संकटनाशन गणेश स्तोत्रं – अर्थसहित
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थ सिद्धये॥१॥
- नारद जी कहते हैं,
- पार्वतीनन्दन श्रीगणेश जी को सिर झुकाकर प्रणाम करे। और फिर
- अपनी आयु, कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये उन भक्तनिवासका (श्रीगणेशजीका) नित्य स्मरण करें
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम॥॥२॥
- पहला वक्रतुण्ड, दूसरा एकदन्त
- तीसरा कृष्णपिंगाक्ष, चौथा गजवक्त्र
(कृष्णपिंगाक्ष – काली और भूरी आंखोवाले
गजवक्त्रं – हाथीके से मुखवाले)
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥
- पाँचवां लम्बोदर, छठा विकट,
- सातवाँ विघ्नराजेन्द्र, आठवाँ धूम्रवर्णं
(लम्बोदर – बड़े पेटवाले
विकट – विकराल
विघ्नराजेन्द्र – विघ्नोका नाश करने वाले राजाधिराज)
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥
- नवाँ भालचन्द्र, दसवाँ विनायक,
- ग्यारहवाँ गणपति और बारहवाँ गजानन
(भालचन्द्र – जिसके ललाटपर चंद्रमा सुशोभित है)
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥५॥
- इन बारह नामों का जो व्यक्ति तीनों संध्याओं में (प्रात:, मध्याह्न और सायंकाल में) पाठ करता है,
- उसे किसी भी तरह के विघ्न का भय नहीं रहता है। इस प्रकार का स्मरण सब प्रकार की सिद्धियाँ देनेवाला है।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्-मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥
- इससे विद्याभिलाषी (विद्यार्थी) विद्या, धनार्थी (धन के अभिलाषी) धन,
- पुत्रार्थी (पुत्र की इच्छा वाले) पुत्र तथा मुमुक्षु मोक्षगति प्राप्त कर लेता है।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥७॥
- इस गणपति स्तोत्रका जप करे तो छह महीने में इच्छित फल प्राप्त होता है और
- एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है, इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं है.
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:॥८॥
- जो पुरुष इसे लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है,
- गणेशजी की कृपासे उसे सब प्राकरकी विद्या प्राप्त हो जाती है।
गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम॥॥
- इस प्रकार श्रीनारद पुराण में लिखा श्रीसंकटनाशनगणेशस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ.
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Sankat Nashan Ganesh Stotra
Ketan Patwardhan
संकटनाशन गणेश स्तोत्रं
नारद उवाच:
प्रणम्य शिरसा देवं
गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं
आयुःकामार्थ सिद्धये॥१॥
प्रथमं वक्रतुंण्डं च
एकदन्तं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं
गजवक्त्रं चतुर्थकम॥॥२॥
लम्बोदरं पंचमं च
षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च
(सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं)
धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥
नवमं भालचन्द्रं च
दशमं तु गजाननम्।
एकादशं गणपतिं
द्वादशं तु गजाननम्॥४॥
द्वादशैतानि नामामि
त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य
सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥५॥
विद्यार्थी लभते विद्यां,
धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्-
-मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥
जपेद गणपतिस्तोत्रं
षडभिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च
लभते नात्र संशय:॥७॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च
लिखित्वा य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा
गणेशस्य प्रसादत:॥८॥
॥इति श्रीनारदपुराणे श्रीसंकटनाशन
गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम॥॥
Sankat Nashan Ganpati Stotra
Narada Uvacha:
Pranamya Shirasa Devam
Gauri Putram Vinayakam
Bhaktavasam Smaren-nityam
Ayuh-kamartha Siddhaye ||1||
Prathamam Vakratundam Cha
Ekadantam Dwitiyakam
Thritiyam Krishna Pingaaksham
Gajavaktram Chaturthakam ||2||
Lambodaram Panchamam Cha
Shashtam Vikatameva Cha
Saptamam Vighnarajam cha
(Saptamam Vighnarajendram)
Dhoomravarnam Thathashtamam ||3||
Navamam Bhal-chandram Cha
Dashamam Tu Vinayakam
Ekadasham Ganapatim
Dwadasham Tu Gajananam ||4|
Dwadashaitani Namani
Trisandhyam Yah Pathen-narah
Na Cha Vighna Bhayam Tasya
Sarvasiddhi Karam Prabho ||5||
Vidyarthi Labhate Vidyam
Dhanarthi Labhate Dhanam
Putrarthi Labhate Putraam
Moksharthi Labhate Gatim ||6||
Japeth Ganapathi Stotram
Shadbhir Masaihe Phalam Labheth
Samvatsarena Siddhim Cha
Labhate Nathra Samshayaha ||7||
Ashtabhyo Brahmanebhyash Cha
Likhitwa Yah Samarpayeth
Thasya Vidya Bhavet-sarva
Ganeshasya Prasad-tahaa ||8||
|| Iti Shri Narad Purane Sankashtanashanam
Ganesh Stotram Sampurnam ||
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