Shiv Tandav Stotra Lyrics with Meaning In Hindi
शिव ताण्डव स्तोत्र – अर्थ सहित
श्री शिव ताण्डव स्तोत्र में 15 श्लोक आते है।
शिव ताण्डव स्तोत्र के इस पोस्ट में –
पहले स्तोत्र भावार्थ और शब्दों के अर्थ के साथ दिया गया है।
बाद में संस्कृत शब्दों को पढ़ने में सरल इस फॉर्मेट में, और
अंत में सम्पूर्ण ताण्डव स्तोत्रम् संस्कृत में दिया गया है।
Shiv Tandav Stotra in Hindi
1.
जटाटवीगलज्जल-
प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्यलम्बितां
भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डम-
निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं
तनोतु नः शिवः शिवम्॥
- जटा-टवी-गलज्-जल – जिन्होंने जटारूपी अटवी (अर्थात वन) से निकलती हुई गंगाजी के
- प्रवाह-पावि-तस्थले – गिरते हुए प्रवाहों से पवित्र किये गये
- गलेऽव-लम्ब्य लम्बितां – गले में विशाल और लम्बे लम्बे
- भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम् – सर्पों की लटकती हुई माला को धारणकर,
- डमड्-डमड्-डमड् – डम-डम-डम
- डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं – डमरू के इन डम-डम शब्दों से मण्डित
- चकार चण्ड-ताण्डवं – प्रचण्ड ताण्डव (नृत्य) किया है,
- तनोतु नः शिवः शिवम् – वे शिवजी हमारे कल्याण का विस्तार करें।
भावार्थ 1 : –
जिन्होंने जटारूपी अटवी (वन)-से निकलती हुई
गंगाजीके गिरते हुए प्रवाहोंसे
पवित्र किये गये गले में
सर्पोकी लटकती हुई विशाल मालाको धारणकर,
डमरूके डम-डम शब्दोंसे मण्डित
प्रचण्ड ताण्डव (नृत्य) किया,
वे शिवजी हमारे कल्याणका विस्तार करें, हम सबको संपन्नता प्रदान करें
भावार्थ 2 : –
जिन शिव जी की सघन, वनरूपी जटा से प्रवाहित हो गंगा जी की धाराएं,
उनके कंठ को प्रक्षालित करती हैं, जिनके गले में, बडे एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं,
तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर, प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।
- प्रक्षालित अर्थात शुद्ध किया हुआ, साफ किया हुआ, धोया हुआ, धुला हुआ
2.
जटाकटाहसम्भ्रम-
भ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरी
विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धग-
ज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
(धगद्धगद्धगज्ज्वललललाटपट्टपावके)
किशोरचन्द्रशेखरे
रतिः प्रतिक्षणं मम॥
- जटा-कटाह-सम्भ्रम- जिनका मस्तक जटारूपी कड़ाह में, जटाओं की गहराई में
- भ्रमन्-निलिम्प निर्झरी- वेग से घूमती हुई गंगाजी की
- विलोल-वीचि-वल्लरी – चंचल तरंग-लताओं से
- विराज-मान मूर्धनि। – सुशोभित हो रहा है,
- धगद्-धगद्-धगज्– धक्-धक्-धक्
- ज्वलल्-ललाट-पट्ट पावके- ललाटाग्नि धक्-धक् जल रही है,
- किशोर-चन्द्र-शेखरे – शीश पर बाल चन्द्रमा विराजमान हैं,
- रतिः प्रति-क्षणं मम – उन (भगवान् शिव) में मेरा निरन्तर अनुराग हो।
भावार्थ 1 : –
जिनका मस्तक जटारूपी कड़ाह में
वेग से घूमती हुई गंगाजी की
चंचल तरंग-लताओं से सुशोभित हो रहा है,
ललाटाग्नि धक्-धक् जल रही है,
शीश पर बाल चन्द्रमा विराजमान हैं,
उन (भगवान् शिव) में मेरा निरन्तर अनुराग हो।
भावार्थ 2 : –
जिन शिव जी के जटाओं में अतिवेग से विलास पुर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरे उनके शिश पर लहरा रहीं हैं,
जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिक्षण बढता रहे। शिवजी में मेरी भक्ति प्रतिक्षण बढ़ती रहे।
3.
