- मैं तो साँवरेके रंग राची
- पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे
- मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
- माई री मैं तो लियो गोबिंदो मोल
- या मोहनके मैं रूप लुभानी
1. मैं तो साँवरेके रंग राची
Vani Jairam
Tripti Shakya
मैं तो साँवरेके रंग राची
साजि सिंगार बाँधी पग घुँघरू,
लोक-लाज तजि नाची॥
गई कुमति, लई साधुकी संगति,
भगत, रूप भइ साँची।
गाय गाय हरिके गुण निस दिन,
कालब्यालसूँ बाँची॥
उण बिन सब जग खारो लागत,
और बात सब काँची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूं,
भगति रसीली जाँची॥
2. पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे
Sadhna Sargam
https://youtu.be/bj7Zgq3iLD4?t=3m19s
Anuradha Paudwal
पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे॥
पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे॥
मैं तो मेरे नारायणकी
आपहि हो गइ दासी रे।
लोग कहै मीरा भई बावरी
न्यात कहै कुलनासी रे॥
पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे॥
बिषका प्याला राणाजी भेज्या,
पीवत मीरा हाँसी रे।
मीराके प्रभु गिरधर नागर,
सहज मिले अबिनासी रे॥
पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे॥
3. मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
Vani Jairam
मेरे तो गिरधर गोपाल,
दूसरो न कोई॥
जाके सिर मोर मुगट,
मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु,
आपनो न कोई॥
छांडिं दई कुलकि कानि,
कहा करिहे कोई।
संतन ढिग बैठि बैठि,
लोक लाज खोई॥
चुनरीके किये टूक,
ओढ लीन्हीं लोई।
मोती दूंगी उतार,
बनमाला पोई॥
अँसुवन जल सींचि सींचि,
प्रेम बेलि बोई
अब तो बेल फैल गई,
आनंद फल होई॥
दूधकी मथनियाँ
बड़े प्रेमसे बिलोई।
माखन जब काढि लियो,
छाछ पिये कोई॥
भगति देखि राजी हुई,
जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर,
तारो अब मोहि॥
4. माई री मैं तो लियो गोबिंदो मोल
Anup Jalota
माई री मैं तो लियो गोबिंदो मोल।
कोई कहै छाने, कोई कहै छुपके,
लियोरी बजंता ढोल॥1॥
कोई कहै मुँहघो, कोई कहै सुहँघो,
लियो री तराजू तोल।
कोई कहै कालो, कोई कहै गोरो,
लियो री अमोलक मोल॥2॥
कोई कहै घरमें, कोई कहै बनमें,
राधाके संग किलोल।
मीराके प्रभु गिरधर नागर,
आवत प्रेमके मोल॥3॥
5. या मोहनके मैं रूप लुभानी
या मोहनके मैं रूप लुभानी।
सुंदर बदन कमलदल लोचन,
बाँकी चितवन मँद मुसकानी॥
जमनाके नीरे तीरे धेन चरावै,
बंसीमें गावै मीठी बानी।
तन मन धन गिरधरपर वारूँ,
चरणकँवल मीरा लपटानी॥
6. हमरो प्रणाम बाँके बिहारीको
हमरो प्रणाम बाँके बिहारीको।
मोर मुकुट माथे तिलक बिराजै,
कुंडन अलका कारीको॥
अधर मधुरपर बंसी बजावै,
रीझ रीझावै राधाप्यारीको।
यह छबि देख मगन भई मीरा,
मोहन गिरवरधारीको॥
7. नैनाँ निपट बंकट छबि अटके।
(मेरे) नैनाँ निपट बंकट छबि अटके।
देखत रूप मदन मोहनको,
पियत पियूख न मटके॥
बारिज भवां अलक,
टेढी मनौ अति सुगंधरस अटके॥
टेढी कटि टेढी कर मुरली,
टेढी पाग लर लटके।
मीरा प्रभुके रूप लुभानी,
गिरधर नागर नटके॥