शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र अर्थ सहित

Shiva Pratah Smaran Stotra – Meaning

शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र अर्थ सहित

सुबह की जाने वाली, भगवान शिव की स्तुति

प्रातः स्मरण अर्थात सुबह किया जाने वाला ईश्वर का स्मरण।

शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र, एक छोटासा तीन श्लोकों का शिव स्तोत्र है, अर्थात छोटी सी सुंदर, तीन श्लोकों की भगवान् शिव की स्तुति है।

शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र के हर श्लोक में, संसार के दुःख और कष्टों को हरने वाले शिवजी को प्रणाम करते है।


शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र का सुबह पाठ करने से दिन की अच्छी शुरुआत

इस स्त्रोत्र के हर श्लोक में भगवान् शिव के स्वरुप का वर्णन है, जैसे की गंगाधर, आशीर्वाद देने वाली हाथ की मुद्रा, विकारशून्य आदि।

साथ ही साथ उनकी महिमा के बारे में भी वर्णन है, जैसे की सांसारिक भय और रोग को हरने वाले, आदिदेव, विश्वनाथ आदि।

और फिर हर श्लोक के अंत में, रोग और दुखों से मुक्ति के लिए अद्वितीय औषध रूप भोले बाबा को नमस्कार किया गया है।

इसलिए, यदि सुबह बिस्तर से उठते ही शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र का पाठ किया जाए, तो मन प्रसन्न हो जाता है, और ऊर्जा से भरी हुई दिन की शुरुआत होती है।


शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र

शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र के इस पोस्ट में –

  1. पहले स्तोत्र भावार्थ और शब्दों के अर्थ के साथ दिया गया है।
  2. बाद में संस्कृत शब्दों को पढ़ने में सरल इस फॉर्मेट में दिया है।
  3. फिर स्तोत्र सिर्फ संस्कृत में और
  4. अंत में शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र सिर्फ हिंदी में दिया गया है।

1. शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र – शब्दों का अर्थ और भावार्थ

1.

प्रातः स्मरामि
भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं
वृषभवाहनमम्बिकेशम्।

खट्वाङ्गशूल
वरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥

  • प्रातः स्मरामि – मै प्रात:काल नमस्कार करता हूं
  • भव भीति हरं – जो सांसारिक भय को हरने वाले हैं
  • सुरेशं – देवताओं के स्वामी हैं,
  • गङ्गा धरं – जो गंगा जी को धारण करते हैं,
  • वृषभ वाहनम् – जिनका वृषभ वाहन है,
  • अम्बिकेशम् – जो अम्बिका के ईश हैं।
  • खट्वाङ्ग शूल – जिनके हाथ में खट्वांग (खटवांग), त्रिशूल
  • वरदाभय हस्तमीशं – आशीर्वाद देने की हाथों की मुद्रा
  • संसार रोग हरम् – उन संसार रोग को हरने के निमित्त
  • औषधम्-अद्वितीयम् – अद्वितीय और औषध रुप,
  • ईश महादेव जी को, मैं प्रणाम करता हूं।

भावार्थ:
जो सांसारिक भय को हरने वाले हैं और
जो देवताओं के स्वामी हैं,
जो गंगा जी को धारण करते हैं,
जिनका वृषभ वाहन है,
जो अम्बिका के ईश हैं,
जिनके हाथ में खट्वांग (खटवांग), त्रिशूल है और
वरद अभय मुद्रा है, अर्थात हाथ की आशीर्वाद देने की मुद्रा है,
उन संसार रोग को हरने के निमित्त अद्वितीय औषध रुप ईश महादेव जी को मैं प्रणाम करता हूं।

  • वरद अर्थात – आशीर्वाद देने की मुद्रा, वर देने वाले, वरदाता, आशीर्वाद, कृपा, वरदान
  • खट्वांग, खटवांग अर्थात – शिव के हाथ का एक आयुध, अस्त्र।

2.

प्रातर्नमामि गिरिशं
गिरिजार्धदेहं
सर्गस्थिति
प्रलयकारणमादिदेवम्।

विश्वेश्वरं
विजितविश्वमनोभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥

  • प्रातर्नमामि – मै प्रात:काल नमस्कार करता हूं
  • गिरिशं – भगवान् शिव को
  • गिरिजार्धदेहं – अर्धनारीश्वर रूप
    • भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप, शिव और पार्वती
  • सर्ग स्थिति – जो संसार की सृष्टि, स्थिति और
  • प्रलय कारणम् – प्रलय के कारण हैं
  • आदिदेवम् – आदिदेव है
  • विश्वेश्वरं – विश्वनाथ है,
  • विजित विश्व – विश्व विजयी और
  • मनोभिरामं –  मनोहर है,
  • संसार रोग हरम् – सांसारिक रोग को नष्ट करने के लिए,
  • औषधम्-अद्वितीयम् – अद्वितीय औषध रुप,
  • उन गिरीश अर्थात शिवजी को मै प्रात:काल नमस्कार करता हूं

भावार्थ:
भगवती पार्वती जिनका आधा अंग है (भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप – शिव और पार्वती),
जो संसार की सृष्टि, स्थिति और प्रलय के कारण हैं,
आदिदेव है,
विश्वनाथ है,
विश्व विजयी और मनोहर है,
सांसारिक रोग को नष्ट करने के लिए अद्वितीय और औषध रूप उन गिरीश अर्थात शिवजी को मै प्रात:काल नमस्कार करता हूं।


3.