धराधरेन्द्रनंदिनी-
विलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्तति
प्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी
निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे
(क्वचिद्दिगम्बरे)
मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥
- धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी – गिरिराज किशोरी (पार्वती) के
- विलास-बन्धु बन्धुर- विलासकाल उपयोगी शिरोभूषण से
- स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति – समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देख
- प्रमोद-मान मानसे – जिनका मन आनन्दित हो रहा है,
- कृपा-कटाक्ष-धोरणी- – जिनकी निरन्तर कृपादृष्टि से
- निरुद्ध-दुर्धरा-पदि – कठिन आपत्ति का भी निवारण हो जाता है,
- क्वचिद्-दिगम्बरे – ऐसे दिगम्बर तत्त्व में
- मनो विनोद-मेतु वस्तुनि – मेरा मन विनोद करे।
भावार्थ 1 : –
गिरिराज किशोरी (पार्वती) के विलासकाल उपयोगी शिरोभूषणसे
समस्त दिशाओंको प्रकाशित होते देख
जिनका मन आनन्दित हो रहा है,
जिनकी निरन्तर कृपादृष्टिसे
कठिन आपत्तिका भी निवारण हो जाता है,
ऐसे दिगम्बर तत्त्वमें मेरा मन विनोद करे।
भावार्थ 2 : –
जो पर्वतराजसुता (पार्वतीजी) के विलासमय रमणिय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणीगण वास करते हैं,
तथा जिनके कृपादृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर शिवजी की आराधना से, मेरा चित्त सर्वदा आन्दित रहे।
- दिगंबर अर्थात आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले
4.
जटाभुजंगपिंगल
स्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुंकुमद्रव
प्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्
त्वगुत्तरीयमे दुरे
(मदान्ध सिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे)
मनोविनोदमद्भुतं
बिभर्तु भूतभर्तरि॥
- जटा-भुजंग-पिंगल- – जिनके जटाजूटवर्ती भुजंगों के
- स्फुरत्-फणा मणि-प्रभा- फणों की मणियों का फैलता हुआ प्रकाश
- कदम्ब-कुंकुम-द्रव- प्रभा-समुहरूप कुंकुमराग केसर के कांति से
- प्रलिप्त-दिग्वधू-मुखे- दिशाओं को प्रकाशित करता हैं
- मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्- त्वगुत्त-रीय-मेदुरे- जो गजचर्म से विभुषित हैं,
- मनो विनोद-मद्भुतं – मैं उन शिवजी की भक्ति में आन्दित रहूँ जो
- बिभर्तु भूत-भर्तरि – सभी प्राणियों की के आधार एवं रक्षक हैं।
भावार्थ 1 : –
जिनके जटाजूटवर्ती भुजंगों के
फणों की मणियों का फैलता हुआ पिंगल
प्रभापुञ्ज दिशारूपिणी अंगनाओं के
मुख पर कुंकुमराग का अनुलेप कर रहा है,
मतवाले हाथी के हिलते हुए चमड़े का उत्तरीय वस्त्र (चादर) धारण करने से स्निग्धवर्ण हुए भूतनाथ में मेरा चित्त अद्भुत विनोद करे।
भावार्थ 2 : –
जिनके जटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों के प्रकाश, पीले वर्ण प्रभा-समुहरूप केसर के कांति से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभुषित हैं,
मैं उन शिवजी की भक्ति में आन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों की के आधार एवं रक्षक हैं
5.
