शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको - जय जय श्री गणराज

Shendur Lal Chadhayo – Jai Jai Ji Ganraj – Lyrics in Hindi

शेंदुर लाल चढ़ायो – जय जय श्री गणराज – श्री गणेश आरती

शेंदुर लाल चढ़ायो लिरिक्स के इस पेज में पहले गणेशजी की आरती के हिंदी लिरिक्स दिए गए है।

बाद में जय जय श्री गणराज आरती का आध्यात्मिक महत्व दिया गया है और इसकी पंक्तियों से हमें कौन कौन सी बातें सीखने को मिलती है यह बताया गया है।

जैसे की यह आरती हमें बताती है कि गणेशजी अपने भक्तों पर हमेशा कृपा करते हैं। यदि कोई व्यक्ति गणेशजी के प्रति सच्ची भक्ति और श्रद्धा रखता है, तो उसे हमेशा सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। वे अपने भक्त की सभी तरह की परेशानियों को और कष्टों को दूर करते हैं। इसलिए गणेशजी को विघ्नों को दूर करने वाले, विघ्नहर्ता भी कहा जाता है।


Shendur Lal Chadhayo Lyrics

शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको॥

हाथ लिए गुड-लड्डू सांई सुरवरको।
महिमा कहे न जाय लागत हूँ पदको॥
जय देव, जय देव

जय जय जी गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता॥
जय देव, जय देव


अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि।
विघ्न विनाशन मंगल मूरत अधिकारी॥

कोटी सूरज प्रकाश ऐसी छबि तेरी।
गंडस्थल-मदमस्तक झूले शशिबिहारी⁣॥
जय देव, जय देव

जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता॥
जय देव, जय देव


भावभगत से कोई शरणागत आवे।
संतत संपत सब ही भरपूर पावे।

ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे।
गोसावी नंदन निशिदिन गुन गावे॥
जय देव, जय देव

जय जय जी गणराज विद्या सुखदाता।
हो स्वामी सुखदाता।
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता॥
जय देव, जय देव


घालिन लोटांगण, वंदिन चरण।
डोळ्यांनी पाहिन रूप तुझे।

प्रेमे आलिंगीन आनंदे पुजिन।
भावें ओवाळिन म्हणे नामा॥


त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव॥

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्व मम देवदेव॥


कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा,
बुध्दात्मना वा प्रकृतिस्वभावात्।

करोमि यद्यत् सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पयामि॥


अच्युतं केशवं रामनारायणं,
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरि।

श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं,
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे॥


हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥

हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥

मोरया रे, बाप्पा मोरया रे। मोरया रे, बाप्पा मोरया रे।
मोरया रे, बाप्पा मोरया रे। मोरया रे, बाप्पा मोरया रे।


शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको। दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको।
जय जय जी गणराज विद्या सुखदाता। धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता॥
जय देव, जय देव


Shendur Lal Chadhayo – Jai Jai Ji Ganraj – Ganesh Aarti


Ganesh Bhajan



शेंदुर लाल चढ़ायो आरती का आध्यात्मिक महत्व

जीवन में विद्या और सुख का महत्व

जय जय जी गणराज विद्या सुखदाता।
धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता॥

गणेशजी विद्या और सुख के दाता हैं।

गणेशजी से हम विद्या और सुख की कामना क्यों करते हैं। क्योंकि ज्ञान और सुख का जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है।

ज्ञान हमें जीवन में आगे बढ़ने में मदद करता है, और जब जीवन में दुःख दूर होते है, संकट दूर हो जाते है, और जीवन में सुख आता है, तो यह खुशी हमें जीवन को बेहतर तरीके से जीने में मदद करती है।

इसलिए इस पंक्ति से हमें सीखने को मिलता है कि ज्ञान और सुख की प्राप्ति के लिए गणेश जी की आराधना और उपासना करना चाहिए।


गणेशजी आठ सिद्धियों के स्वामी है

अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि।
विघ्न विनाशन मंगल मूरत अधिकारी॥

गणेश जी को अष्टसिद्धि और विघ्नहर्ता के रूप में वर्णित किया गया है।

ये अष्टसिद्धि क्या है?

