शिव पुराण विषय-सूची
शिव पुराण में मुख्यतः 7 संहिता है। दूसरी संहिता यानी की रुद्र संहिता के अंतर्गत 5 खंड आते है और अंतिम संहिता, वायवीय संहिता भी दो खंड में विभाजित है।
इस पेज में पहले उन संहिताओं और खंड की डायरेक्ट लिंक दी गयी है। और बाद में प्रत्येक अध्याय की लिंक, संक्षिप्त विवरण के साथ दी गयी है।
शिव पुराण 7 संहिता और खंड
शिव पुराण अध्याय सूचि (संक्षिप्त विवरण के साथ)
श्रीशिवपुराण-माहात्म्य
1. शिवपुराणकी उत्कृष्ट महिमा :
शौनकजीके साधनविषयक प्रश्न करनेपर सूतजीका उन्हें शिवपुराणकी उत्कृष्ट महिमा सुनाना
2. देवराज की कथा :
शिवपुराणके श्रवणसे देवराजको शिवलोककी प्राप्ति
3. चंचुला की कथा :
चंचुलाका पापसे भय एवं संसारसे वैराग्य
4. चंचुलाको शिवपुराण सुनने का लाभ :
चंचुलाकी प्रार्थनासे ब्राह्मणका उसे पूरा शिवपुराण सुनाना और समयानुसार शरीर छोड़कर शिवलोकमें जा चंचुलाका पार्वतीजीकी सखी एवं सुखी होना
5. चंचुलाके प्रयत्नसे बिन्दुगका उद्धार
चंचुलाके प्रयत्नसे पार्वतीजीकी आज्ञा पाकर तुम्बुरुका विन्ध्यपर्वतपर शिवपुराणकी कथा सुनाकर बिन्दुगका पिशाचयोनिसे उद्धार करना तथा उन दोनों दम्पतिका शिवधाममें सुखी होना
7. शिवपुराणके श्रोताओंके पालन करनेयोग्य नियमोंका वर्णन
विद्येश्वर संहिता
1. तुरंत पापनाश करनेवाला साधन
विद्येश्वर संहिता – 1 : प्रयाणमें सूतजीसे मुनियोंका तुरंत पापनाश करनेवाले साधनके विषयमें प्रश्न
2. शिवपुराणका परिचय
विद्येश्वर संहिता – 2 : धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – इन चारों पुरुषार्थोंको देनेवाले शिव पुराण की समूर्ण जानकारी। मूल शिवपुराण में कितनी संहिताएँ है, खंड हैं, श्लोकों की संख्या आदि के बारें में जानकारी।
3. श्रवण, कीर्तन और मनन का महत्व
विद्येश्वर संहिता – 3 : साध्य-साधन आदिका विचार तथा श्रवण, कीर्तन और मनन – इन तीन साधनोंकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन
4. शिवलिंग और शिवमूर्ति का रहस्य
विद्येश्वर संहिता – 4 : भगवान् शिवके लिंग एवं साकार विग्रहकी पूजाके रहस्य तथा महत्त्वका वर्णन
5. शिवजी के सकल और निष्कल स्वरूप
विद्येश्वर संहिता – 5 : महेश्वरका ब्रह्मा और विष्णुको अपने निष्कल और सकल स्वरूपका परिचय देते हुए लिंगपूजनका महत्त्व बताना
6. प्रणव एवं पंचाक्षर-मन्त्रका महत्व
विद्येश्वर संहिता – 6 : पाँच कृत्योंका प्रतिपादन, प्रणव एवं पंचाक्षर-मन्त्रकी महत्ता, ब्रह्मा-विष्णुद्वारा भगवान् शिवकी स्तुति तथा उनका अन्तर्धान
7. शिवलिंगकी पूजा और शिवपदकी प्राप्ति के लिए सत्कर्म
विद्येश्वर संहिता – 7 : शिवलिंगकी स्थापना, उसके लक्षण और पूजनकी विधिका वर्णन तथा शिवपदकी प्राप्ति करानेवाले सत्कर्मोंका विवेचन
8. तीर्थ, पुण्यक्षेत्र और पवित्र नदियों का वर्णन
विद्येश्वर संहिता – 8 : मोक्षदायक पुण्यक्षेत्रोंका वर्णन, कालविशेषमें विभिन्न नदियोंके जलमें स्नानके उत्तम फलका निर्देश तथा तीर्थोंमें पापसे बचे रहनेकी चेतावनी
9. ओमकार, गायत्री जप और दान का महत्व और कैसे करें?