सहस्रलोचनप्रभृत्य
शेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी
विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया
निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां
चकोरबन्धुशेखरः॥
- सहस्र-लोचन-प्रभृत्य– जिनकी चरणपादुकाएँ इन्द्र आदि समस्त देवताओं के
- शेष-लेख-शेखर- प्रणाम करते समय, मस्तकवर्ती (सिर के ऊपरी)
- प्रसून-धूलि-धोरणी– कुसुमों की धूलि से
- विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः- रंजित हो रही हैं
- भुजङ्ग-राज-मालया- नागराज (शेष) के हार से
- निबद्ध-जाट-जूटक:- बँधी हुई जटावाले
- श्रियै चिराय जायतां – मेरे लिये चिरस्थायिनी सम्पत्ति के साधक हों, हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें
- चकोर-बन्धु-शेखरः – भगवान् चन्द्रशेखर
भावार्थ 1 : –
जिनकी चरणपादुकाएँ इन्द्र आदि समस्त देवताओं के (प्रणाम करते समय)
मस्तकवर्ती (सिर के ऊपरी) कुसुमों की धूलि से
रंजित हो रही हैं।
नागराज (शेष) के हार से
बँधी हुई जटावाले भगवान् चन्द्रशेखर
मेरे लिये चिरस्थायिनी सम्पत्ति के साधक हों।
भावार्थ 2 : –
जिन शिवजी के चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों के धूल से रंजित हैं (जिन्हे देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पन करते हैं),
जिनकी जटा पर लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।
ॐ नमः शिवाय
शिवजी हमारा कल्याण करें।
Shiv Tandav Stotram Meaning In Hindi
6.
ललाटचत्वरज्वलद्-
धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं
नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया
विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदे
शिरोजटालमस्तु नः॥
- ललाट-चत्वर-ज्वलद्– जिसने ललाट-वेदी पर प्रज्वलित हुई
- धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा- अग्नि के स्फुलिंगों (ज्वाला) के तेज से
- निपीत-पञ्च-सायकं- इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को भस्म कर दिया
- नमन्-निलिम्प-नायकम्- जिसे इन्द्र नमस्कार किया करते है,
- सुधा-मयूख-लेखया- चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित
- विराज-मान-शेखरं- चन्द्रमा की कला से सुशोभित मुकुटवाला
- महा-कपालि सम्पदे- वह उन्नत विशाल ललाटवाला
- शिरो जटाल-मस्तु नः – जटिल मस्तक हमारी सम्पत्तिका साधक हो, मुझे सिद्दी प्रदान करें
भावार्थ 1 : –
जिसने ललाट-वेदी पर प्रज्वलित हुई
अग्नि के स्फुलिंगों (ज्वाला) के तेज से
कामदेव को नष्ट कर डाला था,
जिसे इन्द्र नमस्कार किया करते हैं,
चन्द्रमा की कला से सुशोभित मुकुटवाला
वह उन्नत विशाल ललाटवाला जटिल मस्तक
हमारी सम्पत्तिका साधक हो।
भावार्थ 2 : –
जिन शिवजी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभि देवों द्वारा पुज्य हैं,
तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्दी प्रदान करें।
7.
करालभालपट्टिका
धगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृत
प्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनी
कुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि
त्रिलोचने रतिर्मम॥
- कराल-भाल-पट्टिका – जिन्होंने अपने विकराल भालपट्ट पर
- धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद् – धक-धक् जलती हई
- धनञ्जया-हुती-कृत – अग्नि में आहुति दे दी थी,
- प्रचण्ड-पञ्चसायके – प्रचण्ड कामदेव की आहुति
- धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी – प्रकृति पर
- कुचाग्र-चित्र-पत्रक – चित्रकारी करने में
- प्रकल्प-नैक-शिल्पिनि – एकमात्र शिल्पकार
- त्रिलोचने रतिर्मम – उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो
भावार्थ 1 : –
जिन्होंने अपने विकराल भालपट्ट पर
धक-धक् जलती हई अग्नि में प्रचण्ड कामदेव की आहुति दे दी थी,
प्रकृति पर चित्रकारी करने में अति चतुर, एकमात्र शिल्पकार भगवान् शिव में मेरी धारणा लगी रहे।
भावार्थ 2 : –
जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया
तथा जो शिव प्रकृति पर चित्रकारी करने में अति चतुर है उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।
8.