प्रातर्भजामि
शिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघं
पुरुषं महान्तम्।

नामादिभेदरहितं
षड्भावशून्यं
(या विकारशून्यं)
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥

  • प्रातर्भजामि – मैं प्रात:काल भजता हूँ
  • शिवमेकम् अनन्तम् आद्यं – शिवजी को, जो आदि अंत से रहित है,
  • वेदान्त वेद्य मनघं – वेदांत से जानने योग्य,
  • पुरुषं महान्तम् – पाप रहित एवं महान पुरुष है
  • नामादिभेदरहितं – जो नाम आदि भेदों से रहित,
  • षड्भावशून्यं (या विकारशून्यं) – विकारों से शुन्य,
    • अर्थात विकारों से रहित है,
  • संसाररोग हरम् – सांसारिक रोग को नष्ट करने के लिए,
  • औषधम्-अद्वितीयम् – अद्वितीय औषध रुप,
  • उन एक शिव जी को मैं प्रात:काल भजता हूँ

भावार्थ:
जो अंत से रहित,
आदिदेव है,
वेदांत से जानने योग्य,
पाप रहित एवं महान पुरुष है तथा
जो नाम आदि भेदों से रहित,
विकारों से शुन्य, अर्थात विकारों रहित,
संसार रोगके हरने के निमित्त अद्वितीय औषध है, उन एक शिव जी को मैं प्रात:काल भजता हूँ।


2. स्तोत्र – पढ़ने के लिए सरल, संस्कृत शब्द

1.

प्रातः स्मरामि
भवभीति हरं सुरेशं
गंगा-धरं
वृषभ वाहनम् अम्बिकेशम्।

खटवांग शूल
वरदा भय हस्तम् ईशं
संसार रोग हरम् औषधम् अद्वितीयम्॥


2.

प्रातर् नमामि गिरिशं
गिरिजा अर्ध देहं
सर्ग स्थिति
प्रलय कारणम् आदि देवम्।

विश्वेश्वरं
विजित विश्व मनोभिरामं
संसार रोग हरम् औषधम् अद्वितीयम्॥


3.

प्रातर् भजामि
शिवम् एकम् अनन्तम् आद्यं
वेदान्त वेद्य मनघं
पुरुषं महान्तम्।

नाम् आदि भेद रहितं
षण भाव शून्यं
संसार रोग हरम् औषधम् अद्वितीयम्॥



Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan


3. शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र – सिर्फ संस्कृत में

1.

प्रातः स्मरामि
भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं
वृषभवाहनमम्बिकेशम्।

खट्वाङ्गशूल
वरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥


2.

प्रातर्नमामि गिरिशं
गिरिजार्धदेहं
सर्गस्थिति
प्रलयकारणमादिदेवम्।

विश्वेश्वरं
विजितविश्वमनोभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥


3.

प्रातर्भजामि
शिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघं
पुरुषं महान्तम्।

नामादिभेदरहितं
षड्भावशून्यं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥


4. शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र – सिर्फ हिंदी में

1.

जो सांसारिक भय को हरने वाले हैं और
देवताओं के स्वामी हैं,
जो गंगा जी को धारण करते हैं,
जिनका वृषभ वाहन है, और
जो अम्बिका के ईश हैं,

जिनके हाथ में खट्वांग (खटवांग), त्रिशूल और
वरद अभय मुद्रा है,
उन संसार रोग को हरने वाले
अद्वितीय औषध रुप भगवान शिव को मैं प्रणाम करता हूं।


2.

अर्धनारीश्वर स्वरुप अर्थात भगवती पार्वती जिनका आधा अंग है,
जो संसार की सृष्टि, स्थिति और प्रलय के कारण हैं और
आदिदेव है, विश्वनाथ है,
विश्व विजयी और मनोहर है,

सांसारिक रोगों को नष्ट करने के लिए
अद्वितीय और औषध रूप
उन गिरीश अर्थात शिवजी को मै प्रात:काल नमस्कार करता हूं।


3.

जो अंत से रहित, आदिदेव है,
वेदांत से जानने योग्य,
पाप रहित एवं महान पुरुष है,
तथा जो नाम आदि भेदों से रहित,
विकारों से शुन्य, अर्थात विकारों रहित है, और
संसार रोगके हरने के निमित्त अद्वितीय औषध है
उन शिव जी को मैं प्रात:काल भजता हूँ।


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