सिद्धि यानी की ऐसी पारलौकिक और आत्मिक शक्तियाँ, जो तप और साधना के द्वारा ही प्राप्त होती हैं। अष्ट सिद्धि को संस्कृत श्लोक में इस प्रकार बताया गया है।

अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा।
प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः॥

इस श्लोक का अर्थ है – अणिमा , महिमा, लघिमा, गरिमा तथा प्राप्ति प्राकाम्य इशित्व और वशित्व ये सिद्धियां “अष्टसिद्धि” कहलाती हैं।

इस सिद्धियों के शब्द के अर्थ आरती के आध्यात्मिक महत्व के बाद में दिए गए है।

यह सिद्धियां जिसके पास होती है वह अपने आकार को जैसा चाहे कम या ज्यादा कर सकता है, यानी की सूक्ष्मता की सीमा पार कर सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा विशाल से विशाल, जितना चाहे विशालकाय हो सकता है। साथ ही साथ उसके पास किसी भी प्राणी या वस्तु पर पूर्ण अधिकार की क्षमता होती है।

इसलिए गणेशजी की भक्ति और ध्यान करने से वे हमारे सभी कार्यों में सफलता दिलाते हैं और हमारे सभी विघ्नों को दूर करते हैं।


कोटी सूरज प्रकाश ऐसी छबि तेरी।
गंडस्थल-मदमस्तक झूले शशिबिहारी

गणेशजी की छवि करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान है।

वे बहुत ही शक्तिशाली और महान हैं। इसलिए जब हम उनकी पूजा और आराधना करते है, तब गणेशजी हमें अपने जीवन में ज्ञान, सुख, सिद्धि, और विघ्नों को दूर करने की शक्ति प्रदान करते हैं।

गणेशजी के मस्तक पर चंद्रमा विराजमान है। यह हमें यह सिखाती है कि गणेशजी ज्ञान और प्रकाश के प्रतीक हैं। हमें उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को ज्ञान और प्रकाश से भरना चाहिए।


भावभगत से कोई शरणागत आवे।
संतत संपत सब ही भरपूर पावे।

यह पंक्ति हमें बताती है कि गणेशजी की पूजा करते समय हमारे मन में सच्ची भक्ति और श्रद्धा का भाव होना चाहिए।

बिना भाव और श्रद्धा के गणेशजी की कृपा प्राप्त नहीं होती है।

इसलिए, हमें गणेशजी की पूजा करते समय उनका ध्यान करना चाहिए और उनके आशीर्वाद की कामना करनी चाहिए।


ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे।
गोसावी नंदन निशिदिन गुन गावे॥

गणेशजी एक दयालु और करुणामयी देवता हैं। वे अपने भक्तों को हमेशा अपना आशीर्वाद देते हैं। इसलिए, हमें गणेशजी की पूजा करके उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में सफलता और खुशहाली प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।


शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको॥

भगवान गणेश जी को सिंदूर चढ़ाना उनकी पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो उनकी शक्ति, सौंदर्य और कल्याण का प्रतीक है।

भगवान गणेश जी पार्वती माता और शिव जी के प्रिय पुत्र हैं, जो समस्त सृष्टि के पालनहार हैं।


हाथ लिए गुड-लड्डू सांई सुरवरको।
महिमा कहे न जाय लागत हूँ पदको॥

भगवान गणेश जी को मोदक अति प्रिय है, इसलिए गणपतिजी की पूजा के समय मोदक का प्रसाद चढ़ाया जाता है ,जो प्रसन्न करने वाला है, जो मिठास, संतुष्टि और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है।

भगवान गणेश जी की महिमा का कोई परिमाण नहीं है, उनके चरणों में समर्पित होने से ही हमें मुक्ति मिल सकती है।

भगवान की महिमा कभी भी कही जाने के लायक नहीं होती है, यानी की भगवान की महिमा को शब्दों में प्रकट करना मुश्किल है, और भक्त केवल अपने सेवाभाव से उनकी पूजा करता है। इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि भक्ति का महत्त्व शब्दों से अधिक होता है।


अष्टसिद्धि यानी की आठ सिद्धियां कौन सी है ?

1. अणिमा – अपने शरीर को एक अणु के समान छोटा कर लेने की क्षमता।
2. महिमा – शरीर का आकार अत्यन्त बड़ा करने की क्षमता।
3. गरिमा – शरीर को अत्यन्त भारी बना देने की क्षमता।
4. लघिमा – शरीर को भार रहित करने की क्षमता।
5. प्राप्ति – बिना रोक टोक के किसी भी स्थान को जाने की क्षमता।
6. प्राकाम्य – अपनी प्रत्येक इच्छा को पूर्ण करने की क्षमता।
7. ईशित्व – प्रत्येक वस्तु और प्राणी पर पूर्ण अधिकार की क्षमता।
8. वशित्व – प्रत्येक प्राणी को वश में करने की क्षमता।


Ganesh Bhajan