नवीनमेघमण्डली
निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथि नीतमः
प्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरी
धरस्तनोतुकृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः
श्रियं जगद्धुरंधरः॥
- नवीन-मेघ-मण्डली– जिनके कण्ठ में नवीन मेघमाला से घिरी हुई
- निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्– अमावस्या की आधी रात के समय फैलते हुए
- कुहू-निशीथि-नी-तमः– दुरूह अन्धकार के समान श्यामता अंकित है;
- प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः – जो गजचर्म लपेटे हुए है,
- निलिम्प-निर्झरी-धरस्– संसारभार को धारण करनेवाले
- तनोतु कृत्ति-सिन्धुरः- संसारभार को धारण करनेवाले
- कला-निधान-बन्धुरः – चन्द्रमा (के सम्पर्क) से मनोहर कान्तिवाले
- श्रियं जगद्-धुरन्धरः – भगवान् शंकर मेरी सम्पत्ति का विस्तार करें।
भावार्थ 1 : –
जिनके कण्ठ में नवीन मेघमाला से घिरी हुई
अमावस्या की आधी रात के समय फैलते हुए
दुरूह अन्धकार के समान श्यामता अंकित है;
जो गजचर्म लपेटे हुए है,
संसारभार को धारण करनेवाले
चन्द्रमा (के सम्पर्क) से मनोहर कान्तिवाले
भगवान् शंकर मेरी सम्पत्ति का विस्तार करें।
भावार्थ 2 : –
जिनका कण्ठ नवीन मेंघों की घटाओं से परिपूर्ण आमवस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं
तथा जो कि जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिवजी हमे सभी प्रकार की सम्पनता प्रदान करें।
9.
प्रफुल्लनीलपङ्कज
प्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दली
रुचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं
भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं
तमन्तकच्छिदं भजे॥
भावार्थ 1 : –
जिनका कण्ठदेश खिले हुए नील कमलसमूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करनेवाली हरिणीकी-सी छविवाले चिह्न से सुशोभित है,
तथा जो कामदेव, त्रिपुर, भव (संसार), दक्ष-यज्ञ, गजासुर, अन्धकासुर और यमराज का भी उच्छेदन (संहार) करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।
भावार्थ 2 : –
जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभुषित है,
जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दु:खो को काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं, तथा जो मृत्यू को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिवजी को भजता हूँ।
10.
अखर्वसर्वमङ्गला
कलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी
विजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं
भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं
तमन्तकान्तकं भजे॥
भावार्थ 1 : –
जो अभिमानरहित पार्वती की कलारूप कदम्बमंजरी के मकरन्दस्रोत की बढ़ती हुई माधुरी के पान करनेवाले मधुप है
तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्ष-यज्ञ, गजासुर, अन्धकासुर और यमराज का भी अन्त करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।
भावार्थ 2 : –
जो कल्यानमय, अविनाशि, समस्त कलाओं के रस का अस्वादन करने वाले हैं,
जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के सहांरक, दक्षयज्ञविध्वसंक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिवजी को भजता हूँ।
श्री नीलकंठ महादेव को नमस्कार
Shiv Tandav Meaning In Hindi
11.
जयत्वदभ्रविभ्रम
भ्रमद्भुजङ्गमश्वस
(जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस)
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्
करालभालहव्यवाट्
(द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्)।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्
मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित
प्रचण्डताण्डवः शिवः॥
भावार्थ 1 : –
जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुए भुजंग के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुई फैल रही है,
धिमि-धिमि बजते हुए मृदंग के गम्भीर मंगल घोषके क्रमानुसार जिनका प्रचण्ड ताण्डव हो रहा है, उन भगवान् शंकर की जय हो!
भावार्थ 2 : –
अतयंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढी हूई प्रचंडअग्नि के मध्य
मृदंग की मंगलकारी धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।
12.
