Sankat Nashan Ganesh Stotra with Meaning in Hindi
संकटों का नाश करने वाला गणेशजी का स्तोत्र
इच्छाओं की पूर्ति करनेवाला और भय दूर करनेवाला गणेशजी का यह संकटनाशन गणेश मन्त्र, बहुत प्रभावी माना जाता है। इस स्तोत्र में भगवान् गणपतिजी के बारह नाम आते है, जो इस प्रकार है –
1. वक्रतुण्ड | 2. एकदन्त |
3. कृष्णपिंगाक्ष | 4. गजवक्त्र |
5. लम्बोदर | 6, विकट |
7. विघ्नराजेन्द्र | 8. धूम्रवर्णं |
9. भालचन्द्र | 10. विनायक |
11. गणपति | 12. गजानन |
जैसा की इस स्तोत्र के आखरी श्लोक में बताया गया है कि इस स्तोत्र के पाठ से
भक्त को इच्छित फल प्राप्त होता है और पूर्ण सिद्धि तक प्राप्त हो सकती है।
इस पोस्ट से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण बात
संकटनाशन गणेश स्तोत्र के इस पोस्ट में पहले स्तोत्र के सभी श्लोक अर्थ सहित दिए गए है और बाद में पूरा स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है।
ॐ गं गणपतये नमः
संकटनाशन गणेश स्तोत्र – अर्थ सहित
श्री गणेश जी का स्मरण करे और प्रणाम करें
1.
नारद उवाच,
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थ सिद्धये॥१॥
नारद जी कहते हैं, पार्वतीनन्दन श्रीगणेश जी को, सिर झुकाकर प्रणाम करे।
और फिर, अपनी आयु, कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये, उन भक्तनिवासका (श्रीगणेशजीका) नित्य स्मरण करें।
श्रीगणेश जी को प्रणाम
वक्रतुण्ड, एकदन्त, कृष्णपिंगाक्ष, गजवक्त्र
2.
प्रथमं वक्रतुंण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम॥॥२॥
पहला वक्रतुण्ड,
दूसरा एकदन्त,
तीसरा कृष्णपिंगाक्ष,
चौथा गजवक्त्र
- कृष्णपिंगाक्ष अर्थात – काली और भूरी आंखोवाले
- गजवक्त्रं अर्थात – हाथीके से मुखवाले
ॐ गं गणपतये नमः
लम्बोदर, विकट, विघ्नराजेन्द्र, धूम्रवर्णं
3.
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥
पाँचवां लम्बोदर,
छठा विकट,
सातवाँ विघ्नराजेन्द्र,
आठवाँ धूम्रवर्णं
- लम्बोदर अर्थात – बड़े पेटवाले
- विकट अर्थात – विराट
- विघ्नराजेन्द्र अर्थात – विघ्नोका नाश करने वाले राजाधिराज)
ॐ नमो भगवते गजाननाय नमः
भालचन्द्र, विनायक, गणपति, गजानन
4.
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु गजाननम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥
नवाँ भालचन्द्र,
दसवाँ विनायक,
ग्यारहवाँ गणपति और
बारहवाँ गजानन
- भालचन्द्र अर्थात – जिसके ललाटपर चंद्रमा सुशोभित है
ॐ श्री गणेशाय नमः
भय दूर करनेवाला, संकटनाशन गणेश मंत्र
5.
द्वादशैतानि नामामि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥५॥
इन बारह नामों का जो व्यक्ति तीनों संध्याओं में अर्थात प्रात:, मध्याह्न और सायंकाल में पाठ करता है, उसे किसी भी तरह के विघ्न का भय नहीं रहता है।
इस प्रकार का स्मरण सब प्रकार की सिद्धियाँ देनेवाला है।
ॐ वक्रतुंडाय नम:
इच्छाओं की पूर्ति करनेवाला, गणेश मंत्र
6.
विद्यार्थी लभते विद्यां, धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्-मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥
इस संकट नाशन गणपतिजी के मंत्र नित्य पाठ से
विद्याभिलाषी – विद्या,
धनार्थी – धन,
पुत्रार्थी – पुत्र, पुत्री तथा
मुमुक्षु – मोक्षगति
प्राप्त कर लेता है।
- विद्याभिलाषी अर्थात विद्यार्थी,
- धनार्थी यानी की धन का अभिलाषी,
- पुत्रार्थी अर्थात पुत्र, पुत्री की इच्छा वाला तथा
- मुमुक्षु यानी की मोक्ष की इच्छा वाला
ॐ गजाननाय नमः
संकटनाशन गणेश स्तोत्रं से इच्छित फल और पूर्ण सिद्धि
7.
जपेद गणपतिस्तोत्रं षडभिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥७॥
इस गणपति स्तोत्रका जाप करे तो छह महीने में इच्छित फल प्राप्त होता है और एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है, इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं है।
श्री सिद्धिविनायक नमो नमः
भगवान् गणेश की कृपा
8.
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:॥८॥
जो पुरुष इसे लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेशजी की कृपासे उसे सब प्राकरकी विद्या प्राप्त हो जाती है।
ॐ गं गणपतये नमः
॥इति श्रीनारदपुराणे श्रीसंकटनाशन
गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम॥॥
इस प्रकार श्रीनारद पुराण में लिखा, श्रीसंकटनाशन गणेशस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।
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- आज गणराज पधारे है
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संकटनाशन गणेश स्तोत्रं – संस्कृत में
नारद उवाच,
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लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु गजाननम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥
द्वादशैतानि नामामि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
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पुत्रार्थी लभते पुत्रान्-मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥
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संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥७॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत।
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