विद्येश्वर संहिता – 9 : सदाचार, शौचाचार, स्नान, भस्मधारण, संध्यावन्दन, प्रणव-जप, गायत्री-जप, दान, न्यायतः धनोपार्जन तथा अग्निहोत्र आदिकी विधि एवं महिमाका वर्णन
10. विभिन्न यज्ञों का और सप्ताह के सातों वारों का महत्व
विद्येश्वर संहिता – 10 : अग्नियज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ आदिका वर्णन, भगवान् शिवके द्वारा सातों वारोंका निर्माण तथा उनमें देवाराधनसे विभिन्न प्रकारके फलोंकी प्राप्तिका कथन
11. दान कब और कैसे करें?
विद्येश्वर संहिता – 11 : देश, काल, पात्र और दान आदिका विचार
12. मूर्तिपूजा की विधि, नैवेद्य, और पूजा के विभिन्न फल
विद्येश्वर संहिता – 12 : पृथ्वी आदिसे निर्मित देवप्रतिमाओंके पूजनकी विधि, उनके लिये नैवेद्यका विचार
– पूजनके विभिन्न उपचारोंका फल, विशेष मास, वार, तिथि एवं नक्षत्रोंके योगमें पूजनका विशेष फल तथा लिंगके वैज्ञानिक स्वरूपका विवेचन
13. पंचाक्षर, प्रणव, ओमकार जप की विधि और उनकी महिमा
विद्येश्वर संहिता – 13 : षड्लिंगस्वरूप प्रणवका माहात्म्य, उसके सूक्ष्म रूप (ॐकार) और स्थूल रूप (पंचाक्षरमन्त्र)-का विवेचन, उसके जपकी विधि एवं महिमा
– कार्यब्रह्मके लोकोंसे लेकर कारणरुद्रके लोकोंतकका विवेचन करके कालातीत, पंचावरणविशिष्ट शिवलोकके अनिर्वचनीय वैभवका निरूपण तथा शिव-भक्तोंके सत्कारकी महत्ता
14. शिव पुराण – विद्येश्वर संहिता – 14
विद्येश्वर संहिता – 14 : बन्धन और मोक्षका विवेचन, शिवपूजाका उपदेश, लिंग आदिमें शिवपूजनका विधान, भस्मके स्वरूपका निरूपण और महत्त्व, शिव एवं गुरु शब्दकी व्युत्पत्ति तथा शिवके भस्मधारणका रहस्य
15. शिव पुराण – विद्येश्वर संहिता – 15
विद्येश्वर संहिता – 15 : पार्थिवलिंगके निर्माणकी रीति तथा वेद-मन्त्रोंद्वारा उसके पूजनकी विस्तृत एवं संक्षिप्त विधिका वर्णन
16. शिव पुराण – विद्येश्वर संहिता – 16
विद्येश्वर संहिता – 16 : पार्थिवपूजाकी महिमा, शिवनैवेद्यभक्षणके विषयमें निर्णय तथा बिल्वका माहात्म्य
17. शिव पुराण – विद्येश्वर संहिता – 17
विद्येश्वर संहिता – 17 : शिवनाम-जप तथा भस्मधारणकी महिमा, त्रिपुण्ड्रके देवता और स्थान आदिका प्रतिपादन
18. शिव पुराण – विद्येश्वर संहिता – 18
विद्येश्वर संहिता – 18 : रुद्राक्षधारणकी महिमा तथा उसके विविध भेदोंका वर्णन
रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड
1. नारदमोहका प्रसंग
रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 1 : ऋषियोंके प्रश्नके उत्तरमें नारद-ब्रह्म-संवादकी अवतारणा करते हुए सूतजीका उन्हें नारदमोहका प्रसंग सुनाना; कामविजयके गर्वसे युक्त हुए नारदका शिव, ब्रह्मा तथा विष्णुके पास जाकर अपने तपका प्रभाव बताना
2. नारदजीका भगवान् विष्णुसे उनका रूप माँगना
रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 2 : मायानिर्मित नगरमें शीलनिधिकी कन्यापर मोहित हुए नारदजीका भगवान् विष्णुसे उनका रूप माँगना, भगवान् का अपने रूपके साथ उन्हें वानरका-सा मुँह देना, कन्याका भगवान् को वरण करना और कुपित हुए नारदका शिवगणोंको शाप देना
