Sunderkand – 18
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रावणदूत शुक का आना
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ।
अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ॥
रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने।
सकल बाँधि कपीस पहिं आने॥
अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ॥
रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने।
सकल बाँधि कपीस पहिं आने॥
और देखते देखते प्रेम ऐसा बढ़ गया कि वह (रावणदूत शुक) छिपाना भूल कर रामचन्द्रजीके स्वभावकी प्रकटमें प्रशंसा करने लगा॥
जब वानरोने जाना कि यह शत्रुका दूत है तब उसे बांधकर सुग्रीवके पास लाये
जब वानरोने जाना कि यह शत्रुका दूत है तब उसे बांधकर सुग्रीवके पास लाये
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कह सुग्रीव सुनहु सब बानर।
अंग भंग करि पठवहु निसिचर॥
सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए।
बाँधि कटक चहु पास फिराए॥
अंग भंग करि पठवहु निसिचर॥
सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए।
बाँधि कटक चहु पास फिराए॥
सुग्रीवने देखकर कहा कि हे वानरो सुनो, इस राक्षस दुष्टको अंग-भंग करके भेज दो॥
सुग्रीवके ये वचन सुनकर सब वानर दौड़े, फिर उसको बांध कर कटक (सेना) में चारों ओर फिराया॥
सुग्रीवके ये वचन सुनकर सब वानर दौड़े, फिर उसको बांध कर कटक (सेना) में चारों ओर फिराया॥
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बहु प्रकार मारन कपि लागे।
दीन पुकारत तदपि न त्यागे॥
जो हमार हर नासा काना।
तेहि कोसलाधीस कै आना॥
दीन पुकारत तदपि न त्यागे॥
जो हमार हर नासा काना।
तेहि कोसलाधीस कै आना॥
वानर उसको अनेक प्रकारसे मारने लगे और वह अनेक प्रकारसे दीनकी भांति पुकारने लगा फिर भी वानरोंने उसको नहीं छोड़ा॥
तब उसने पुकार कर कहा कि जो हमारी नाक कान काटते है उनको श्रीरामचन्द्रजीकी शपथ है॥
तब उसने पुकार कर कहा कि जो हमारी नाक कान काटते है उनको श्रीरामचन्द्रजीकी शपथ है॥
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सुनि लछिमन सब निकट बोलाए।
दया लागि हँसि तुरत छोड़ाए॥
रावन कर दीजहु यह पाती।
लछिमन बचन बाचु कुलघाती॥
दया लागि हँसि तुरत छोड़ाए॥
रावन कर दीजहु यह पाती।
लछिमन बचन बाचु कुलघाती॥
सेनामें खरभर सुनकर लक्ष्मणने उसको अपने पास बुलाया और दया आ जानेसे हँसकर लक्ष्मणने उसको छुड़ा दिया॥
एक पत्री लिख कर लक्ष्मणने उसको दी और कहा कि यह पत्री रावणको देना और उस कुलघातीकों कहना कि ये लक्ष्मणके हित वचन (संदेसे को) बाँचो॥
एक पत्री लिख कर लक्ष्मणने उसको दी और कहा कि यह पत्री रावणको देना और उस कुलघातीकों कहना कि ये लक्ष्मणके हित वचन (संदेसे को) बाँचो॥
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दोहा (Doha – Sunderkand)
कहेहु मुखागर मूढ़ सन मम संदेसु उदार।
सीता देइ मिलहु न त आवा कालु तुम्हार ॥52॥
सीता देइ मिलहु न त आवा कालु तुम्हार ॥52॥
और उस मूर्खसे मेरा बड़ा अपार सन्देशा मुहँसेंभी कह देना कि या तो तू सीताजीको देदे और हमारे शरण आजा, नही तो तेरा काल आया समझ ॥52॥
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लक्ष्मणजी के पत्र को लेकर रावणदूत का लौटना
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
