गणपति को प्रथम क्यों पूजा जाता है?
गणेश पुराण से –
प्राचीन काल की बात है – नैमिषारण्य क्षेत्र में ऋषि-महर्षि और साधु-संतों का समाज जुड़ा था।
उसमें श्री सूतजी भी विद्यमान थे।
शौनक जी ने उनकी सेवा में उपस्थित होकर निवेदन किया कि हे सूतजी! हमारे कानों के लिए अमृत के समान जीवन प्रदान करने वाले कथा तत्व का वर्णन कीजिए।
हमारे हृदयों में ज्ञान के प्रकाश की वृध्दि तथा भक्ति, वैराग्य और विवेक की उत्पत्ति जिस कथा से हो सकती हो, वह हमारे प्रति कहने की कृपा कीजिए।
शौनक जी की जिज्ञासा से सूतजी बड़े प्रसन्न हुए।
सूतजी बोले – शौनक जी, मैं आपको ज्ञान के परम स्रोत्र रूप श्रीगणेश जी का जनम कर्म रूप चरित्र सुनाऊंगा।
गणेशजी से ही सभी ज्ञानों, सभी विद्याओं का उद्भव हुआ है। अब आप सावधान चित्त से विराजमान हों और श्री गणेश जी के ध्यान और नमस्कारपूर्वक उनका चरित्र श्रवण करें।
अग्रपूजा के अधिकारी गणेश, यह कहकर, सूतजी कुछ समय के लिए मौन हो गए, और फिर बोले – शौनक जी! भगवान् गणेश जी ही सर्वप्रथम पूजा-प्राप्ति के अधिकारी हैं। किसी भी देवता की पूजा करो, पहले उन्हीं को पूजना होगा।
क्यों होती है गणेशजी की अग्रपूजा?
शौनक जी ने निवेदन किया – हे भगवान! सर्व प्रथम यह बताने की कृपा कीजिए कि गणेश जी को अग्रपूजा का अधिकार किस प्रकार प्राप्त हुआ? इस विषय में मेरी बुध्दि मोह को प्राप्त हो रही है कि सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी, पालनकर्ता भगवान् नारायण और संहारकर्ता शिवजी में से किसी को अग्रपूजा का अधिकारी क्यों नहीं माना गया? यह त्रिदेव ही तो सबसे बड़े देवता माने जाते हैं।
सूतजी ने कहा – शौनक जी! यह भी एक रहस्य ही है। देखो, अधिकार मांगने से नहीं मिलता, इसके लिए योग्यता होनी चाहिए। संसार में अनेक देवी-देवता पूजे जाते हैं। पहले जो जिसका इष्टदेव होता, वही उसी की पूजा किया करता है। इससे बड़े देवताओं के महत्व में कमी आने की आशंका उत्पन्न हो गई। इस कारण देवताओं में परस्पर विवाद होने लगा।
वे उसका निर्णय प्राप्त करने के लिए शिवजी के पास पहुंचे और प्रणाम करके पूछने लगे – प्रभो! हम सबमें अग्रपूजा का अधिकारी कौन है?
क्यों की जाती है गणेश जी की सबसे पहले पूजा
शिवजी सोचने लगे कि किसे अग्रपूजा अधिकारी मानें?
तभी उन्हें एक युक्ति सूझी, बोले – देवगण! इसका निपटारा बातों से नहीं तथ्यों से होगा। इसके लिए एक प्रतियोगिता रखनी होगी। विश्व परिक्रमा की प्रतियोगिता।
देवगण उनका मुख देखने लगे। शंकित हृदय से सोचते थे कि कैसी प्रतियोगिता रहेगी?
शिवजी ने उनके मन के भाव ताड़ लिए, इसलिए सांत्वना भरे शब्दों में बोले – घबराओ मत, कोई कठिन परीक्षा नहीं ली जाएगी। बस इतना ही कि सभी अपने-अपने वाहनों पर चढ़कर संसार की परिक्रमा करो और फिर यहां लौट आओ। जो पहले लौटेगा, वही अग्रपूजा का अधिकारी होगा।
अब क्या देर थी, सभी अपने-अपने वाहनों पर चढ़कर दौड़ पड़े।
किसी का वाहन गजराज था, तो किसी का सिंह, किसी का भैंसा तो किसी का मृग, किसी का हंस तो किसी का उल्लू, किसी का अश्व तो किसी का श्वान।
अभिप्राय यह कि वाहनों की विविधता के दर्शन उस समय जितने भले प्रकार से हो सकते थे, उतने अन्य समय में नहीं।
सबसे गया-बीता वाहन गणेशजी का था मूषक। ऐसे वाहन के बल-भरोसे इस प्रतियोगिता में सफल होना तो क्या, सम्मिलित होना भी हास्यास्पद था।
गणेश जी ने सोचा छोड़ो, क्या होगा प्रतियोगिता में भाग लेने से? हम तो यहां बैठे रहकर ही तमाशा देखेंगे।
वे बहुत देर तक विचार करते रहे।
अंत में उन्हें एक युक्ति सूझी। शिवजी स्वयं ही जगदात्मा हैं, यह संसार उन्हीं का प्रतिबिंब है, तब क्यों न इन्हीं की परिक्रमा कर ली जाए। इनकी परिक्रमा करने से ही संसार की परिक्रमा हो जाएगी।
ऐसा निश्चय कर उन्होंने मूषक पर चढ़कर शिवजी की परिक्रमा की और उनके समक्ष जा पहुंचे।
शिवजी ने कहा – तुमने परिक्रमा पूर्ण कर ली?
गणेशजी ने उत्तर दिया – जी!
शिवजी सोचने लगे कि इसे तो यहीं घूमते हुए देखा, फिर परिक्रमा कैसे कर आया?
देवताओं का परिक्रमा करके लौटना आरंभ हुआ और उन्होंने गणेशजी को वहां बैठे देखा तो माथा ठनक गया।
फिर भी साहस करके बोले – अरे तुम विश्व की परिक्रमा के लिए नहीं गए?
गणेशजी ने कहा – मैं। कबका यहां आ गया!
देवता बोले – तुम्हें तो कहीं भी नहीं देखा?
गणेशजी ने उत्तर दिया – देखते कहां से? समस्त संसार शिवजी में विद्यमान हैं, इनकी परिक्रमा करने से ही संसार की परिक्रमा पूर्ण हो गई।
सूतजी बाले – शौनक! इस प्रकार गणेशजी ने अपनी बुध्दि के बल पर ही विजय प्राप्त कर ली। उनका कथन सत्य था, इसलिए कोई विरोध करता भी तो कैसे?
बस उसी दिन से गणेश जी की अग्रपूजा होने लगी।
सूत जी बोले – हे शौनक जी, यह एक तथ्य भी है कि गणेश जी ही उसके पात्र भी है। बड़े-बड़े देवता भी कार्य सिद्धि में विघ्न आने पर उन विघ्नहर्ता गणपतिजी का आश्रय लेते हैं।
हे शौनक, गणेश जी भी बड़े दयालु है। नाम तो शिवजी का ही आशुतोष है, किंतु वे सर्वात्मा और सर्व रक्षक प्रभु तो शिव जी की अपेक्षा भी शीघ्र ही प्रकट हो जाते हैं।
उनका भक्त कभी किसी संकट में नहीं पड़ता। यदि प्रारब्ध वश कभी किसी विपत्ति में पड़ भी जाता है, तो गणेश जी की उपासना करने पर उनके अनुग्रह से उसके समस्त दुख दूर होकर परम सुख की प्राप्ति होती है।
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