- तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी
- हरि तुम हरो जन की भीर
- अब मैं सरण तिहारी जी
- मीराको प्रभु साँची दासी बनाओ
- मैं तो तेरी सरण परी रे
- हरि बिन कूण गती मेरी
- प्रभुजी मैं अरज करूँ
तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी
तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी॥
(म्हारी = मेरी)
भवसागर में बही जात हूँ,
काढ़ो तो थांरी मरजी।
(काढ़ो = निकाल लो;
थांरी मरजी = तुम्हारी मरजी)
इण (यो) संसार सगो नहिं कोई,
सांचा सगा रघुबरजी॥
(इण संसार = इस संसार में)
मात पिता औ / सुत कुटुम कबीलो,
सब मतलब के गरजी।
(गरजी = स्वार्थी)
मीराकी प्रभु अरजी सुण लो,
चरण लगाओ थांरी मरजी॥
अब मैं सरण तिहारी जी
Tripti Shakya
अब मैं सरण तिहारी जी,
मोहि राखौ कृपा निधान॥
अजामील अपराधी तारे,
तारे नीच सदान।
जल डूबत गजराज उबारे,
गणिका चढी बिमान॥1॥
और अधम तारे बहुतेरे,
भाखत संत सुजान।
कुबजा नीच भीलणी तारी,
जागे सकल जहान॥2॥
कहँ लग कहूँ गिणत नहिं आवै,
थकि रहे बेद पुरान।
मीरा दासी शरण तिहारी,
सुनिये दोनों कान॥3॥
हरि तुम हरो जन की भीर
Jagjit Singh
हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी,
तुरत बढ़ायो चीर॥
भगत कारण रूप नर हरि,
धरयो आप सरीर॥
हिरण्याकुस को मारि लीन्हो,
धरयो नाहिन धीर॥
बूड़तो गजराज राख्यो,
कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर,
चरण-कंवल पर सीर॥
मीराको प्रभु साँची दासी बनाओ
मीराको प्रभु साँची दासी बनाओ।
झूठे धंधोंसे मेरा फंदा छुडाओ॥1॥
लूटे ही लेत विवेक का डेरा
बुधि बल यदपि करूँ बहुतेरा॥2॥
हाय। हाय। नहिं कछु बस मेरा।
मरत हूँ बिबस प्रभु धाओ सबेरा॥3॥
धर्मउपदेश नितप्रति सुनती हूँ।
मन कुचाल से भी डरती हूँ॥4॥
सदा साधु सेवा करती हूँ।
सुमिरण ध्यानमें चित धरती हूँ॥5॥
भक्ति मारग दासीको दिखलाओ।
मीराको प्रभु साँची दासी बनाओ॥6॥
हमने सुणी छै हरी अधम उधारण
हमने सुणी छै हरी अधम उधारण।
अधम उधारण सब जग तारण॥टेक॥
गजकी अरज गरज उठ ध्यायो
संकट पड्यो तब कष्ट निवारण॥1॥
द्रुपद सुताको चीर बढ़ायो,
दूसासनको मान पद मारण।
प्रहलादकी परतिग्या राखी,
हरणाकुस नख उद्र बिदारण॥2॥
रिखिपतनीपर किरपा कीन्हीं,
बिप्र सुदामाकी बिपति बिदारण।
मीराके प्रभु मो बंदीपर,
एति अबेरि भई किण कारण॥3॥
(मो बंदीपर – मुझपर;
एति अबेरि भई किण कारण – इतनी देरी किस कारण से की?)
सुण लीजो बिनती मोरी
सुण लीजो बिनती मोरी,
मैं शरण गही प्रभु तेरी।
तुम (तो) पतित अनेक उधारे,
भव सागरसे तारे॥
मैं सबका तो नाम न जानूँ,
कोइ कोई नाम उचारे।
अम्बरीष सुदामा नामा,
तुम पहुँचाये निज धामा॥
ध्रुव जो पाँच वर्षके बालक,
तुम दरस दिये घनस्यामा।
धना भक्तका खेत जमाया,
कबिराका बैल चराया॥
सबरीका जूंठा फल खाया,
तुम काज किये मन भाया।
सदना औ सेना नाईको,
तुम कीन्हा अपनाई॥
करमाकी खिचड़ी खाई,
तुम गणिका पार लगाई।
मीरा प्रभु तुमरे रँग राती,
या जानत सब दुनियाई॥
मैं तो तेरी सरण परी रे
मैं तो तेरी सरण परी रे,
रामा ज्यूँ जाडे ज्यूँ तार।
अड़सठ तीरथ भ्रम भ्रम आयो,
मन नहिं मानी हार॥
या जगमें कोई नहि अपणा,
सुणियौ श्रवण मुरार।
मीरा दासी राम भरोसे,
जमका फंदा निवार॥
हरि बिन कूण गती मेरी
हरि बिन कूण गती मेरी।
तुम मेरे प्रतिपाल कहिये,
मैं रावरी चेरी॥
आदि अंत निज नाँव,
तेरो हीयामें फेरी?