स्पृषद्विचित्रतल्पयो:
भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः
सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः
प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रव्रितिक: कदा
सदाशिवं भजाम्यहम॥
भावार्थ 1 : –
पत्थर और सुन्दर बिछौनों में, सांप और मोतियों की माला में, बहुमूल्य रत्न तथा मिट्टी के ढेले में, मित्र या शत्रुपक्ष में,
तृण या कमललोचना तरुणी में, प्रजा और पृथ्वी के महाराजमें समानभाव रखता हुआ, मैं कब शिवजी को भजूँगा?
भावार्थ 2 : –
कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टूकडों, शत्रू एवं मित्रों,
राजाओं तथा प्रजाओं, तिनकों तथा कमलों पर समान दृष्टि रखने वाले, शिव को मैं भजता हूँ।
13.
कदानिलिम्पनिर्झरी
निकुञ्जकोटरेवसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा
शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।
विलोललोललोचनो
ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्
कदा सुखी भवाम्यहम्॥
भावार्थ 1 : –
सुन्दर ललाटवाले भगवान चन्द्रशेखर में दत्तचित्त हो,
अपने कुविचारों को त्यागकर,
गंगाजी तटवर्ती निकुंज के भीतर रहता हुआ,
सिर पर हाथ जोड़
डबडबायी हुई विह्वल आँखों से
शिव मन्त्र का उच्चारण करता हुआ
मैं कब सुखी होऊँगा।
भावार्थ 2 : –
कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करता हुआ निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर
चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिवजी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा।
14.
इमं हि नित्यमेवमुक्त
मुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो
विशुद्धिमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु
याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां
सुशङ्करस्य चिंतनम्॥
भावार्थ 1 : –
जो मनुष्य इस प्रकार से उक्त
उत्तमोत्तम स्तोत्र का नित्य
पाठ, स्मरण और वर्णन करता है,
वह सदा शुद्ध रहता है और
शीघ्र ही सुरगुरु श्रीशंकरजी की अच्छी भक्ति प्राप्त कर लेता है,
वह विरुद्धगतिको प्राप्त नहीं होता;
क्योंकि शिवजीका भक्तिपूर्वक चिन्तन
प्राणिवर्गके मोह का नाश करनेवाला है।
भावार्थ 2 : –
इस उत्त्मोत्त्म शिव ताण्डव स्त्रोत को नित्य पढने या श्रवण करने मात्र से प्राणि पवित्र हो जाता है, और
परमगुरु शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।
15.
पूजावसानसमये
दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं
पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां
रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं
प्रददाति शम्भुः॥
भावार्थ 1 : –
सायंकाल में पूजा समाप्त होने पर
रावणके गाये हुए इस
शम्भु पूजन सम्बन्धी स्तोत्र का
जो पाठ करता है,
भगवान् शंकर उस मनुष्य को
रथ, हाथी, घोड़ों से युक्त
सदा स्थिर रहनेवाली
अनुकूल सम्पत्ति प्रदान करते हैं।
भावार्थ 2 : –
प्रात: शिवपुजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं
तथा भक्त रथ, गज, घोडा आदि सम्पदा से, सर्वदा युक्त रहता है
- इति श्रीरावण-कृतम् शिव-ताण्डव-स्तोत्रम् सम्पूर्णम्
Shiva Tandav Stotram Lyrics – with Easier to Read Format
शिव ताण्डव स्तोत्र – पढ़ने के लिए सरल, संस्कृत शब्द
1.
जटा-टवी-गलज्-जल-
प्रवाह-पावि-तस्थले
गलेऽव-लम्ब्य लम्बितां
भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्।
डमड्-डमड्-डमड्-
डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं
चकार चण्ड-ताण्डवं
तनोतु नः शिवः शिवम्॥1॥
2.