तुरत नाइ लछिमन पद माथा।
चले दूत बरनत गुन गाथा॥
कहत राम जसु लंकाँ आए।
रावन चरन सीस तिन्ह नाए॥
चले दूत बरनत गुन गाथा॥
कहत राम जसु लंकाँ आए।
रावन चरन सीस तिन्ह नाए॥
लक्ष्मणके ये वचन सुन तुरंत लक्ष्मणके चरणोंमें शिर झुका कर रामचन्द्रजीके गुणोंकी प्रशंसा करता हुआ वह वहांसे चला॥
रामचन्द्रजीके यशकों गाता हुआ लंकामें आया. रावणके पास जाकर उसने रावणके चरणोंमें प्रणाम किया॥
रामचन्द्रजीके यशकों गाता हुआ लंकामें आया. रावणके पास जाकर उसने रावणके चरणोंमें प्रणाम किया॥
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बिहसि दसानन पूँछी बाता।
कहसि न सुक आपनि कुसलाता॥
पुन कहु खबरि बिभीषन केरी।
जाहि मृत्यु आई अति नेरी॥
कहसि न सुक आपनि कुसलाता॥
पुन कहु खबरि बिभीषन केरी।
जाहि मृत्यु आई अति नेरी॥
उस समय रावणने हँसकर उससे पूंछा कि हे शुक! अपनी कुशलताकी बात कहो॥
और फिर विभीषणकी कुशल कहो, कि जिसकी मौत बहुत निकट आगयी है॥
और फिर विभीषणकी कुशल कहो, कि जिसकी मौत बहुत निकट आगयी है॥
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करत राज लंका सठ त्यागी।
होइहि जव कर कीट अभागी॥
पुनि कहु भालु कीस कटकाई।
कठिन काल प्रेरित चलि आई॥
होइहि जव कर कीट अभागी॥
पुनि कहु भालु कीस कटकाई।
कठिन काल प्रेरित चलि आई॥
उस शठने लंकाको राज करते करते छोड़ दिया सो अब उस अभागेकी जवके (जौके) घुनके (कीड़ा) समान दशा होगी अर्थात् जैसे जव पीसनेके साथ उसमेंका घुनभी पीस जाता है, ऐसे रामके साथ वह भी मारा जाएगा॥
फिर कहो कि रीछ और वानरोंकी सेना कैसी और कितनी है कि जो कठिन कालकी प्रेरणासे इधरको चली आती है॥
फिर कहो कि रीछ और वानरोंकी सेना कैसी और कितनी है कि जो कठिन कालकी प्रेरणासे इधरको चली आती है॥
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जिन्ह के जीवन कर रखवारा।
भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा॥
कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी।
जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी॥
भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा॥
कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी।
जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी॥
हे शुक! अभी उनके जीवकी रक्षा करनेवाला बिचारा कोमलहृदय समुद्र हुआ है (उनके और राक्षसों के बीच में यदि समुद्र न होता तो अब तक राक्षस उन्हें मारकर खा गए होते)। सो रहे, इससे कितने दिन बचेंगे॥
और फिर उन तपस्वियोकी बात कहो जिनके ह्रदयमें मेरी बड़ी त्रास बैठ रही है (मेरा बड़ा डर है)॥
और फिर उन तपस्वियोकी बात कहो जिनके ह्रदयमें मेरी बड़ी त्रास बैठ रही है (मेरा बड़ा डर है)॥
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दोहा (Doha – Sunderkand)
की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर।
कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर ॥53॥
कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर ॥53॥
हे शुक! क्या तेरी उनसे भेंट हुई? क्या वे मेरी सुख्याति (सुयश) कानोंसे सुनकर पीछे लौट गए। हे शुक! शत्रुके दलका तेज आर बल क्यों नहीं कहता? तेरा चित्त चकित-सा (भौंचक्का-सा) कैसे हो रहा है? ॥53॥
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दूत का रावण को समझाना
