
दो पुत्र भी प्राप्त हो चुके थे।
यह सब देखकर स्वामी कार्त्तिकेय
अत्यंत रुष्ट होकर क्रौञ्च पर्वत पर चले गए।
माता पार्वती वहां उन्हें मनाने पहुंचीं।
पीछे शंकर भगवान् वहां पहुंचकर
ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और
तब से मल्लिकार्जुन-ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रख्यात हुए।
इनकी अर्चना सर्वप्रथम
मल्लिका-पुष्पों से की गई थी।
मल्लिकार्जुन नाम पड़ने का यही कारण है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा – 2
राजकुमारी और उनकी गाय
एक दूसरी कथा यह भी कही जाती है –
इस शैल पर्वत के निकट
किसी समय राजा चंद्रगुप्त की राजधानी थी।
किसी विपत्ति विशेष के निवारणार्थ
उनकी एक कन्या महल से निकलकर
इस पर्वतराज के आश्रम में आकर
यहां के गोपों के साथ रहने लगी।
उस कन्या के पास
एक बड़ी ही शुभ लक्षरा सुंदर श्यामा गौ थी।
उस गौ का दूध
रात में कोई चोरी से दुह ले जाता था।
एक दिन संयोगवश उस राजकन्या ने
चोर को दूध दुहते देख लिया और
क्रुद्ध होकर उस चोर की ओर दौड़ी,
किंतु गौ के पास पहुंचकर उसने देखा कि,
वहां शिवलिंग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
राजकुमारी ने मंदिर का निर्माण करवाया
राजकुमारी ने कुछ समय पश्चात
उस शिवलिंग पर एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया।
यही शिवलिंग मल्लिकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध है।
शिवरात्रि के पर्व पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है।
इस मल्लिकार्जुन-शिवलिंग का दर्शन-पूजन
एवं अर्चन करने वाले भक्तों की
सभी सात्त्विक मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
उनकी भगवान् शिव के चरणों में
स्थिर प्रीति हो जाती है।
दैहिक, दैविक, भौतिक
सभी प्रकार की बाधाओं से वे मुक्त हो जाते हैं।
शिवपुराण में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कथा
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंगके आविर्भावकी कथा तथा उनकी महिमा – शिवपुराण से
शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता खंड के अध्याय 15, 16 में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के प्रादुर्भावकी कथा और उसकी महिमा दी गयी है –
सूतजी कहते हैं –
महर्षियो! अब मैं मल्लिकार्जुनके प्रादुर्भावका प्रसंग सुनाता हूँ, जिसे सुनकर बुद्धिमान् पुरुष सब पापोंसे मुक्त हो जाता है।
जब महाबली तारकशत्रु शिवापुत्र कुमार कार्तिकेय सारी पृथ्वीकी परिक्रमा करके फिर कैलास पर्वतपर आये और गणेशके विवाह आदिकी बात सुनकर क्रौंच पर्वतपर चले गये, पार्वती और शिवजीके वहाँ जाकर अनुरोध करनेपर भी नहीं लौटे तथा वहाँसे भी बारह कोस दूर चले गये, तब शिव और पार्वती ज्योतिर्मय स्वरूप धारण करके वहाँ प्रतिष्ठित हो गये।
वे दोनों पुत्रस्नेहसे आतुर हो पर्वके दिन अपने पुत्र कुमारको देखनेके लिये उनके पास जाया करते हैं।
अमावस्याके दिन भगवान् शंकर स्वयं वहाँ जाते हैं और पौर्णमासीके दिन पार्वतीजी निश्चय ही वहाँ पदार्पण करती हैं।
उसी दिनसे लेकर भगवान् शिवका मल्लिकार्जुन नामक एक लिंग तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध हुआ।
(उसमें पार्वती और शिव दोनोंकी ज्योतियाँ प्रतिष्ठित हैं।
“मल्लिका” का अर्थ पार्वती है और “अर्जुन” शब्द शिवका वाचक है।)
उस लिंगका जो दर्शन करता है, वह समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है और सम्पूर्ण अभीष्टको प्राप्त कर लेता है।
इसमें संशय नहीं है।
इस प्रकार मल्लिकार्जुन नामक द्वितीय ज्योतिर्लिंगका वर्णन किया गया, जो दर्शनमात्रसे लोगोंके लिये सब प्रकारका सुख देनेवाला बताया गया है।
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