जटा-कटाह-सम्भ्रम-
भ्रमन्-निलिम्प निर्झरी
विलोल-वीचि-वल्लरी
विराज-मान मूर्धनि।
धगद्-धगद्-धगज्-
ज्वलल्-ललाट-पट्ट पावके
किशोर-चन्द्र-शेखरे
रतिः प्रति-क्षणं मम॥2॥
3.
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-
विलास-बन्धु बन्धुर
स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति
प्रमोद-मान मानसे।
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-
निरुद्ध-दुर्धरा-पदि
क्वचिद्-दिगम्बरे
मनो विनोद-मेतु वस्तुनि॥3॥
4.
जटा-भुजंग-पिंगल-
स्फुरत्-फणा मणि-प्रभा
कदम्ब-कुंकुम-द्रव
प्रलिप्त-दिग्वधू-मुखे।
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्-
त्वगुत्त-रीय-मेदुरे
मनो विनोद-मद्भुतं
बिभर्तु भूत-भर्तरि॥4॥
5.
सहस्र-लोचन-प्रभृत्य-
शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-
विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः।
भुजङ्ग-राज-मालया
निबद्ध-जाट-जूटक:
श्रियै चिराय जायतां
चकोर-बन्धु-शेखरः॥5॥
6.
ललाट-चत्वर-ज्वलद्-
धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा
निपीत-पञ्च-सायकं
नमन्-निलिम्प-नायकम्।
सुधा-मयूख-लेखया
विराज-मान-शेखरं
महा-कपालि सम्पदे
शिरो जटाल-मस्तु नः॥6॥
7.
कराल-भाल-पट्टिका-
धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद्-
धनञ्जया-हुती-कृत-
प्रचण्ड-पञ्च-सायके।
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-
कुचाग्र-चित्र-पत्रक-
प्रकल्प-नैक-शिल्पिनि
त्रिलोचने रतिर्मम॥7॥
8.
नवीन-मेघ-मण्डली-
निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्-
कुहू-निशीथि-नी-तमः-
प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः।
निलिम्प-निर्झरी-धरस्-
तनोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः
श्रियं जगद्-धुरन्धरः॥8॥
9.
प्रफुल्ल-नील-पङ्कज-
प्रपञ्च-कालिम-प्रभा-
वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-
रुचि-प्रबद्ध-कन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं
भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छि-दान्ध-कच्छिदं
तमन्त-कच्छिदं भजे॥9॥
10.
अखर्व-सर्व-मङ्गला-
कला-कदम्ब मञ्जरी-
रस-प्रवाह-माधुरी-
विजृम्भणा-मधु-व्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं
भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं
तमन्त-कान्तकं भजे॥10॥
11.
जयत्-वद-भ्रवि-भ्रम-
भ्रमद्-भुजङ्ग मश्वस-
द्विनिर्गमत्-क्रम-स्फुरत्-
कराल-भाल-हव्य-वाट्
धिमिद्-धिमिद्-धिमिद्-
ध्वनन्-मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल-
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-
प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः॥11॥
12.
दृषद्-विचित्र-तल्पयोर्-
भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्-
गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोः
सुहृद्-विपक्ष-पक्ष-योः।
तृणारविन्द-चक्षुषोः
प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
सम-प्रवृत्ति-कः कदा
सदा-शिवं भजाम्यहम्॥12॥
13.
कदा निलिम्प-निर्झरी-
निकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा
शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन्।
विलोल-लोल-लोचनो
ललाम-भाल-लग्नकः
शिवेति मन्त्र मुच्चरन्
कदा सुखी भवाम्यहम्॥13॥
14.
इमं हि नित्य-मेव-मुक्त-
मुत्त-मोत्तमं स्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन्-नरो
विशुद्धि-मेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु
याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां
सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥14॥
15.
पूजा-वसान-समये
दश-वक्त्र-गीतं
यः शम्भु-पूजन-परं
पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथ-
गजेन्द्र-तुरङ्ग-युक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं
प्रददाति शम्भुः॥15॥
इति श्री रावणकृतं
शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम्।
Shiv Tandav Stotram Lyrics In Sanskrit
1.