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें।
मानहु कहा क्रोध तजि तैसें॥
मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा।
जातहिं राम तिलक तेहि सारा॥
मानहु कहा क्रोध तजि तैसें॥
मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा।
जातहिं राम तिलक तेहि सारा॥
रावणके ये वचन सुनकर शुकने कहा कि हे नाथ! जैसे आप कृपा करके पूंछते हो ऐसेही क्रोधको त्यागकर जो वचन में कहूं उसको मानो॥
हे नाथ! जिस समय आपका भाई रामसे जाकर मिला उसी क्षण रामने उसके राजतिलक कर दिया है॥
हे नाथ! जिस समय आपका भाई रामसे जाकर मिला उसी क्षण रामने उसके राजतिलक कर दिया है॥
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रावन दूत हमहि सुनि काना।
कपिन्ह बाँधि दीन्हें दुख नाना॥
श्रवन नासिका काटैं लागे।
राम सपथ दीन्हें हम त्यागे॥
कपिन्ह बाँधि दीन्हें दुख नाना॥
श्रवन नासिका काटैं लागे।
राम सपथ दीन्हें हम त्यागे॥
मै वानरका रूप धरकर सेनाके भीतर घुसा, सो फिरते फिरते वानरोंने जब मुझको आपका दूत जान लिया तब उन्होंने मुझको बांधकर अनेक प्रकारका दुःख दिया॥
और मेरी नाक कान काटने लगे, तब मैंने उनको रामकी शपथ दी तब उन्होंने मुझको छोड़ दिया॥
और मेरी नाक कान काटने लगे, तब मैंने उनको रामकी शपथ दी तब उन्होंने मुझको छोड़ दिया॥
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पूँछिहु नाथ राम कटकाई।
बदन कोटि सत बरनि न जाई॥
नाना बरन भालु कपि धारी।
बिकटानन बिसाल भयकारी॥
बदन कोटि सत बरनि न जाई॥
नाना बरन भालु कपि धारी।
बिकटानन बिसाल भयकारी॥
हे नाथ! आप मुझको वानरोंकी सेनाके समाचार पूँछते हो सो वे सौ करोड़ मुखोंसे तो कही नहीं जा सकती॥
हे रावण! रीछ और वानर अनेक रंग धारण किये बड़े डरावने दीखते हैं, बड़े विकट उनके मुख हैं और बड़े विशाल उनके शरीर हैं॥
हे रावण! रीछ और वानर अनेक रंग धारण किये बड़े डरावने दीखते हैं, बड़े विकट उनके मुख हैं और बड़े विशाल उनके शरीर हैं॥
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जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा।
सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा॥
अमित नाम भट कठिन कराला।
अमित नाग बल बिपुल बिसाला॥
सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा॥
अमित नाम भट कठिन कराला।
अमित नाग बल बिपुल बिसाला॥
हे रावण! जिसने इस लंकाको जलाया था और आपके पुत्र अक्षयकुमारको मारा था, उस वानरका बल तो सब वानरों में थोड़ा है॥
उनके बीच कई नामी भट पड़े हे, कि जो बड़े भयानक और बड़े कठोर हैं. जिनके नाना वर्णवाले और विशाल व तेजस्वी शरीर हैं॥
उनके बीच कई नामी भट पड़े हे, कि जो बड़े भयानक और बड़े कठोर हैं. जिनके नाना वर्णवाले और विशाल व तेजस्वी शरीर हैं॥
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दोहा (Doha – Sunderkand)
द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।
दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि ॥54॥
दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि ॥54॥
उनमें जो बड़े बड़े योद्धा हैं उनमेंसे कुछ नाम कहता हूँ सो सुनो – द्विविद, मयन्द, नील, नल, अंगद वगैरे, विकटास्य, दधिरख, केसरी, कुमुद, गव और बलका पुंज जाम्बवान ॥54॥