3. भगवान् विष्णुका नारदजीको शिवका माहात्म्य जाननेके लिये कहना
रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 3 : नारदजीका भगवान् विष्णुको क्रोधपूर्वक फटकारना और शाप देना; फिर मायाके दूर हो जानेपर पश्चात्तापपूर्वक भगवान् के चरणोंमें गिरना और शुद्धिका उपाय पूछना तथा भगवान् विष्णुका उन्हें समझा-बुझाकर शिवका माहात्म्य जाननेके लिये ब्रह्माजीके पास जानेका आदेश और शिवके भजनका उपदेश देना
4. नारदजीका ब्रह्माजीसे शिवतत्त्वके विषयमें जानना
रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 4 : नारदजीका शिवतीर्थोंमें भ्रमण, शिवगणोंको शापोद्धारकी बात बताना तथा ब्रह्मलोकमें जाकर ब्रह्माजीसे शिवतत्त्वके विषयमें प्रश्न करना
5. निराकार परमात्मा से सदाशिव, अम्बिका, विष्णु, तथा प्राकृत तत्त्वोंका प्राकट्य
रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 5 : महाप्रलयकालमें केवल सद्ब्रह्मकी सत्ताका प्रतिपादन, उस निर्गुण-निराकार ब्रह्मसे ईश्वरमूर्ति (सदाशिव)-का प्राकट्य, सदाशिवद्वारा स्वरूपभूता शक्ति (अम्बिका)-का प्रकटीकरण, उन दोनोंके द्वारा उत्तम क्षेत्र (काशी या आनन्दवन)-का प्रादुर्भाव, शिवके वामांगसे परम पुरुष (विष्णु)-का आविर्भाव तथा उनके सकाशसे प्राकृत तत्त्वोंकी क्रमशः उत्पत्तिका वर्णन
6. ब्रह्माजीके कमलसे प्रकट होने की कथा
रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 6 : भगवान् विष्णुकी नाभिसे कमलका प्रादुर्भाव, शिवेच्छावश ब्रह्माजीका उससे प्रकट होना, कमलनालके उद् गमका पता लगानेमें असमर्थ ब्रह्माका तप करना, श्रीहरिका उन्हें दर्शन देना, विवादग्रस्त ब्रह्मा-विष्णुके बीचमें अग्नि-स्तम्भका प्रकट होना तथा उसके ओर-छोरका पता न पाकर उन दोनोंका उसे प्रणाम करना
7. ब्रह्मा और विष्णुको भगवान् शिवके शब्दमय शरीरका दर्शन
रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 7 : कैसे भगवान् महेश्वर ही प्रणव अक्षर ॐ के ‘अ’, ‘उ’ और ‘म्’ इन त्रिविध रूपोंमें वर्णित हैं।
8. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 8
उमासहित भगवान् शिवका प्राकट्य, उनके द्वारा अपने स्वरूपका विवेचन तथा ब्रह्मा आदि तीनों देवताओंकी एकताका प्रतिपादन
9. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 9
श्रीहरिको सृष्टिकी रक्षाका भार एवं भोग-मोक्ष-दानका अधिकार दे भगवान् शिवका अन्तर्धान होना
10. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 10
शिवपूजनकी विधि तथा उसका फल
11. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 11
भगवान् शिवकी श्रेष्ठता तथा उनके पूजनकी अनिवार्य आवश्यकताका प्रतिपादन
12. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 12
शिवपूजनकी सर्वोत्तम विधिका वर्णन
13. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 13
विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादिकी धाराओंसे शिवजीकी पूजाका माहात्म्य
14. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 14
सृष्टिका वर्णन
15. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 15