जटाटवीगलज्जल प्रवाह पावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥
2.
जटाकटाह सम्भ्रम भ्रमन्नि लिम्प निर्झरी
विलोल वीचि वल्लरी विराज मान मूर्धनि।
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके
(धगद्धगद्धगज्ज्वललललाटपट्टपावके)
किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥
3.
धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुर
स्फुरद्दिगन्त सन्तति प्रमोद मान मानसे।
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि
क्वचिद् दिगम्बरे (क्वचिद्दिगम्बरे)
मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥
4.
जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणा मणिप्रभा
कदम्ब कुङ्कुमद्रव प्रलिप्त दिग्वधूमुखे।
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे
(मदान्ध सिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे)
मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥
5.
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर
प्रसून धूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रि पीठभूः।
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः॥
6.
ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जय स्फुलिङ्गभा
निपीत पञ्चसायकं नमन्नि लिम्पनायकम्।
सुधा मयूख लेखया विराजमान शेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरोजटालमस्तु नः॥
7.
कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृत प्रचण्डपञ्चसायके।
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक
प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥
8.
नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः।
निलिम्प निर्झरी धरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधान बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः॥
9.
प्रफुल्ल नील पङ्कज प्रपञ्च कालिमप्रभा
वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांध कच्छिदं तमन्त कच्छिदं भजे॥
10.
अखर्व सर्व मङ्गला कला कदम्ब मञ्जरी
रस प्रवाह माधुरी विजृम्भणा मधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त कान्ध कान्तकं तमन्त कान्तकं भजे॥
11.
जयत् वद भ्रविभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस
(जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस)
द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट्
(द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्)।
धिमिद्धिमिद्धिमि ध्वनन् मृदङ्ग तुङ्ग मङ्गल
ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः॥
12.
स्पृषद्वि चित्रतल्पयो: भुजङ्ग मौक्ति कस्रजोर्
गरिष्ठ रत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि पक्ष पक्षयोः।
तृणारविन्द चक्षुषोः प्रजामही महेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम॥
13.
कदा निलिम्प निर्झरी निकुञ्ज कोटरे वसन्
विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन्।
विलोल लोल लोचनो ललाम भाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥
14.
इमं हि नित्यमेव मुक्त मुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम्॥
15.
पूजावसान समये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः॥
Shiva Tandav Stotra Lyrics in English
Part 1
Jataatavi Galajjala
Pravaaha Paavitasthale
Galeavalambya Lambitaam
Bhujanga Tunga Maalikaam
Damad Damad Damad
Damanninaada Vad da_Marvayam
Chakaara Chanda Taandavam
Tanotu Nah Shivah Shivam
Part 2
Jataa Kataaha Sambhrama
Bhramanni Limpa Nirjhariee
Vilolaveechi Vallaree
Viraajamaana Murddhanee.
Dhagad Dhagad Dhaga
Jjvalallalaata Patta Paavake
Kishora Chandra Shekhare
Ratih Pratikshanam Mama
Part 3
Dharaa Dharendra Nandinee
Vilaasa Bandhu Bandhura
Sphuraddiganta Santati
Pramoda Maana Maanase.
Kripaa Kataaksha Dhoranee
Niruddha Durdharaapadi
Kvachiddigambare Mano
Vinodametu Vastuni
Part 4
Jataa Bhujanga Pingala
Sphuratphanaa Maniprabhaa
Kadamba Kunkuma Drava
Pralipta Digvadhu Mukhe.
Madaandha Sindhu Rasphura
Ttvaguttareeya Medure
Mano Vinoda Madbhutam
Bibhartu Bhuta Bhartari
Part 5
Sahasra Lochana Prabhritya
Sheshalekha Shekhara
Prasuna Dhuli Dhoranee
Vidhu Saraanghri Peethabhuh.