बेर बेर पुकार कहूँ,
प्रभु आरति है तेरी॥
यौ संसार बिकार
सागर बीचमें घेरी।
नाव फाटी प्रभु,
पाल बाँधो बूडत है बेरी॥
बिरहणि पिवकी बाट
जोवै राखल्यो नेरी।
दासि मीरा राम रटत है,
मैं सरण हूँ तेरी॥
स्वामी सब संसारके हो
स्वामी सब संसारके हो
साँचे श्रीभगवान॥
स्थावर जंगम पावक पाणी,
धरती बीज समान।
सबमें महिमा थारी देखी,
कुदरतके करबान॥
बिप्र सुदामाको दाबद
खोंयो बालेकी पहचान।
दो मुट्ठी तंदुलकी चाबी
दीन्हयों द्रव्य महान॥
भारतमें अर्जुनके आगे
आप भया रथवान।
अर्जुन कुलका लोग निहार्या
छुट गया तीर कमान॥
ना कोई मारे ना कोइ मरतो,
तेरो यो अग्यान।
चेतन जीव तो अजर अमर है,
यो गीतारो ग्यान॥
मेरेपर प्रभु किरपा कीजौ,
बाँदी अपणी जान
मीराके प्रभु गिरधर नागर,
चरण कँवलमें ध्यान॥
प्रभुजी मैं अरज करूँ
प्रभुजी मैं अरज करूँ,
मेरो बेड़ों लगाज्यो पार॥
इण भवमें मैं दुख बहु पायो,
संसा-सोग निवार।
अष्ट करमकी तलब लगी है,
दूर करो दुख भार॥
यों संसार सब बह्यो जात है,
लख चौरासी री धार।
मीराके प्रभु गिरधर नागर,
आवागमन निवार॥
थे तो पलक उघाडो दीनानाथ
थे तो पलक उघाडो दीनानाथ,
मैं हाजिर-नाजिर कदकी खड़ी॥टेक॥
साजनियाँ दुसमण होय बैठ्या,
सबने लगूँ कडी।
तुम बिन साजन कोई नहिं है,
डिगी नाव मेरी समँद अड़ी॥1॥
दिन नहि चैन रैण नहि निंदरा,
सूखूँ खड़ी खडी।
बाण बिरहका लगया हियेमें,
भूलूँ न एक घड़ी॥2॥
पत्थरकी तो अहिल्या तारी,
बनके बीच पड़ी।
कहा बोझ मीरामें कहिये,
सौ पर एक घड़ी॥3॥
प्यारे दरसन दीज्यो आय
प्यारे दरसन दीज्यो आय,
तुम बिन रह्यो न जाय॥टेक॥
जब बिन कमल, चंद बिन रजनी,
ऐसे तुम देख्याँ बिन सजनी।
अकुल व्याकुल फिर रैन दिन,
बिरह कलेजो खाय॥1॥
दिवस न भूख, नींद नहि रैना
मुख सूँ कथत न आवे बैना।
कहा कहूँ कछु कहत न आवै,
मिलकर तपत बुझाय॥2॥
तरसावो अंतरजामी,
आय मिलो किरपाकर स्वामी।
मीरा दासी जनम – जनम की,
पड़ी तुम्हारे पाय॥3॥
अब सो निभायाँ सरेगी
अब सो निभायाँ सरेगी,
बाँह गहेकी लाज।
समरथ सरण तुम्हारी सइयाँ,
सरब सुधारण काज॥1॥
भवसागर संसार अपरबल,
जामें तुम हो झयाज।
गिरधाराँ आधार जगत गुरु,
तुम बिन होय अकाज॥2॥
जुग जुग भीर हरी भगतनकी,
दीनी मोक्ष समाज।
मीरा सरण गही चरणनकी,
लाज रखो महाराज॥3॥
स्याम मोरी बांहडली जी गहो
स्याम मोरी बांहडली जी गहो।
या भवसागर मँझधारमें,
थे ही निभावण हो॥
म्हामें औगण घडा छै हो,
प्रभुजी थे ही सही तो सहो।
मीराके प्रभु हरि अबिनासी,
लाज बिरदकी बहो॥