स्वायम्भुव मनु और शतरूपाकी, ऋषियोंकी तथा दक्षकन्याओंकी संतानोंका वर्णन तथा सती और शिवकी महत्ताका प्रतिपादन
16. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 16
यज्ञदत्तकुमारको भगवान् शिवकी कृपासे कुबेरपदकी प्राप्ति तथा उनकी भगवान् शिवके साथ मैत्री
17. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सृष्टि खण्ड – 17
भगवान् शिवका कैलास पर्वतपर गमन तथा सृष्टिखण्डका उपसंहार
रुद्र संहिता – सती खण्ड
1. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 1
नारदजीके प्रश्न और ब्रह्माजीके द्वारा उनका उत्तर, सदाशिवसे त्रिदेवोंकी उत्पत्ति तथा ब्रह्माजीसे देवता आदिकी सृष्टिके पश्चात् एक नारी और एक पुरुषका प्राकट्य
2. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 2
कामदेवके नामोंका निर्देश, उसका रतिके साथ विवाह तथा कुमारी संध्याका चरित्र – वसिष्ठ मुनिका चन्द्रभाग पर्वतपर उसको तपस्याकी विधि बताना
3. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 3
संध्याकी तपस्या, उसके द्वारा भगवान् शिवकी स्तुति तथा उससे संतुष्ट हुए शिवका उसे अभीष्ट वर दे मेधातिथिके यज्ञमें भेजना
4. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 4
संध्याकी आत्माहुति, उसका अरुन्धतीके रूपमें अवतीर्ण होकर मुनिवर वसिष्ठके साथ विवाह करना, ब्रह्माजीका रुद्रके विवाहके लिये प्रयत्न और चिन्ता तथा भगवान् विष्णुका उन्हें ‘शिवा’ की आराधनाके लिये उपदेश देकर चिन्तामुक्त करना
5. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 5
दक्षकी तपस्या और देवी शिवाका उन्हें वरदान देना
6. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 6
ब्रह्माजीकी आज्ञासे दक्षद्वारा मैथुनी सृष्टिका आरम्भ, अपने पुत्र हर्यश्वों और शबलाश्वोंको निवृत्तिमार्गमें भेजनेके कारण दक्षका नारदको शाप देना
7. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 7
दक्षकी साठ कन्याओंका विवाह, दक्ष और वीरिणीके यहाँ देवी शिवाका अवतार, दक्षद्वारा उनकी स्तुति तथा सतीके सद् गुणों एवं चेष्टाओंसे माता-पिताकी प्रसन्नता
8. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 8
सतीकी तपस्यासे संतुष्ट देवताओंका कैलासमें जाकर भगवान् शिवका स्तवन करना
9. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 9
ब्रह्माजीका रुद्रदेवसे सतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, श्रीविष्णुद्वारा अनुमोदन और श्रीरुद्रकी इसके लिये स्वीकृति
10. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 10
सतीको शिवसे वरकी प्राप्ति तथा भगवान् शिवका ब्रह्माजीको दक्षके पास भेजकर सतीका वरण करना
11. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 11
ब्रह्माजीसे दक्षकी अनुमति पाकर देवताओं और मुनियोंसहित भगवान् शिवका दक्षके घर जाना, दक्षद्वारा सबका सत्कार तथा सती और शिवका विवाह
12. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 12