Bhujanga Raaja Maalayaa
Nibaddha Jaata Jutakah
Shriyai Chiraaya Jaayataam
Chakora Bandhu Shekharah
Part 6
Lalaata Chatvara Jvala
ddhananjaya Sphulingabhaa
Nipeeta Pancha Saayakam
Namanni Limpa Naayakam.
Sudhaa Mayukha Lekhayaa
Viraajamaana Shekharam
Mahaa Kapaali Sampade
Shiro Jataala Mastu Nah
Part 7
Karaala Bhaala Pattikaa
Dhagad Dhagad Dhagajjvala
Ddhananjayaa Huteekrita
Prachanda Pancha Saayake.
Dharaa Dharendra Nandinee
Kuchaagra Chitra Patraka
Prakalpa Naika Shilpini
Trilochane Ratirmama
Part 8
Naveena Megha Mandalee
Niruddha Durdhara Sphuratkuhu
Nisheethinee Tamah
Prabandha Baddha Kandharah.
Nilimpa Nirjharee
Dharastanotu Kritti Sindhurah
Kalaa Nidhaana Bandhurah
Shriyam Jagaddhurandharah
Part 9
Praphulla Neela Pankaja
Prapancha Kaalima Prabhaa
Valambi Kantha Kandalee
Ruchi Prabaddha Kandharam.
Smarachchhidam Purachchhidam
Bhavachchhidam Makhachchhidam
Gajachchhidaandha Kachchhidam
Tamanta Kachchhidam Bhaje
Part 10
Akharva Sarva Mangalaa
Kalaa Kadamba Manjaree
Rasa Pravaaha Maadhuree
Vijrimbhanaa Madhuvratam.
Smaraantakam Puraantakam
Bhavaantakam Makhaantakam
Gajaanta Kaandha Kaantakam
Tamanta Kaantakam Bhaje
Part 11
Jayatvada Bhravibhrama
Bhramad Bhujanga Mashvasa
Dvinirgamat Krama Sphurat
Karaala Bhaala Havyavaat.
Dhimid Dhimid Dhimid
Dhvanan Mridanga Tunga Mangala
Dhvani Krama Pravartita
Prachanda Taandavah Shivah
Part 12
Drishad Vichitra Talpayor
Bhujanga Maukti Kasrajor
Garishtha Ratna Loshthayoh
Suhrid Vipaksha Pakshayoh.
Trinaaravinda Chakshushoh
Prajaamahee Mahendrayoh
Sama Pravrittikah Kadaa
Sadaa Shivam Bhajaamyaham
Part 13
Kadaa Nilimpa Nirjharee
Nikunja Kotare Vasan
Vimukta Durmatih Sadaa
Shirah Sthamanjalim Vahan.
Vilola lola Lochano
Lalaama Bhaala Lagnakah
Shiveti Mantra Muchcharan
Kadaa Sukhee Bhavaamyaham
Part 14
Imam Hi Nityameva Mukta
Mutta Mottamam Stavam
Pathan Smaran Bruvannaro
Vishuddhi Meti Santatam.
Hare Gurau Subhakti Maashu
Yaati Naanyathaa Gatim
Vimohanam Hee Dehinaam
Sushankarasya Chintanam ॥14॥
Part 15
Pujaa Vasaana Samaye
Dashavaktra Geetam
Yah Shambhu Pujana
Param Pathati Pradoshe.
Tasya Sthiraam Ratha
Gajendra Turanga Yuktaam
Lakshmeem Sadaiva Sumukheem
Pradadaati Shambhuh
Shiv Tandav Stotram Complete
Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan
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- श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग – 3
- श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग – 5
- श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग – 2
- ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग – 4
- श्री भीमांशंकर ज्योतिर्लिंग – 6
- श्री विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग – 7
- श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग – 8
- श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग- 11
List
- गीता के अनुसार मनुष्य का भविष्य कैसे बनता है?
- भगवद गीता अर्थ सहित अध्याय लिस्ट
- भगवद गीता अर्थ सहित अध्याय – 01
- भगवद गीता अर्थ सहित अध्याय – 02
- भगवद गीता अर्थ सहित अध्याय – 03