सती और शिवके द्वारा अग्निकी परिक्रमा, श्रीहरिद्वारा शिवतत्त्वका वर्णन, शिवका ब्रह्माजीको दिये हुए वरके अनुसार वेदीपर सदाके लिये अवस्थान तथा शिव और सतीका विदा हो कैलासपर जाना
13. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 13
सतीका प्रश्न तथा उसके उत्तरमें भगवान् शिवद्वारा ज्ञान एवं नवधा भक्तिके स्वरूपका विवेचन
14. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 14
दण्डकारण्यमें शिवको श्रीरामके प्रति मस्तक झुकाते देख सतीका मोह तथा शिवकी आज्ञासे उनके द्वारा श्रीरामकी परीक्षा
15. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 15
श्रीशिवके द्वारा गोलोकधाममें श्रीविष्णुका गोपेशके पदपर अभिषेक तथा उनके प्रति प्रणामका प्रसंग सुनाकर श्रीरामका सतीके मनका संदेह दूर करना, सतीका शिवके द्वारा मानसिक त्याग
16. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 16
प्रयागमें समस्त महात्मा मुनियोंद्वारा किये गये यज्ञमें दक्षका भगवान् शिवको तिरस्कारपूर्वक शाप देना तथा नन्दीद्वारा ब्राह्मणकुलको शाप-प्रदान, भगवान् शिवका नन्दीको शान्त करना
17. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 17
दक्षके द्वारा महान् यज्ञका आयोजन, उसमें ब्रह्मा, विष्णु, देवताओं और ऋषियोंका आगमन, दक्षद्वारा सबका सत्कार, यज्ञका आरम्भ, दधीचिद्वारा भगवान् शिवको बुलानेका अनुरोध और दक्षके विरोध करनेपर शिव-भक्तोंका वहाँसे निकल जाना
18. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 18
दक्षयज्ञका समाचार पा सतीका शिवसे वहाँ चलनेके लिये अनुरोध, दक्षके शिवद्रोहको जानकर भगवान् शिवकी आज्ञासे देवी सतीका पिताके यज्ञमण्डपकी ओर शिवगणोंके साथ प्रस्थान
19. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 19
यज्ञशालामें शिवका भाग न देखकर सतीके रोषपूर्ण वचन, दक्षद्वारा शिवकी निन्दा सुन दक्ष तथा देवताओंको धिक्कार-फटकारकर सतीद्वारा अपने प्राण-त्यागका निश्चय
20. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 20
सतीका योगाग्निसे अपने शरीरको भस्म कर देना, दर्शकोंका हाहाकार, शिवपार्षदोंका प्राणत्याग तथा दक्षपर आक्रमण, ऋभुओंद्वारा उनका भगाया जाना तथा देवताओंकी चिन्ता
21. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 21
आकाशवाणीद्वारा दक्षकी भर्त्सना, उनके विनाशकी सूचना तथा समस्त देवताओंको यज्ञमण्डपसे निकल जानेकी प्रेरणा
22. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 22
गणोंके मुखसे और नारदसे भी सतीके दग्ध होनेकी बात सुनकर दक्षपर कुपित हुए शिवका अपनी जटासे वीरभद्र और महाकालीको प्रकट करके उन्हें यज्ञविध्वंस करने और विरोधियोंको जला डालनेकी आज्ञा देना
23. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 23
प्रमथगणोंसहित वीरभद्र और महाकालीका दक्षयज्ञ-विध्वंसके लिये प्रस्थान, दक्ष तथा देवताओंको अपशकुन एवं उत्पातसूचक लक्षणोंका दर्शन एवं भय होना
24. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 24
दक्षके यज्ञकी रक्षाके लिये भगवान् विष्णुसे प्रार्थना, भगवान् का शिवद्रोहजनित संकटको टालनेमें अपनी असमर्थता बताते हुए दक्षको समझाना तथा सेनासहित वीरभद्रका आगमन
25. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 25
देवताओंका पलायन, इन्द्र आदिके पूछनेपर बृहस्पतिका रुद्रदेवकी अजेयता बताना, वीरभद्रका देवताओंको युद्धके लिये ललकारना, श्रीविष्णु और वीरभद्रकी बातचीत तथा विष्णु आदिका अपने लोकमें जाना एवं दक्ष और यज्ञका विनाश करके वीरभद्रका कैलासको लौटना
26. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 26
श्रीविष्णुकी पराजयमें दधीचि मुनिके शापको कारण बताते हुए दधीचि और क्षुवके विवादका इतिहास, मृत्युंजय-मन्त्रके अनुष्ठानसे दधीचिकी अवध्यता तथा श्रीहरिका क्षुवको दधीचिकी पराजयके लिये यत्न करनेका आश्वासन
27. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 27
श्रीविष्णु और देवताओंसे अपराजित दधीचिका उनके लिये शाप और क्षुवपर अनुग्रह
28. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 28
देवताओंसहित ब्रह्माका विष्णुलोकमें जाकर अपना दुःख निवेदन करना, श्रीविष्णुका उन्हें शिवसे क्षमा माँगनेकी अनुमति दे उनको साथ ले कैलासपर जाना तथा भगवान् शिवसे मिलना
29. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 29
देवताओंद्वारा भगवान् शिवकी स्तुति, भगवान् शिवका देवता आदिके अंगोंके ठीक होने और दक्षके जीवित होनेका वरदान देना, श्रीहरि आदिके साथ यज्ञमण्डपमें पधारकर शिवका दक्षको जीवित करना तथा दक्ष और विष्णु आदिके द्वारा उनकी स्तुति
30. शिव पुराण – रुद्र संहिता – सती खण्ड – 30
भगवान् शिवका दक्षको अपनी भक्तवत्सलता, ज्ञानी भक्तकी श्रेष्ठता तथा तीनों देवताओंकी एकता बताना, दक्षका अपने यज्ञको पूर्ण करना, सब देवता आदिका अपने-अपने स्थानको जाना, सतीखण्डका उपसंहार और माहात्म्य
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Shiv Purana List
- शिव पुराण – विद्येश्वर संहिता
- शिव पुराण – रुद्र संहिता
- शिव पुराण – शतरुद्र संहिता
- शिव पुराण – कोटिरुद्र संहिता
- शिव पुराण – उमा संहिता
- शिव पुराण – कैलास संहिता
- शिव पुराण – वायवीय संहिता
Shiv Stotra, Mantra
- श्री शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र – अर्थ सहित - नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
- श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र – अर्थ सहित – नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय
- द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र - अर्थ सहित
- ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – संक्षिप्त, छोटा - अर्थ सहित
- शिव ताण्डव स्तोत्र - अर्थ सहित
Shiv Bhajan, Aarti, Chalisa
- शिवशंकर को जिसने पूजा
- सत्यम शिवम सुन्दरम - ईश्वर सत्य है
- शिव आरती - ओम जय शिव ओंकारा
- ऐसी सुबह ना आए, आए ना ऐसी शाम
- कैलाश के निवासी नमो बार बार
- ऐसा डमरू बजाया भोलेनाथ ने
- मेरा भोला है भंडारी, करे नंदी की सवारी
- सज रहे भोले बाबा निराले दूल्हे में - शिव विवाह भजन
- ॐ नमः शिवाय 108 Times
- महामृत्युंजय मंत्र - ओम त्र्यम्बकं यजामहे - अर्थसहित